वो सीट जहां एक साथ उतरे 1033 प्रत्याशी, 88 ने नहीं डाले वोट; 50 पेज का बैलेट पेपर, फिर चुनाव आयोग ने 50 गुना बढ़ा दी जमानत राशि
कभी आपने सोचा है कि किसी चुनाव क्षेत्र में प्रत्याशियों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है. अमूमन यह संख्या 20, 30 या फिर 40 तक सोच सकते हैं. लेकिन कुछ सीटों पर चुनाव ऐसे भी हुए हैं जहां उम्मीदवारों की बाढ़ नहीं बल्कि सुनामी ही आ गई थी. इतने ज्यादा उम्मीदवार एक चुनावी क्षेत्र में खड़े हो गए कि चुनाव आयोग को चुनाव की तारीख को एक महीने के लिए टाल देना पड़ा. फिर 50 पेज से अधिक का बैलेट पेपर छपकर आया तब वोट डाले जा सके. यही नहीं वोटिंग का समय भी बढ़ाना पड़ा क्योंकि लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार का नाम तलाश नहीं पा रहे थे. इसके बाद चुनाव आयोग ने सिख लेते हुए जमानत राशि में बंपर बदलाव कर दिया और 50 गुना की वृद्धि कर दी ताकि फिर ऐसी घटना न घटे.
मजेदार बात यह है कि आजाद भारत के इतिहास में यह दिलचस्प चुनाव किसी लोकसभा सीट के लिए नहीं था बल्कि यह विधानसभा के लिए चुनाव था. बात हो रही है साल 1996 की. तब लोकसभा के साथ-साथ कई राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता को खुद अप्रत्याशित रूप से शिकस्त का सामना करना पड़ा था. राज्य में 1967 के बाद बतौर मुख्यमंत्री चुनाव हारने वाली वह पहली सीएम बनीं. इसी चुनाव में मोदाकुरिची नाम से एक विधानसभा सीट है जो इरोड जिले में पड़ती है और उम्मीदवारों की सुनामी यहीं पर आई थी.
रिकॉर्ड 1088 लोगों ने भरा था पर्चा
मोदाकुरिची विधानसभा सीट पर 1996 के चुनाव में 100, 200, 300 या 500 नहीं बल्कि एक हजार से अधिक प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे. चुनाव आयोग के अनुसार, मोदाकुरिची सीट पर 30 महिलाओं समेत 1088 लोगों ने पर्चा भरा था. हालांकि इसमें से 2 महिलाओं समेत कुल 40 लोगों की दावेदारी खारिज कर दी गई. साथ में 13 लोगों ने अपने नाम वापस भी ले लिया. ऐसे में चुनाव मैदान में कुल 1033 उम्मीदवार ही मैदान में बचे. इनमें से 1005 पुरुष तो 28 महिला प्रत्याशी शामिल थे.
उम्मीदवारों की सुनामी के चक्कर में चुनाव आयोग को यहां पर करीब एक महीने के लिए वोटिंग टाल देनी पड़ी. 1033 उम्मीदवारों के लिए बैलेट पेपर छपवाना पड़ा. जब यह पेपर छप कर आया तो यह एक पूरी किताब के शक्ल में थी. हालत यह हो गई कि वोटर्स को अपने पसंदीदा उम्मीदवार की तलाश करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी. आयोग को वोटिंग के लिए समय भी बढ़ाना पड़ा क्योंकि हर किसी को उम्मीदवार का नाम तलाशने में खासा वक्त लग रहा था. लोग यह भी बताते हैं कि बड़े-बड़े बैरल लाए गए थे क्योंकि पहले से निर्धारित बक्से वोट को रखने के लिए पर्याप्त रूप से बड़े नहीं थे.
1029 उम्मीदवार निर्दलीय ही मैदान में
चुनाव के लिए क्षेत्र में 491 पोलिंग बूथ स्टेशन बनाए गए. यहां पर 60.79% वोट पड़े. चुनाव परिणाम आया तो द्रविड़ मुनेत्र कडगम (DMK) की सुब्बुलक्ष्मी जगदीशन के खाते में जीत गई. सुब्बुलक्ष्मी ने 39,540 मतों के अंतर से एडीएमके के किट्टूसामी को हराया था. यहां निर्दलीय प्रत्याशियों की बाढ़ आ गई थी क्योंकि सिर्फ 4 उम्मीदवार ही किसी न किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव में उतरे थे. यानी रिकॉर्डतोड़ 1029 प्रत्याशी निर्दलीय मैदान में थे. चुनाव लड़ने वालों में ज्यादातर लोग किसान वर्ग से थे.
