डिजिटल मीडिया में नकलची चैनलों का दौर

राष्ट्र चंडिका न्यूज़.लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया जगत में इन दिनों नकलचियों की भीड़ बढ़ते जा रही है। नक़लचियों की भीड़ पहले भी कम नहीं थी लेकिन यूट्यूब और डिजिटल मीडिया के दौर में ये सिलसिला बढ़ते ही जा रहा है। देश के नामी ख़बरिया चैनलों के नाम पर नकलचियों का धंधा जमकर चल रहा है। चैनल के नाम और माइक आईडी के लोगो (डिज़ाइन) की इस तरह नक़ल की जा रही है कि पहली नज़र में कोई भी धोखा खाकर नक़ली को असली मान जाए। देश भर के अलग-अलग ज़िलों में ‘कल तक’, ‘परसो तक’, ‘जेबीपी न्यूज़’ से लेकर ‘ख़बर 18’ और ‘ख़बर 24’ जैसी नक़ल के ढेरों चैनल मिल जाएंगे और माइक आईडी लिए ढेरों रिपोर्टर मिल जाएंगे। बात ये है कि इन नकलची यूट्यूब चैनलों के रिपोर्टर के बोलने का अंदाज़ और कंटेंट की क्वॉलिटी देखकर कुछ ही सेकंड में असली होने का भ्रम टूट जाता है। कुछ ही देर में दर्शकों को एहसास हो जाता है कि असली की नक़ल करके भ्रम फैलाया जा रहा है। डिजिटल मीडिया के इस दौर में यूट्यूब पर नकलची चैनल बनाना सिर्फ़ 5 मिनट का काम है, इसके लिए ना तो पत्रकारिता की डिग्री की ज़रूरत है और ना ही किसी योग्यता की और बन गए चैनल हेड। अब तो नकलची यूट्यूब चैनलों के हेड अलग-अलग ज़िलों से लेकर तहसीलों तक तथाकथित रिपोर्टर भी नियुक्त करने लगे हैं। शहर में तमाम ऐसे नक़लचियों की फौज है जो असल में पत्रकार नहीं हैं, लेकिन हर घटना को कवर करने पहुंच जाते हैं। ऐसे लोग दो ढाई सौ रुपये में किसी भी चैनल की आईडी तैयार करा लेते हैं, यही माइक आईडी पांच-दस हज़ार लेकर ज़िला और ब्लॉक लेवल पर ब्यूरो बना दिए जाते हैं। यूट्यूब और वेब पोर्टलों के तथाकथित चैनल हेड माइक आईडी के साथ ही धड़ल्ले से प्रेस कार्ड बनाकर भी बांटे रहे हैं और इसकी धौंस दिखाकर ब्लैकमेलिंग और उगाही का धंधा शुरू हो गया है। प्रेस कार्ड जारी करने का अधिकार सिर्फ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों को तथा सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को ही है।जानकारों के मुताबिक़ नकलची यूट्यूब चैनलों को रोकने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को सख़्त कदम उठाने चाहिए। समाचार पत्रों के पंजीयन और नियमन के किए आरएनआई है, टीवी न्यूज़ चैनलों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता और सेल्फ रेगुलेशन के लिए बॉडी है उसी तरह यूट्यूब पर नकलची न्यूज़ चैनलों को रोकने के लिए सख़्त नियम और क़ायदे होने चाहिए।

-यूट्यूबर व स्वयं घोषित पत्रकार कर रहे है पत्रकारिता को बदनाम, फर्जी पत्रकारों की बाढ़ में कलमकारों को ढूंढना पड़ रहा भारी-

