कर्नाटक का मुस्लिम आरक्षण लोकसभा चुनाव का मुद्दा बन गया है. भाजपा इसे लेकर लगातार कांग्रेस पर हमलावर है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी आरोप लगाया है कि कांग्रेस सभी मुस्लिमों को ओबीसी कोटे में डालकर पिछड़ों का हक मार रही है. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी कहा है कि कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम समुदाय की सभी जातियों को ओबीसी में शामिल कर लिया है जो संवैधानिक रूप से गलत है.
दरअसल देश में आरक्षण की जो व्यवस्था है वह धर्म के आधार पर न होकर सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए है. भारत में जिन मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है वह मुस्लिमों की वो जातियां हैं जो पिछड़े वर्ग में शामिल हैं. यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत की गई है, जिसमें कहा गया है कि राज्य जिन नागरिकों को पिछड़े वर्ग में मानता है, उन्हें ओबीसी में शामिल कर आरक्षण का लाभ दे सकता है. हालांकि कर्नाटक समेत भारत के पांच राज्य ऐसे हैं जहां सभी मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. ऐसा करने के लिए संबंधित राज्यों में सभी मुस्लिमों को ओबीसी मान लिया गया है. कर्नाटक का मामला ताजा है इसीलिए उस पर सवाल उठाया जा रहा है. इससे पहले तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव के दौरान इस मुद्दे ने जोर पकड़ा था.
देश के इन पांच राज्यों में सभी मुस्लिम ओबीसी में शामिल
देश में उन्हीं मुस्लिम जातियों को आरक्षण मिलता है जो या तो केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं या फिर राज्य की. समय-समय पर राज्य इन सूचियों में फेरबदल करते हैं और आरक्षण से छेड़छाड़ के बिना अन्य जातियों को इसमें शामिल कर लेते हैं. हालांकि देश में कर्नाटक समेत पांच राज्य ऐसे थे जहां सभी मुसलमानों को ओबीसी में शामिल किया गया था. इनमें केरल और तमिलनाडु सबसे आगे हैं. इसके अलावा तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक इस सूची में शामिल हैं. खासतौर से तेलंगाना में निवर्तमान सीएम के चंद्रशेखर राव लगातार मुस्लिमों के लिए ओबीसी की उप श्रेणी में फिक्स 4 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते थे. उन्होंने विधानसभा में भी एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केंद्र सरकार ने नामंजूर कर दिया था.
देश के अन्य प्रदेशों में यह व्यवस्था
बाकी बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश राजस्थान समेत उत्तर भारत के सभी राज्यों में मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों को ही ओबीसी कोटे के आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. समय-समय पर मुस्लिम समुदाय की पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए ओबीसी कोटे में शामिल कर लिया जाता है.
कर्नाटक में ही बवाल क्यों?
कर्नाटक में आरक्षण के मुद्दे पर हो रहे इस बवाल की पटकथा उस समय लिखी गई थी जब प्रदेश में विधानसभा चुनावों का ऐलान नहीं हुआ था. दरअसल निवर्तमान सीएम बोम्मई ने चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले कर्नाटक में सभी मुस्लिमों को ओबीसी कोटे में से मिल रहे 4 प्रतिशत आरक्षण के कोटे को खत्म कर दिया था. भाजपा सरकार के इस कदम से पहले राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षित 32 प्रतिशत कोटा में एक 4 प्रतिशत की उपश्रेणी बनाई गई थी, जिस पर सिर्फ मुस्लिमों का हक था.
भाजपा ने ये कोटा लिंगायतों और वोक्कालिगा समुदाय के बीच बांट दिया था. इसके बाद देश के होम मिनिस्टर अमित शाह ने तेलंगाना के भी ये ऐलान किया था और कहा था कि अगर हमारी सरकार तेलंगाना में बनती है तो वहां भी मुस्लिमों के लिए फिक्स 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा. कर्नाटक में भाजपा की तत्कालीन सरकार का कांग्रेस ने विरोध किया था और वादा किया था कि सरकार बनने पर वह मुस्लिमों का कोटा फिर बहाल कर देगी. बाद में भाजपा के आरक्षण रद्द करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.
कर्नाटक में कैसे खुला मामला
आरक्षण पर कर्नाटक में जो बहस छिड़ी है इसका खुलासा राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने किया था. दरअसल आयोग को जानकारी मिली थी की कर्नाटक में ओबीसी कोटे में खेल हुआ है. इसकी जांच की गई तो सामने आया कि पिछले साल सरकारी पीजी मेडिकल कॉलेज की 930 सीटों में से 150 सीटों पर मुस्लिम वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया गया जो कुल 16 प्रतिशत है. इस जांच में यह भी सामने आया था कि आरक्षण का लाभ पाने वाली कई मुस्लिम जातियां ऐसी हैं जो पिछड़ों में नहीं आतीं. इस मामले में कर्नाटक के मुख्य सचिव को भी तलब किया गया है. हालांकि अब ये मुद्दा चुनावी हो गया है और इसे ही लेकर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं.
क्या मुस्लिमों को आरक्षण मिलना गलत है?
देश भर में मुस्लिमों के एक अनुपात को पहले ही ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. दरअसल ओबीसी का मतलब अन्य पिछड़ा वर्ग है. यानी इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में यहां पिछड़ा वर्ग के मुस्लिमों को मिल रहे आरक्षण पर सवाल नहीं है. कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि सवाल सिर्फ इस बात पर है कि किसी भी प्रदेश के सभी मुस्लिम समुदाय आखिर पिछड़े कैसे हो सकते हैं. यह मामला कई बार कोर्ट में भी पहुंच चुका है. दलित मुसलमान भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर खुद को अनुसूचित जाति को मिलने वाले ओबीसी कोटे में शामिल किए जाने की मांग कर चुके हैं. यह मामला अभी तक लंबित है.
आंध्रप्रदेश का मामला कोर्ट में, मुस्लिमों को मिल रहा 5 प्रतिशत आरक्षण
आंध्रप्रदेश की कुल आबादी की तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. इनमें से कई समूह राज्य की ओबीसी सूची में शामिल हैं. इसमें सभी मुस्लिमों को ओबीसी में शामिल करने के लिए 2004 में कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था. इसमें मुस्लिमों केा 5 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी. 2 माह बाद आंध्रपदेश हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने जून 2005 में फिर एक अध्यादेश जारी कर 5 प्रतिशत कोटे का ऐलान कर दिया. जब इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो सरकार ने इसे कानून बना दिया.
दरअसल इस बार सरकार ने पूरी तैयारी के साथ पिछड़ा वर्ग आयोग से ये सिफारिश कराई थी राज्य के सभी मुस्लिम सामाजिक शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. उस समय राज्य में आरक्षण की सीमा 46 प्रतिशत थी. इसीलिए सरकार ने तर्क दिया कि प्रदेश में मुस्लिमों को 5 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए. हालांकि हाईकोर्ट ने फिर इसे रद्द कर दिया. सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इस पर स्टे लग गया. इस मामले में 2022 में सुनवाई होनी थी, क्योंकि प्रदेश में आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर रहा था. हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर EWS कोटा बनने के बाद आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पार कर गई और यह मामला अभी तक लंबित है. वर्तमान में आंध्रप्रदेश में सभी मुस्लिमों को 5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है.
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