केरल में मम्प्स बीमारी के मामले एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं. इस राज्य में बढ़ी संख्या में बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे है. केरल में केवल 10 मार्च को एक ही दिन में मम्प्स के 190 मामले दर्ज किए गए थे. पिछले महीने केरल में 2 हजार से अधिक मामले आए थे. उस दौरान आसपास के भी कई राज्यों में ये बीमारी फैली थी. अब इस महीने फिर से मम्प्स के मामले बढ़ने लगे हैं. बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रशासन ने राज्य में अलर्ट जारी कर दिया है और लोगों को इस बीमारी से एहतियात बरतने की सलाह दी है. आइए पहले जानते हैं कि मम्प्स बीमारी क्या होती है.
मम्प्स रूबेला वायरस परिवार का है. यह एक संक्रामक बीमारी है. जो एक से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकती है. खांसने और छींकने के जरिए इस बीमारी का ट्रांसमिशन होता है. इसकी शुरुआत में फ्लू जैसे लक्षण आते हैं. बुखार होता है और सिरदर्द के साथ मांसपेशियों में दर्द होने लगता है. इसके बाद चेहरे के दोनों तरफ के पैरोटिड ग्लैंड में सूजन आ जाती है और मुंह में सामान्य से ज्यादा लार बनती है. इस सूजन में काफी दर्द महसूस होता है और व्यक्ति को मुंह तक खोलने में काफी परेशानी होती है, जिससे कुछ खाया पीया तक नहीं जाता. कई मामलों में सूजन की वजह से कानों पर भी असर पड़ता है और सुनने में भी परेशानी होती है.
दिल्ली एम्स में पीडियाट्रिक विभाग में डॉ. राकेश कुमार बागड़ी बताते हैं कि मम्प्स कई दशकों पुरानी बीमारी है. अमेरिका में तो 1967 में ही इस बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया गया था. वहां वैक्सीनेशन के बाद मम्प्स के मामलों में 90 फीसदी तक की कमी आई थी. भारत में भी काफी पहले इस बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण शुरू हो गया था, लेकिन जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली उनमें बीमारी का खतरा रहता है. चूंकि बच्चे हैंड हाइजीन का ध्यान कम रखते हैं और निकट संपर्क में रहते हैं तो उनमें वायरस जनित ये बीमारी तेजी से फैल जाती है. इस वजह से बच्चों में मम्प्स के केस अधिक आते हैं. ये बीमारी रूबेला वायरस की है तो इस कारण भी बच्चे अधिक संक्रमित होते हैं.
डॉ राकेश बताते हैं किभारत में मम्प्स के केस हर साल आते रहते हैं, लेकिन अगर समय पर इलाज हो जाए तो ये बहुत गंभीर असर नहीं करती है. लेकिन इस बीमारी के लक्षण दिखते ही ट्रीटमेंट कराना जरूरी है. अगर देरी हुई तो इस बीमारी की वजह से मस्तिष्क की सूजन और मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाले टिश्यू की सूजन) जैसी गंभीर समस्या हो सकती है, जो जानलेवा होती है.
केरल में क्यों बार-बार आते हैं केस
केरल में ज्यादा केस क्यों आ रहे हैं? इस सवाल के जवाब में महामारी विशेषज्ञ और सफदरजंग हॉस्पिटल में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग के डॉ. जुगल किशोर ने बताया है. डॉ किशोर कहते हैं कि केरल में किसी भी बीमारी को लेकर सर्विलांस सिस्टम अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है. वहां जो भी बीमारी होती है उसकी समय पर जांच के साथ मामलों की रिपोर्टिंग की जाती है.
केरल किसी भी बीमारी की जानकारी और उसके आंकड़े स्वास्थ्य मंत्रालय को देता है और बीमारी से बचाव के उपायों को भी समय पर लागू करता है. केरल में बीमारी के सही आंकड़े दिए जाते हैं. भले ही केस कम या ज्यादा कितने भी हो इसकी पूरी जानकारी दी जाती है.
डॉ किशोर के मुताबिक, हो सकता है कि मम्प्स के केस दूसरे राज्यों में भी फैल रहे हों, लेकिन केरल की तुलना में अन्य राज्यों में उतना बेहतर सर्विलांस सिस्टम और टेस्टिंंग की सुविधा नहीं है. ऐसे में हम ये देखते हैं कि बार-बार केरल से ही केस रिपोर्ट हो रहे हैं.
क्या मम्प्स का इलाज है?
डॉ राकेश कुमार बागड़ी बताते हैं कि मम्प्स की वैक्सीन मौजूद है. इसको एमएमआर वैक्सीन कहते हैं. यह वैक्सीन बच्चों को 12 से 15 महीने की उम्र में लगवाई जा सकती है. दूसरी खुराक 4 से 6 साल की उम्र में लगवानी होती है. इस टीके को एक साल से कम बच्चे को नहीं दी जाती. लेकिन ये जरूरी है कि बच्चे को एमएमआर वैक्सीन की दो खुराकें मिलनी चाहिए. ये वैक्सीन मम्प्स,खसरा, रूबेला, और वैरीसेला (चिकनपॉक्स) से भी बचाती है. लेकिन जिन बच्चों को ये वैक्सीन नहीं लगती है उनमें आगे चलकर इन सभी बीमारियों से संक्रमित होने का खतरा रहता है.
कैसे करें बचाव
इस बीमारी का पता चलते ही संक्रमित बच्चे को तुरंत उपचार की जरूरत होती है इसलिए तुरंत बच्चे को अस्पताल में एडमिट कराया जाना चाहिए. एंटीबायोटिक दवाएं देकर इसका इलाज किया जाता है. अगर इस बीमारी का इलाज समय पर न किया जाए तो बच्चे की सुनने की क्षमता जा सकती है. इसलिए छोटे बच्चों को समय पर इसकी वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए. कोशिश करें कि बच्चे को किसी संक्रमित बच्चे से दूर रखें. ध्यान दें कि बच्चा हाथ धोकर भोजन करें. अगर किसी में फ्लू के लक्षण दिख रहे है तो उस व्यक्ति से बच्चों को दूर रखें.
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