रंगों का त्योहार होली पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों से में एक है. होली से पहले फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन धुलेंडी होती है तो वहीं, एक रात पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. जिस दिन होलिका दहन होता है उस दिन आग जलाने के लिए गाय के गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है और साथ ही गाय के गोबर से ही होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाई जाती है. आइए इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं.
गोबर से क्यों बनाते हैं प्रहलाद और होलिका की मूर्ति?
हिंदू धर्म में गोबर को बहुत पवित्र माना गया है. इसी वजह से शुभ और धार्मिक कार्यों जैसे हवन, अनुष्ठान आदि में में गोबर का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, होलिका दहन के लिए भी गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है. मान्यता के मुताबिक गाय के पृष्ठ भाग यानि कि पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर इसी स्थान से मिलता है. ऐसे में होलिका दहन में इसके इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं.
गाय में होता है देवी-देवताओं का वास
हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, गाय में सभी देवी-देवता का वास होता है और गाय के हर एक अंग में कोई न कोई देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय को पूजनीय कहा जाता है. गाय के गोबर और गौमूत्र में गंगा मैय्या का स्थान भी माना जाता है. इसी वजह से गाय के गोबर को शुद्ध माना जाता है.
जब होलिका दहन के दिन अग्नि जलााई जाती है, तब गोबर से बनी होलिका की प्रतिमा भी जलने लगती है. इस आग से धुआं उठता है और गोबर का धुआं नकारात्मकता को भगाता है. इस अग्नि का धुआं मन में पैदा होने वाले अशुभ विचारों को भी दूर कर देता है और बुरी नजर को भी उतारने में भी असरदार माना गया है.
होलिका दहन का धुंआ दूर करता है कई दोष
साथ ही, ऐसा मान्यता भी है कि गोबर के जलने से जो धुआं पैदा होता है उससे वास्तु दोष और ग्रह दोष भी दूर होते हैं. इसी वजह से होलिका दहन की राख को घर ले जाने के लिए भी कहा जाता है क्योंकि होलिका दहन की राख से वास्तु से जुड़ी कैसी भी परेशानी से निजात पाई जा सकती है.
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