महाभारत की कथा तो आपने सुनी ही होगी, यह कथा कौरवों और पांडवों की बीच हुए धर्म और अधर्म की की लड़ाई थी. इस युद्ध के हर पहलू में कहानियां जुड़ी हुई है. महाभारत युद्ध के दौरान बहुत सी घटनाएं हुई जो आज तक लोगों के लिए शिक्षा का सबब बनती है. इस युद्ध के समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर ने अपनी माता कुंती को एक श्राप दे दिया था. लेकिन प्रश्न यह है कि जो पांडव अपनी माता से इतना प्रेम करते थे तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि युधिष्ठिर को यह कदम उठाना पड़ा?
युधिष्ठिर कर रहे थे शोक
महाभारत का युद्ध जीतने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर युद्ध में मारे गए अपने परिजनों और रिश्तेदारों का तर्पण कर रहे थे. जिसके लिए वह लगभग एक माह तक गंगा तट पर ही रुके थें. इस दौरान बहुत से ऋषि मुनि, महात्मा युधिष्ठिर को सांत्वना देने आए जिसमें देवऋषि नारद का भी आना हुआ और उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा की क्या आप दुर्योधन को हराकर और धर्म की विजय पाकर प्रसन्न नहीं है.
अपनों की मृत्यु की थी पीड़ा
युधिष्ठिर ने नारद जी को के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि इस युद्ध में मुझे जीत तो मिली लेकिन साथ ही मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का सता रहा है कि अपने लालच के कारण हमने अपनों को ही मार डाला है. अभिमन्यु की मृत्यु से जो दुख द्रौपदी को मिला उसे देखकर मैं अपनी इस जीत को नहीं मानता, इतने सारे योद्धाओं को मारने के बाद जब मुझे यह पता चला की कर्ण हमारे सबसे बड़े भाई थे, हम पांचों भाई इस बात से अंजान थे लेकिन कर्ण इस बात को जानते थें कि वह हमारे बड़े भाई है और हमने अंजाने में अपने ही बड़े भाई की हत्या कर दी है.
माता कुंती को दिया श्राप
युधिष्ठिर, नारद जी के समक्ष विलाप कर ही रहे थे तभी वहां उनकी माता कुंती आ गई और सांत्वना देने लगी, मां कुंती की बातें सुन युधिष्ठिर क्रोध में आ गए और अपनी मां से कहा कि आपने हमसे इतनी बड़ी बात छिपाकर हमें अपने बड़े भाई का हत्यारा बना दिया है. यह कहने के बाद युधिष्ठिर ने क्रोध में आकर अपनी मां कुंती समेत पूरी नारी जाति को श्राप देते हुए कहा कि मैं आज समस्त नारी जाति को श्राप देता हूं कि वे चाहकर भी कोई बात अपने ह्रदय में छिपाकर नहीं रख सकेंगी
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