सिवनी में इन दिनों पत्रकारों को भी फर्जी पत्रकारों से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल जिन पत्रकारों को पत्रकारिता का भी नहीं पता है वे लोग हाथ में माइक लेकर अपने आप को बड़ा पत्रकार कहते हुए शहर में सरेआम बिना किसी रोक-टोक के घूम रहे हैं। ये लोग अपनी गाड़ियों पर बड़े-बड़े शब्दों में प्रेस लिखाकर इस शब्द का भी दुरुपयोग कर रहे हैं। पत्रकारिता की आड़ में कालाबाजारी करने वाले ऐसे तथाकथित पत्रकार असल में पत्रकारिता को भी धूमिल कर रहे हैं। यूट्यूब चैनल चलाने वाले कुछ लोग को प्रिटिग प्रेस से आसानी से माइक मिल जाता है। ये लोग वहां कुछ पैसे देकर एक नकली माइक आईडी तैयार कर लेते हैं। इसके बाद यह अपने आप को पत्रकार कहते हुए इंटरनेट मीडिया पर अपनी तस्वीरें वायरल करना शुरू कर देते हैं। इससे लोग इन सबको पत्रकार समझकर इन से धोखा खा जाते हैं। ऐसे प्रिंटिंग प्रेस पर कार्रवाई होनी चाहिए।
न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब के माध्यम से हजारों लोग खबरों का प्रसारण कर रहे हैं, और इसके संचालक रुपये लेकर प्रेस कार्ड जारी करते हुए लाखों की कमाई कर रहे हैं और साथ ही अपने आप को संपादक बन बैठे हैं, जो प्रेस नियमों के विरुद्ध है।
हालांकि खबरों को प्रकाशित और प्रसारित करने किसी भी माध्यम से जुर्म नहीं है, लेकिन इसके लिए प्रेस कार्ड जारी तभी किया जा सकता है जब वह RNI दिल्ली से रजिस्टर्ड हो। लेकिन देखा जा रहा है कि ऐसे लोगों पर न तो जिला प्रशासन का संबंधित अधिकारी ही कोई कार्यवाही कर रहा है और न ही इस पर लगाम लग रही है,
लेकिन ताज्जुब तो ये हो रहा है कि सब कुछ देखते हुए भी जिलाधिकारी और प्रेस से संबंधित अधिकारी मौन हैं, यही नहीं ऐसे लोगों को समय समय पर प्रेस पास भी सूचना कार्यालय द्वारा जारी कर दिया जाता है, जो नियम के विरुद्ध है, जिलाधिकारी सहित संबधित अधिकारी (सूचना अधिकारी) को चाहिए कि ऐसे मामलों की गंभीरता से जांच करें, और असली और नकली का फर्क आम जनता और जनप्रतिनिधियों के सामने लाएं जिससे लोगों के समझ आ जाय, क्योंकि आम जनता और जन प्रतिनिधि भी नहीं समझ पा रहे हैं कि कौन असली और कौन नकली पत्रकार है, सोशल मीडिया के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पोर्टलों और यूट्यूब चैनलों की आई बाढ़ को देखते हुए ऐसे स्वयम्भू संपादकों और रिपोर्टरों और इनको बढ़ावा देने वालो से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (RNI) सख्ती से निपटने जा रही है। बताया जा रहा है कि सोशल साइट्स, न्यूज़ पोर्टल, यूट्यूब पर न्यूज़ चैनल बनाकर स्वयं को संपादक लिखने वाले जालसाजों पर केस दर्ज कर जेल भेजे जाने की तैयारी सरकार द्वारा की जा रही है। सूचना प्रसारण मंत्रालय का स्पष्ट कहना है कि प्रेस कार्ड को जारी करने का अधिकार सिर्फ (RNI) रजिस्टर्ड समाचार पत्रों के संपादक को ही है तथा ऐसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल जो मिनिस्ट्री आफ ब्रॉडकास्ट से मान्यता प्राप्त है, वह भी जारी कर सकते हैं ।
जिम्मेदार अधिकारी बताते हैं कि न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब चैनल बनाकर आप खबरों को तो दिखा सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप पंजीकृत मीडिया संस्थान हैं, आप प्रेस कार्ड जारी करने का अ नहीं रखते हैं, यदि आप ऐसा करते हैं, तो यह विधि विरुद्ध है,
फर्जी न्यूज चैनल व पत्रकारों पर नकेल कसे सरकार-
 सिवनी शहर के अधिकांश लोगों का कहना है कि फर्जी यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया के फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। लोगों का कहना है कि फर्जी पत्रकार बिना वजह इंटरनेट पर गलत पोस्ट वायरल कर के लोगों को गुमराह करते हैं। इस पर राज्य सरकार को शिकंजा कसना चाहिए। वहीं, अगर कोई कर्मचारी अपने बड़े अधिकारी की अनुमति के बिना इन तथाकथित फर्जी पत्रकार को बाइट आदि देता है तो ऐसे कर्मचारी के खिलाफ भी 16 सी सी ए के अंतर्गत कार्रवाई की जाए। इससे फर्जीवाड़ा करने वाले बेनकाब हो सकते हैं। बिना अखबार के कार्ड व सरकारी कार्ड की जांच के बिना अधिकारियों को भी ऐसे फर्जी पत्रकारों को बाइट नहीं देनी चाहिए।
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