भगवान परशुराम के क्रोध, रौद्र रूप और उनके विशाल फरसे का विशेष तौर पर रामायण, महाभारत, भागवत पुराण आदि ग्रंथों में जिक्र है. भगवान राम की तरह भगवान परशुराम भी विष्णु के अवतार हैं. राजा जनक की बेटी सीता के स्वयंवर के दौरान रखी गई शर्त के मुताबिक, जब भगवान राम ने महादेव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान तोड़ दिया था. इसके बाद महादेव के परम भक्त भगवान परशुराम रोधित होकर भगवान राम को सजा देने के लिए उस स्वयंबर में पहुंचते हैं.
हालांकि, जब भगवान परशुराम को यह ज्ञात हो जाता है कि उनके समक्ष खड़े भगवान राम भी विष्णु के एक अवतार है, तो वह लज्जित हो जाते हैं. इसके बाद वह अपना विशाल फरसा लेकर लुचुतपाट जंगल के एक पर्वत पर अपने विशाल फरसे को जमीन में गाड़ कर भगवान भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो जाते हैं और आराधना करने लगते हैं.
टांगीनाथ धाम से मशहूर है ये जगह
जिस स्थान पर भगवान परशुराम ने त्रिशूल रूपी विशाल फरसे को जमीन में गाड़ा था. वह स्थान झारखंड के गुमला जिले के डुमरी प्रखंड में पड़ता है. इसे टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम का फरसा आज भी धरती पर मौजूद है, जिस स्थान पर फरसा जमीन में गड़ा हुआ है. वह स्थान टांगीनाथ धाम है.
108 शिवलिंग के साथ देवी-दवताओं की मूर्तियां
झारखंड की स्थानीय जनजातीय भाषा में फरसे को टांगी कहा जाता है. इसीलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ा है. यह गुमला जिले के बीहड़ जंगल में मौजूद है. टांगीनाथ धाम में पत्थरों से निर्मित एक प्राचीन मंदिर है. इसके साथ ही खुले आसमान के नीचे भोलेनाथ के 108 शिवलिंग के साथ-साथ देवी देवताओं की प्राचीन पत्थरों से निर्मित मूर्तियां मौजूद हैं.
जब परशुराम ने माता का सिर धड़ से किया अलग
टांगीनाथ धाम और भगवान परशुराम से जुड़ी एक दूसरी पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान परशुराम ने अपने पिता के कहने पर अपने विशाल फरसे से प्रहार कर अपनी माता रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया था. हालांकि, पिता जमदग्नि से मिले वरदान से उन्होंने दोबारा अपनी माता रेणुका को जीवित कर दिया था.
जमीन में गाड़ दिया फरसा
इस घटना के बाद भगवान परशुराम पर मातृ हत्या का दोष लग गया था. मातृ हत्या का दोष से मुक्ति के लिए भगवान परशुराम ने इसी टांगीनाथ धाम में अपने विशाल त्रिशूल की आकृति वाले फरसे को जमीन में गाड़ कर भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था. परशुराम की तपस्या के उपरांत भगवान भोलेनाथ साक्षात टांगीनाथ धाम पर प्रकट होकर भगवान परशुराम पर लगे मातृ हत्या के दोष से मुक्ति किया था.
पौराणिक शास्त्रों के मुताबिक, टांगीनाथ धाम में जो त्रिशूल की आकृति वाला फरसा (टांगी) गड़ा है. वह भगवान भोलेनाथ का दिव्या त्रिशूल है, जिसे उन्होंने प्रसन्न होकर अपने प्रिय भक्त परशुराम को भेंट स्वरूप दिया था.
साल 1984 में की गई खुदाई
साल 1984 में टांगीनाथ धाम में गड़े त्रिशूल रूपी फरसा (टांगी ) के रहस्य को जानने के लिए खुदाई की गई थी. 15 फीट से ज्यादा मिट्टी के अंदर खुदाई करने के बाद भी जमीन में गड़े फरसे का आखरी हिस्सा नहीं मिल पाया था. जमीन के ऊपर लगभग 5 फीट का त्रिशूल की आकृति वाला फरसा मौजूद है. हजारों सालों से खुले आसमान के नीचे सर्दी, गर्मी, बरसात के बावजूद लोहे के त्रिशूल की आकृति वाले फरसे (टांगी ) में आज तक जंग नहीं लगा है.
दूसरे राज्यों से लोग आते हैं दर्शन के लिए
इन्ही कारणों से कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव मौजूद हैं. सावन के पवित्र महीने में न सिर्फ झारखंड बल्कि बिहार ,उड़ीसा , छत्तीसगढ़ ,बंगाल ,मध्य प्रदेश सहित देश के दूसरे अन्य राज्यों से प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां महादेव की पूजा के लिए आते हैं. सावन में विशेष तौर पर यहां पूजा अर्चना की जाती है.
झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 150 किलोमीटर की दूरी पर झारखंड के गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के लुचुटपाट की पहाड़ियों पर टांगीनाथ धाम है. टांगीनाथ धाम पहुंचने के लिए गुमला जिला मुख्यालय से बस, टेंपो या प्राइवेट गाड़ियों की मदद से आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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