Deepfake, चुनाव में AI का मिसयूज, बदलती टेक्नोलॉजी की चुनौती से कैसे निपटेगा भारत?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की काबिलियत हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती जा रही है. Humane AI पिन एआई के स्तर को और आगे लेकर गया है. GPT-4 से चलने वाला ये छोटा सा डिवाइस आपकी हथेली पर कॉल, मैसेज, इंटरनेट सर्फिंग जैसे काम कर सकता है. इसे आप स्मार्टफोन किलर की तरह माना जा सकता है. भारतीय टेलीकॉम कंपनियों के साथ साझेदारी में इस क्रांतिकारी डिवाइस को 2024 के आखिर में इंडियन मार्केट में लॉन्च किया जा सकता है. यह एआई का केवल एक रुख है, इसका दूसरा रुख चिंता पैदा करता है.

Google का जेमिनी एआई इसके विवादित जवाब पक्षपात कंटेंट के तौर पर देखे जा सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंधित आपत्तिजनक टिप्पणी और टेस्ला के फाउंडर एलन मस्क के खिलाफ जो रिस्पॉन्स आए हैं, वो चिंता बढ़ाने वाले हैं.

केंद्रीय आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया कि गूगल ने अपने AI प्लेटफॉर्म जेमिनी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में की गई निराधार टिप्पणियों के लिए भारत सरकार से माफी मांगी है.

यहां तक कि गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी इन गड़बड़ियों को “अस्वीकार्य” बताया. एक्सपर्ट्स को चिंता है कि दुनिया को AI की ऐसी और भी गलतियां देखने को मिलती रहेंगी.

AI अभी तक उतना स्मार्ट नहीं है?

AI टेक्नोलॉजी भले ही स्मार्टफोन से ज्यादा स्मार्ट हो रही है लेकिन यह अभी भी उतनी स्मार्ट नहीं है. आईबीएम क्वांटम लीडर इंडिया और AI विशेषज्ञ डॉ. एलवी सुब्रमण्यम ने द न्यूज9 प्लस शो में कहा, “AI टेक्नोलॉजी अभी भी विकसित हो रही है. विश्वास और पक्षपात के संबंध में इसकी लिमिट अभी तक तय नहीं की गई हैं. जिस डेटा पर इन AI मॉडल को ट्रेंड किया जाता है वह बहुत पश्चिम-केंद्रित है.”

उन्होंने आगे कहा कि अगर आप इससे भारत से जुड़ी चीजों के बारे में पूछते हैं, तो इसके पास वो चीज नहीं है, क्योंकि यह उस डेटा पर नहीं बना है. जब तक भारत इस खेल में शामिल नहीं हो जाता और भारतीय डेटा का इस्तेमाल करके खुद के जेनरेटिव AI मॉडल नहीं बनाता, हम ऐसे और भी मामले देखते रहेंगे.

अगर कोई इसके सामाजिक पहलू पर विचार करता है तो AI के खतरे और भी साफ हो जाते हैं. टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि लोग असली और नकली में फर्क नहीं कर पाते.

डॉ. सुब्रमण्यम ने न्यूज9 प्लस के एडिटर संदीप उन्नीथन को बताया, “टेक्नोलॉजी चुनौती भी है. क्या हम कोई नई टेक्नोलॉजी लेकर आने वाले हैं जो हमें यह पहचानने में सक्षम बनाएगी कि क्या नकली है? कानून अभी भी विकसित हो रहा है. नए कानून आने में सालों लग जाते हैं जबकि टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से विकसित हो रही है कि हर हफ्ते कुछ नया होता है.”

AI को रेगुलेट करने की चुनौतियां

इस बीच भारत सरकार ने AI से जुड़ी चिंताओं पर संज्ञान लिया है. आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर के अनुसार, AI रेगुलेशन फ्रेमवर्क का ड्राफ्ट जुलाई तक सामने आ जाएगा. इसका लक्ष्य टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल को रोकने के तरीके अपनाकर राष्ट्र के विकास के लिए टेक्नोलॉजी की क्षमता का फायदा उठाना और इसके लिए लचीला बने रहना होगा. आखिरकार, AI इस दशक के अंत तक ग्लोबल इकोनॉमी में 15 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 12.43 लाख अरब रुपये तक का योगदान दे सकता है.

AI लॉ एक्सपर्ट साक्षर दुग्गल इस बात से सहमत हैं कि भारत अपने AI नियमों के साथ बहुत उदार या बहुत सख्त होने का जोखिम नहीं उठा सकता है. हमें टेक्नोलॉजी की क्षमता का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए लचीला रहना चाहिए.

मौजूदा समय में भारत टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट और इसे कंट्रोल करने की वैधता के मामले में पीछे है. मॉडर्न टेक्नोलॉजी को कंट्रोल करने के लिए एक स्थिर फ्रेमवर्क असरदार नहीं होगा.

साक्षर दुग्गल कहते हैं कि भले ही रेगुलेशन जुलाई में आएगा, फिर भी हमें नियमित साइबर ऑडिटिंग करने की जरूरत है. AI बहुत तेजी से विकसित हो रहा है. इसलिए हर महीने, आपको जांचना होगा और बैलेंस करना होगा कि टेक्नोलॉजी में नए बदलावों को ध्यान में रखते हुए कौन से नए नियम आने हैं.

उदाहरण के लिए, नया जेनरेटिव AI Sora एक तरफ ऑथेंटिकेटेड वीडियो तैयार कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ यह ज्यादा एडवांस डीपफेक वीडियो को बढ़ावा देगा. इसलिए सरकार को नियमित रूप से नियमों का ऑडिट करना होगा.

चुनाव में AI का दुरुपयोग

रश्मिका मंदाना, सचिन तेंदुलकर, आलिया भट्ट, करीना कपूर और कई अन्य भारतीय सेलिब्रिटीज के बारे में बहुत सारा डीपफेक कंटेंट मौजूद है. यहां तक कि पीएम मोदी को भी नहीं बख्शा गया. यह एक अहम चुनावी साल है, और ऐसी चीजें हमारी चुनावी प्रणाली के लिए बेहद चिंताजनक है.

गौरतलब है कि चुनावों को प्रभावित करने के लिए AI का इस्तेमाल विश्व स्तर पर पहले ही शुरू हो चुका है. अर्जेंटीना में 2023 के चुनावों में डीपफेक का खेल देखा गया. हाल ही में संपन्न हुए पाकिस्तान चुनाव में भी इस विवादास्पद टेक्नोलॉजी की अहम भूमिका थी.

सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर क्राइम एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने भारत के लोकसभा चुनावों में जेनरेटिव AI के दुरुपयोग के बारे में चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि चुनावी प्रक्रिया और मतदाताओं के निर्णय लेने और चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए डीपफेक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाएगा.

ऐसा करने वाले ज्यादातर लोग जानते हैं कि भारत में डीपफेक पर कोई लीगल फ्रेमवर्क नहीं है और मौजूदा इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट इससे निपटने में नाकाफी है. इसलिए इस चुनाव में डीपफेक की बढ़ती भूमिका देखने की संभावना है.

उन्होंने कहा कि सभी की निगाहें अब भारत के चुनाव आयोग पर हैं कि वह एक डेडिकेटेड लीगल फ्रेमवर्क तैयार होने तक चुनाव प्रक्रिया में डीपफेक के इस्तेमाल को कैसे कम कर सकता है.

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