देश का गरीब आदमी जो अभी मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपना पेट भर लेता है, उसका शोषण ना हो, इसलिए देश में अभी ‘न्यूनतम मजदूरी’ की व्यवस्था है. इसी के हिसाब से खेतिहर मजदूर की दिहाड़ी से लेकर मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों का मेहनताना तय होता है. लेकिन न्यूनतम मजदूरी का ये हिसाब-किताब जल्द बदल सकता है. सरकार इसकी तैयारी कर रही है. चलिए जानते हैं इसके बारे में…
दरअसल सरकार देश में न्यूनतम मजदूरी की बजाय, लोगों के गुजारा करने लायक मेहनताने (लिविंग वेज) की व्यवस्था लाने के पक्ष में है. इस संबंध में सरकार ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन) की मदद भी मांगी है. ताकि सरकार तकनीकी तौर पर इसे कैसे लागू करे, उसके बारे में पुख्ता तैयारी कर सके. आखिर क्या बदलेगा नई व्यवस्था में…
ऐसे बदलेगा न्यूनतम मजदूरी का हिसाब-किताब
अगर सरकार नई व्यवस्था लाती है, तो किसी व्यक्ति के लिए मेहनताने का आधार रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरतों पर होने वाले खर्च को बनाया जाएगा. हर सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए वहां आने वाले खर्च के हिसाब से मेहनताना तय होगा. मौजूदा व्यवस्था में लेबर प्रोडक्टिविटी और स्किल को आधार बनाया जाता है.
अभी देश में 176 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी, मिनिमम वेज होती है. साल 2017 से इसमें कोई बदलाव भी नहीं हुआ है. ये देश में वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को भी सही तरीके से नहीं करती है.
क्या नई व्यवस्था होगी ज्यादा फायदेमंद?
माना जा रहा है कि देश में नई व्यवस्था आने से लोगों को पहले से अधिक मेहनताना मिलने लगेगा. भारत में फिलहाल 50 करोड़ से ज्यादा लोग दैनिक मजदूरी पर गुजारा करते हैं. इसमें भी 90 फीसदी से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूर है. मजदूरी को लेकर तय होने वाली नई व्यवस्था से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को बड़ा लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है. वहीं इसका एक और फायदा ये होगा कि ये अलग-अलग सेक्टर्स में काम करने वाले लोगों के बीच वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को थोड़ा बेहतर बना सकता है.
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