मुस्लिम सियासत के चेहरे ओवैसी-अजमल और पीरजादा, क्या 2024 में अपना-अपना दिखा पाएंगे असर?

देश की सियासत में AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, AIUDF के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल और ISF के अब्बास सिद्दीकी खुद को मुस्लिम राजनीतिक के तौर पर स्थापित करने में जुटे है. इन तीनों मुस्लिम नेताओं का अपना-अपना सियासी दायरा है. अजमल खुद को असम तक, तो सिद्दीकी पश्चिम बंगाल तक सीमित कर रखे हैं, लेकिन ओवैसी हैदराबाद के साथ-साथ देशभर के अलग-अलग राज्यों में मुस्लिम राजनीति को खड़े करने में जुटे हैं. इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम सियासत का लिटमस टेस्ट होना है.

बदरुद्दीन अजमल असम की सियासत के मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. मुस्लिम वोटों के सहारे किंगमेकर बनने का सपना लंबे समय से संजोए रखे हैं और इस बार राज्य की 14 में से 3 सीट पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है. वहीं, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों के सहारे सियासी जमीन तलाश रहे अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) प्रदेश की 42 लोकसभा सीटों में से 30 सीट पर चुनाव लड़ रही है. हालांकि, ISF के एकलौते विधायक नौशाद सिद्दीकी ने पहले डायमंड हार्बर सीट से अभिषेक बनर्जी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में पीछे कदम खींच लिया.

असदुद्दीन ओवैसी खुद हैदराबाद सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. पिछले चुनाव में हैदराबाद के साथ महाराष्ट्र की औरंगाबाद सीट भी ओवैसी की पार्टी जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन किशनगंज सीट पर कुछ वोटों से पीछे रह गई थी. ओवैसी इस बार इन तीनों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. यूपी में एक भी सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है तो राजस्थान, पश्चिम बंगाल और झारखंड में चुनाव नहीं लड़ रहे. इस तरह से ओवैसी ने 2024 के चुनाव में चुनिंदा सीटों पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हालांकि, पहले बिहार से लेकर महाराष्ट्र और यूपी तक में अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में अपना फैसला बदल दिया है.

असम में अजमल का कितना असर

असम में करीब 34 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इन्हीं मुस्लिम वोटों के सहारे बदरुद्दीन अजमल 2009 से असम में राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं. 2014 में अजमल खुद जीतने के साथ तीन सीटें जीती थीं, जबकि 2019 में सिर्फ एक पर सिमट गई. इस बार AIUDF ने तीन लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें बदरुद्दीन अजमल चौथी बार धुबरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अजमल की पार्टी ने दो और लोकसभा सीटों नागांव और करीमगंज में उम्मीदवार उतारे हैं, करीमगंज से सहाबुल इस्लाम चौधरी और नागांव से अमीनुल इस्लाम मैदान में है.

धुबरी, नागांव और करीमगंज सीट पर मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में है, जिसके चलते अजमल ने दांव खेला है. ये सीटें बीजेपी विरोधी दलों के लिए मुफीद मानी जा रही थीं. धुबरी एआईयूडीएफ प्रमुख बदरुद्दीन अजमल का गढ़ रहा है. वह लगातार तीन बार से जीत भी रहे हैं, लेकिन इस बार उनके सामने कड़ी चुनौती है. करीमगंज और नागांव सीट पर बीजेपी का कब्जा है, जिसे अजमल ने छीनने के लिए अपने दिग्गज नेताओं को उतारा है. ऐसे में अजमल के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम वोटों को जोड़े रखते हुए 2014 की तरह प्रदर्शन दोहराने की है?

बंगाल में सिद्दीक दिखा पाएंगे कमाल?

पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. मुस्लिमों के सहारे कांग्रेस, लेफ्ट के बाद ममता बनर्जी अपना दबदबा बनाए हुए हैं, लेकिन अब फुरफुरा सरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी मुसलमानों की राजनीति खड़ी करने में जुटे हैं. इसके लिए उन्होंने इंडियन सेक्युलर फ्रंट नाम से राजनीतिक दल का भी गठन किया. कांग्रेस और लेफ्ट भले ही एक सीट नहीं जीत सकी, लेकिन नौशाद सिद्दीकी एसएफआई से जीतने में कामयाब रहे. इस बार के लोकसभा चुनाव में अब्बास सिद्दीकी ने 30 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं. वे खासकर ऐसी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जहां पर मुस्लिम समुदाय बड़ी संख्या में है. पीरजादा के उतरने से कांग्रेस-लेफ्ट ही नहीं ममता बनर्जी के लिए भी चिंता बढ़ गई है. देखना है कि मुस्लिम समुदाय क्या उन पर भरोसा करता है या फिर ममता के साथ मजबूती से खड़ा रहता है?

ओवैसी की मुस्लिम सियासत?

असदुद्दीन ओवैसी भारतीय राजनीति में खुद को मुस्लिम चेहरे के तौर पर स्थापित करने में जुटे हैं. 2014 के बाद से देशभर में ओवैसी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है. 2019 में ओवैसी हैदराबाद सीट से खुद जीतने के साथ-साथ महाराष्ट्र के औरंगाबाद सीट से इम्तियाज जलील AIMIM से जीतने में कामयाब रहे थे. किशनगंज सीट से AIMIM प्रत्याशी अख्तरुल ईमान तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन करीब 3 लाख वोट पाने में कामयाब रहे थे. इस बार AIMIM इन्हीं तीनों सीट पर फोकस कर रही है, जिसके चलते बाकी राज्यों में चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए है.

बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में पांच सीटें जीतने में सफल रही, जिसमें चार विधायक आरजेडी के खाते में चले गए. अख्तरुल ईमान ही इकलौते AIMIM विधायक है, जो पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हुए हैं. ओवैसी ने किशनगंज सीट से एक बार फिर से अख्तरुल ईमान को उतारा है, जिसके चलते बिहार की बाकी सीटों पर चुनाव लड़ने की रणनीति को टाल दिया है. बिहार में ओवैसी सिर्फ तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं, लेकिन मुस्लिम वोटर उनके साथ पहले की तरह खड़ा दिखाई नहीं दे रहा है.

मुस्लिम पैटर्न बढ़ा रहा टेंशन

बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के बीच लोकसभा चुनाव सिमटता जा रहा है. इस तरह एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की लड़ाई में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न मुस्लिम सियासत के सहारे जमीन तलाशने वाले नेताओं की टेंशन बढ़ा रहे हैं. इसकी वजह ये है कि मुस्लिमों का बड़ा तबका गठबंधन के साथ खड़ा नजर आ रहा है, जिसके चलते ही ओवैसी ने यूपी में लोकसभा चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए है. विपक्ष लगातार ओवैसी से लेकर अजमल और अब्बास सिद्दीकी तक को बीजेपी की बी-टीम बताता रहा है. 2024 में मुस्लिम सियासत के चेहरे माने जाने वाले तीनों ही नेता बीजेपी की बी-टीम के नैरेटिव को हर हाल में तोड़ना चाहते हैं. इसके अलावा मुस्लिम वोटों का भी झुकाव जिस तरह से इंडिया गठबंधन की तरफ होता दिख रहा है, उससे उनकी चिंता बढ़ गई है.

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