155 को एक वोट, 88 का खाता नहीं खुला
अब बात करते हैं मोदाकुरिची सीट पर पड़ने वाले वोटों की. सुब्बुलक्ष्मी जगदीशन को 64,436 वोट मिले. इनके अलावा 2 अन्य उम्मीदवारों के खाते में 20-20 हजार से अधिक वोट आए. शेष 1033 उम्मीदवारों को 500 वोट भी नहीं मिले. करीब आधे से ज्यादा प्रत्याशी वोट के मामले में दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सके थे. सैकड़े प्रत्याशियों को तो महज 5, 4, 3, 2 और 1 वोट ही मिले. 155 प्रत्याशियों के खाते में महज एक ही वोट आए थे. जबकि 88 वोटर्स तो ऐसे थे जिन्हें एक भी वोट नसीब नहीं हुआ. उन्होंने खुद को भी वोट नहीं दिया.
तब देश के मुख्य चुनाव आयुक्त थे टीएन शेषन. लोगों की नाराजगी और भारी संख्या में प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने का वजह से उन्हें इस क्षेत्र का दौरा करना पड़ा था. हालांकि चुनाव आयोग प्रत्याशियों की सुनामी को लेकर बेहद सजग हो गया और फिर ऐसी घटना न घटे इसके लिए कुछ बड़े फैसले लिए. इसमें सबसे बड़ा फैसला रहा कि नामांकन के दौरान प्रत्याशियों की ओर से जमा कराई जाने वाली जमानत राशि में 50 गुना का इजाफा कर दिया गया.
लोकसभा के लिए 50 गुना बढ़ोतरी
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए हर प्रत्याशी को एक तय राशि जमानत के रूप में जमा कराना अनिवार्य होता है. 1996 के समय चुनाव लड़ने के लिए जमानत राशि बहुत कम हुआ करती थी. लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों को 500 रुपये तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों को 250-250 रुपये की जमानत राशि जमा करानी होती थी. जबकि विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों के लिए यह राशि थी 250 रुपये जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए यह राशि थी 125 रुपये.
2 लोकसभा सीटों नालागोंडा (अविभाजित आंध्र प्रदेश) और बेलगाम (कर्नाटक) में 500 से अधिक प्रत्याशियों की ओर से नामांकन दाखिल करने और तमिलनाडु की मोदाकुरिची विधानसभा सीट पर एक हजार से अधिक प्रत्याशियों के उतरने के बाद चुनाव आयोग ने जमानत राशि में भारी इजाफा कर दिया. आयोग ने लोकसभा चुनाव में जमानत राशि में 50 गुना की तो विधानसभा चुनाव में 40 गुना की वृद्धि कर दी.
2019 में एक सीट से 40 लाख से अधिक का फायदा
नए आदेश के बाद अब लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों को 500 की जगह अब 25 हजार रुपये तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों को 250 की जगह 12500 रुपये जमा कराने होते हैं. इसी तरह विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के लिए 250 की जगह 10 हजार रुपये तो एससी-एसटी के प्रत्याशियों के लिए 125 रुपये की जगह अब 5 हजार रुपये जमा कराना होता है.
मोदाकुरिची विधानसभा सीट पर 1996 के चुनाव में किसान अपनी अनदेखी से नाराज थे. ऐसे में किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए बड़ी संख्या में चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. हालांकि चुनाव आयोग की ओर से जमानत राशि बढ़ाए जाने के बाद भी उम्मीदवार कम नहीं हुए. साल 2019 के संसदीय चुनाव में तेलंगाना की निजामाबाद संसदीय सीट पर 201 लोगों ने पर्चा भरा था, जिसमें 185 उम्मीदवार अंत में मैदान में उतरे. 185 में से एक महिला समेत 183 उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई. अकेले इस सीट पर जमानत जब्त होने से चुनाव आयोग को 40 लाख से अधिक का फायदा हुआ. इस सीट पर बीजेपी के अरविंद धर्मपुरी ने तब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी और बीआरएस प्रत्याशी के कविता को हराया था.
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