मरीज के खून के हर कतरे पर कमीशन

ग्वालियर। धरती पर डाक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन कुछ डाक्टर इस पेशे को बदनाम करने में लगे हुए हैं। हाल ही में जेएएच में एक युवक से डाक्टरों के कमीशन के लिफाफे पकड़े गए, जिससे यह बात साबित हो गई कि डाक्टर मरीज की जांच, दवा पर जमकर कमीशनखोरी कर रहे हैं।

नाम न छापने की शर्त पर कुछ डाक्टरों का कहना है कि डाक्टर बीमारी के लक्षण के साथ-साथ मरीज उस बीमारी को लेकर कितना फिक्रमंद है इस बात का आकलन करता है। इसके साथ ही वह उसके रहन सहन व बोलचाल से उसकी जेब का आकलन तक कर लेता है। कई बार तो डाक्टर खुद ही पूछ लेते हैं कि क्या आप निजी लैब पर जांच करा लोगे या फिर निजी अस्पताल में इलाज ले सकोगे। यदि मरीज हां में जवाब देता है तब डाक्टरों का कमीशन का खेल शुरू हो जाता है। लेकिन शहर में ऐसे भी डाक्टर हैं जो कमीशन नहीं लेते, बल्कि उसका लाभ मरीज को दिलाते हैं।

डाक्टरी की पढ़ाई की और दलाल का काम कर रहे

डाक्टरों के कमीशन के लिफाफे की कहानी सामने आने के बाद यह बात डाक्टरों में चर्चा का विषय बनी हुई है। जो डाक्टर कमीशनखोरी नहीं करते हैं उनकी पीड़ा बाहर आने लगी है। इन डाक्टरों का कहना है कि कुछ लोगों ने डाक्टरी के पेशे को दलाली का बना दिया है। इसमें जेएएच के ही ऐसे डाक्टर हैं जिन्होंने पैथोलाजी, डायग्नोसिस सेंटर खोल रखे हैं। जो साथी डाक्टरों को मरीज भेजने के लिए 70 फीसद तक कमीशन आफर करते हैं।

ऐसे समझें कमीशन न लें तो मरीजों को कितना हो फायदा

मरीज डाक्टर को फीस देने के बाद उसके द्वारा लिखी दवा खरीदता है तो उस पर डाक्टर को कमीशन मिलता है। इसके बाद डाक्टर द्वारा लिखी गई जांच कराता है तो उस पर भी कमीशन। नाम न छापने की शर्त पर एक डाक्टर का कहना है कि यदि एक डाक्टर दूसरे डाक्टर के पास मरीज भेजता है तो उस पर भी आपस में कमीशन का खेल चलता है। यदि मरीज ने क्लीनिक पर डाक्टर को 500 रुपये फीस दी है और 1000 रुपये की दवा खरीदी है तथा 1000 रुपये की जांच कराई है तो डाक्टर के पास फीस के 500, दवा पर कमीशन 600 तथा जांच पर 700 रुपये मिलते हैं। एक मरीज द्वारा खर्च किए 2500 रुपये में से 1800 रुपये तक डाक्टर की जेब में पहुंच जाते हैं, क्योंकि डाक्टरों ने क्लीनिक के साथ ही मेडिकल स्टोर खोल रखे हैं और पैथोलाजी निर्धारित कर रखी हैं। यदि मरीज निजी अस्पताल में भर्ती किया जाता है तो कुल इलाज में हुए लाभ का 50 फीसद तक कमीशन डाक्टर का होता है।

इनसे भी सीखो जो कमीशनखोरी को गंदगी मानते हैं

शहर में ऐसे भी डाक्टरों की कोई कमी नहीं है, जो कमीशनखोरी को गंदगी मानते हैं। जेएएच के पूर्व अधीक्षक डा़ एसएम तिवारी, डा़ अशोक मिश्रा, डा़ एनडी वैश्य, डा़ शैला सप्रे, डा़ एसआर अग्रवाल, डा़ जगदीश नामधारी, डा़ रामस्वरूप गुप्ता आदि ऐसे नाम हैं जो जांच के नाम पर कमीशन लेना गंदगी मानते हैं। इन सभी का कहना है कि उन्होंने अपनी प्रैक्टिस में कभी मरीज की जांच बेवजह नहीं कराई न ही कभी जांच के नाम पर कमीशन लिया।

यह है कमीशन का गणित

वस्तु कमीशन

ओपीडी फीस 50 फीसद

दवा पर प्रोफिट का 60 फीसद तक है रहता

जांच पर 70 फीसद तक है रहता

निजी अस्पताल में भर्ती पर 50 फीसद लाभ में।

नोट: एक से दूसरे डाक्टर पर रैफर करने पर कुल इलाज पर कमीशन तय रहता है।

22 साल प्रैक्टिस की लेकिन कभी कमीशन नहीं लिया। मैं मरीज के पर्चे पर दवा वही लिखता हूं जो शहर में किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाए तथा जांच के लिए इतना भर कहता हूं कि वहीं कराना, जहां पर क्वालीफाइड डाक्टर हो। डा़ अशोक मिश्रा, वरिष्ठ चिकित्सक मैं जब जेएएच में कार्यरत रहा तब कभी अस्पताल का मरीज घर पर नहीं देखा। कमीशन तो दूर की बात है, मैं अपनी फीस तक छोड़ देता हूं। इस पर शासन को एक्शन लेना चाहिए कि बिना डाक्टर के पैथोलाजी, डायग्नोसिस सेंटर और अस्पताल कैसे खुल रहे हैं। इन पर लगाम लगनी चाहिए।

डा़ एसएम तिवारी, वरिष्ठ चिकित्सक

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