मीडिया को बदनाम कर रहे फर्जी पत्रकार
राष्ट्रचंडिका/ भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित सिवनी जिला पत्रकार और अखबारों के रजिष्ट्रेशनों के लिये बखूबी जाना जाता है। दूसरे राज्य और जिलों के लोग खुले रूप से यह बात कहते हैं कि मध्यप्रदेश का सिवनी जिला अखबारिया जिला है और यहां के पत्रकार पत्रकारिता का वास्तविक रूप नहीं जानते। यहीं नही कुछ अधिकारी भी यह मानते हैं कि इस जिले में पत्रकारिता अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। इन लोगों का यह मानना शत- प्रतिशत सत्य है। क्योंकि जो वास्तविक पत्रकार है, वह तो अपना उद्देश्य जानते हैं, लेकिन त्यौहारिक और मनचले पत्रकारों को पत्रकारिता के मिशन से कोई मतलब नहीं होता, उनका मिशन तो सिर्फ धन कमाना होता है।
पत्रकारिता की धौंस दिखाकर अधिकारियों को चमकाना, पंचायत स्तर के सरपंच सचिवों को परेशान करना और उनसे पैसे झटकना इन फर्जी पत्रकारों की आदत में शामिल है। कुछ पत्रकार तो सरकारी विभागों के बाहर अधिकारियों का रास्ता तकते हैं कि अगर साहब के दर्शन हो जाये तो 400-500 का जुगाड़ हो जाये, तो कुछ जनपद के बाहर सरपंच- सचिवों की राह तकने में विश्वास रखते हैं। यही नहीं सिवनी की पत्रकारिता इतनी दूषित हो चुकी है कि कुछ छुटभैय्या पत्रकार, जिनके अखबारों का अता-पता नहीं है, फिर भी अधिकारियों के साथ सानी बनकर बैठते हैं और उन्हें अपनी पत्रकारिता का रूतबा दिखाकर उनसे पैसे मांगते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी अधिकारी हैं, जो इन फर्जी पत्रकारों की पहचान कर उन्हें बेईज्जत कर घर एवं कार्यालय से भगा देते हैं। जब ऐसे से बात नहीं मानते तो यह दूसरे चैनल व अखबारों का नाम लेकर साहब को यह तामझाम देते हैं कि मैं अभी किसी दूसरी मीटिंग में व्यस्त हूं, लडक़ा पहुंचाता हूं… मैनेज कर लेना। इसी तरह आवाज बदल-बदलकर कई अखबारों व चैनलों के ब्यूरों बने इन पत्रकारों से अधिकारी लुटता रहता है। दरअसल अधिकारी यह नहीं सोचता कि यहां वैध पत्रकार कितने हैं और कितने अखबार सिवनी में वितरित हो रहे हैं। अगर इसकी जानकारी उन्हें हो जाये तो वह इन फर्जी पत्रकारों को बड़ी ही आसानी से पकड़ लेगा। वहीं दूसरी ओर हमारे जिले का सुस्त जनसंपर्क विभाग भी इन फर्जी पत्रकारों पर कोई कार्यवाही करने में पहल नहीं कर रहा है, लेकिन यह कार्यालय तामझाम से परिपूर्ण है। जो अखबार निरंतर अपनी समय अवधि पर प्रकाशित हो रहे हैं, उन संपादकों एवं जिला ब्यूरों से कई प्रकार की फार्मेल्टी मंग ली जाती है और उन्हें शासन प्रशासन की प्रेस विज्ञप्ति एवं प्रेस वार्ता से वंचित रखा जाता है, लेकिन फर्जी पत्रकारों को बड़ी ईमानदारी से फोन करके सभी जानकारियां दी जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जनसंपर्क विभाग स्वयं नहीं चाहता कि सिवनी जिले से फर्जी पत्रकारों का अस्तित्व समाप्त हो। यह कोई बड़ी बात नहीं है कि फर्जी पत्रकारों पर शिकंजा कस उनकों उनके असली अंजाम तक पहुंचाया जा सके। जनसंपर्क अधिकारी चाहे तो फर्जी पत्रकारों को चिन्हित कर बड़ी ही आसानी से इनकी फर्जी पत्रकारिता पर विराम लगा सकते हैं, लेकिन वह ऐसा न करने पर विवश क्यों हैं? यह प्रश्र आज भी एक राज बना हुआ है।