उत्तर प्रदेश के संभल स्थित कल्कि तीर्थ क्षेत्र में सोमवार को कल्कि भगवान के मंदिर का शिलान्यास हो गया. भगवान नारायण के 24 अवतारों में अंतिम अवतार कहे जाने वाले इस विग्रह का अवतरण 4 लाख 26 हजार साल बाद होने वाला है. श्रीमद भागवत पुराण के 12वें स्कंध में वर्णित प्रसंग के मुताबिक कल्कि भगवान का अवतरण दुष्टों के विनाश के लिए होगा. दरअसल, यह अवतार ऐसे वक्त पर होगा, जब सृष्टि में धर्म का लोप हो चुका होगा.
उस समय धर्म को जानने वाले इतने ही लोग दुनिया में मौजूद होंगे, जिनकी गणना उंगलियों पर की जा सके. चहुं ओर दुष्टों का बोलबाला होगा. ऐसे माहौल में संभल के गौड़ ब्राहमण परिवार में जन्म लेने वाले कल्कि भगवान देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर दुष्टों का विनाश करेंगे. कल्कि भगवान का घोड़ा देवदत्त दशरथ जी महाराज के रथ की तरह दसों दिशाओं में गतिमान होगा. इसी घोड़े पर सवार होकर जब दोनों हाथों में तलवार लिए भगवान कल्कि प्रयाग की ओर बढ़ेंगे तो गंगा तट से दुष्टों का विनाश शुरू होगा.
फिर शुरू होगा सतयुग
पृथ्वी पर अपनी लीला संपन्न कर भगवान जब अपने परम लोक को प्रस्थान करेंगे तो पृथ्वी पर एक बार फिर से सतयुग का प्रारंभ होगा. श्रीमद भागवत के 12वें स्कंध और स्कंद पुराण के 24वें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार ही रामगंगा नदी के तट पर स्थित संभल में कल्कि भगवान के भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. विभिन्न शिलालेखों के मुताबिक संभल में मौजूदा मंदिर का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है.
अहिल्या बाई होल्कर ने कराया था पुर्ननिर्माण
पूर्व में अहिल्या बाई होल्कर ने काशी में विश्वनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण के बाद इस मंदिर को बनवाया था. उसके बाद भी यह मंदिर कई बार टूटा और बनता रहा. एक बार फिर कांग्रेस से निष्काषित नेता और कल्कि धाम के आचार्य प्रमोद कृष्णन के प्रयासों से इसका निर्माण होने जा रहा है. आचार्य प्रमोद कृष्णन के मुताबिक चूंकि दशावतार में कल्कि अवतार 10वें स्थान पर है. ऐसे में पूर्व के सभी अवतारों के लिए 10 अलग अलग गर्भगृह भी बनाए जाएंगे. यह पूरा परिसर करीब 10 एकड़ जमीन पर बनेगा और इसके बनकर तैयार होने में करीब पांच साल का वक्त लगेगा.
भरतपुर के गुलाबी पत्थरों से होगा निर्माण
उन्होंने बताया कि इस मंदिर के निर्माण के लिए भरतपुर राजस्थान के गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल किया जाएगा. इन पत्थरों का इस्तेमाल सोमनाथ मंदिर और अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण में भी किया गया है. आचार्य प्रमोद कृष्णन के मुताबिक कल्कि भगवान के मंदिर का शिखर 108 फुट की ऊंचाई पर होगा. 11 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनने वाले इस मंदिर में 68 तीर्थों की स्थापना होगी. राम मंदिर की तरह इसमें भी लोहे या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं होगा. उन्होंने बताया कि मंदिर में कल्कि भगवान के नए विग्रह की स्थापना के बाद भी पुराने विग्रह को हटाया नहीं जाएगा. मंदिर के ठीक बीच में शिवलिंग होगा.
समय के साथ बदलता रहा नाम
आचार्य प्रमोद कृष्णन के मुताबिक भगवान कल्कि के जन्मस्थान संभल का नाम समय के साथ बदलता रहा है. पुराणों में इस स्थान को शंभल कहा गया है. शंभल शंभू से बना है. जैसे कि शंभ्लेश्वर महादेव. मुगलकाल में इसका नाम शंभल से संभल हो गया. इस स्थान को सतयुग में सत्यव्रत के नाम से जाना जाएगा. इस स्थान को त्रेता युग में महंतगिरी तो द्वापर में इसे पिंघल द्वीप कहा गया. उन्होंने बताया कि इसी संभल के 24 कोस की परिधि में कल्कि भगवान का अवतार होगा.
पौराणिक प्रसंग
श्रीमद् भागवत पुराण के 12 स्कंध के दूसरे अध्याय में भगवान शुकदेव कहते हैं कि हे परीक्षित, कलियुग का अन्त होते-होते मनुष्यों का स्वभाव गधों जैसा हो जाएगा. लोग गृहस्थी का भार ढोने वाले और विषयी होंगे. इस स्थिति में धर्म की रक्षा के लिए नारायण कल्कि रूप में अवतरित होंगे. शुकदेव ने कल्कि अवतार का स्थान बताते हुए कहा कि ‘सम्भल ग्राम, मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः भवने विष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति. मतलब संभल ग्राम में गौड़ ब्राह्ण विष्णु यश के घर में भगवान का अवतार होगा.
इसी प्रसंग में अवतार का समय बताते हुए कहते हैं कि यदा चन्द्रश्च सूर्यश्चर्य तथा तिष्यबृहस्पती, एकरा शौसमेष्मेयन्ति भविष्यति तदा कृतम. मतलब भगवान उस समय अवतार लेंगे जब चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा, कल्कि भगवान का अवतार सफेद रंग के घोड़े देवदत्त के साथ होगा. उस समय सूर्य तुला राशि में और स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा. वहीं गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होंगे.
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