सिवनी
सिवनी में नशे का बढ़ता जाल: ड्रग्स का गढ़ बनता शहर, युवा गिरफ्त में, प्रशासन पर सवाल!

राष्ट्र चंडिका न्यूज़,सिवनी, मध्य प्रदेश में जहां एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी की पुरजोर वकालत करती रही हैं और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर तरह के नशे को खत्म करने की बात करते थे, वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार में नशे का कारोबार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है। सिवनी शहर में स्थिति बेहद चिंताजनक है, जहां ड्रग पैडलर्स का जाल तेजी से फैल रहा है और युवा पीढ़ी इसकी गिरफ्त में आ रही है।
संगठित गिरोह का आतंक, पुलिस बेबस?
शहर में लगातार ड्रग पैडलर्स पकड़े जा रहे हैं, लेकिन इस गिरोह का सरगना अभी भी पुलिस की पहुंच से दूर है। यह सरगना इतना शातिर है कि वह एक मजबूत नेटवर्क बनाकर इस धंधे को अंजाम दे रहा है। यदि कभी इक्का-दुक्का लोग पकड़े भी जाते हैं, तो इससे नशे के कारोबार पर कोई फर्क नहीं पड़ता। सूत्रों के अनुसार, नशे की यह खेप मुख्य रूप से नागपुर (महाराष्ट्र), रायपुर (छत्तीसगढ़) और मंदसौर (मध्य प्रदेश) से सिवनी पहुंच रही है।
एक चौंकाने वाले खुलासे के तहत, सूत्रों का दावा है कि यदि पुलिस प्रशासन शुक्रवार और शनिवार की रात पेंच नेशनल पार्क, टूरिया स्थित रिसॉर्ट्स में जाकर पड़ताल करे, तो उन्हें सफेद पाउडर (ड्रग्स) का बड़ा कारोबार देखने को मिलेगा, जिससे उनकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी। यह सीधे तौर पर प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाता है।
युवा पीढ़ी पर नशे का कहर
जब नशे के इस बढ़ते प्रचलन की पड़ताल की गई, तो सामने आया कि शहर में 60 प्रतिशत युवा किसी न किसी नशे की गिरफ्त में हैं। नशा मुक्ति संस्थाओं के आंकड़ों के अनुसार, शहर में 22 से 25 साल की आयु वर्ग के युवा सबसे ज्यादा नशे का सेवन करते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत शराब, 8 प्रतिशत स्मैक, 22 प्रतिशत गांजा और 8.78 प्रतिशत एमडी ड्रग या अन्य सूंघने वाले नशों का उपयोग करते हैं।
एमडी (मेथेड्रोन) ड्रग का चलन शहर में 2020 से तेजी से बढ़ा है, और अब यह हाई क्लास सोसायटी के युवाओं में स्टेटस सिंबल बन गया है।
नशे के विभिन्न प्रकार जो शहर में प्रचलित हैं:भांग,अल्कोहल, (शराब),गांजा ,स्मैक,चरस,हेरोइन,अफीम,ब्राउन शुगर,एमडी (मल्टी ड्रग) या मेथेड्रोन (जो अक्सर दो-तीन या चार तरह के कॉम्बिनेशन में होता है)
शहर में नशे का यह बढ़ता जाल न केवल सामाजिक समस्या का रूप ले रहा है, बल्कि युवाओं के भविष्य को भी अंधकार में धकेल रहा है। क्या पुलिस और प्रशासन इस गंभीर खतरे को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा, या यह समस्या इसी तरह बढ़ती रहेगी?