नोटबंदी से लेकर अनुच्छेद 370 तक…2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए कई ऐतिहासिक फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के वर्ष 2023 में कई बड़े फैसले सुनाए, जिनमें जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने, नोटबंदी संबंधी केंद्र के निर्णयों का बरकरार रखना तथा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किए जाने जैसे निर्णय शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में शीर्ष अदालत ने एक जनवरी से 15 दिसंबर, 2023 के बीच अभूतपूर्व रूप से 52,191 मामलों का निपटारा करके एक रिकॉर्ड बनाया। इसने पिछले वर्ष लगभग 40,000 मामलों का निपटारा किया था।

मोदी सरकार को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और नोटबंदी के फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट से जोरदार समर्थन मिला, लेकिन शीर्ष अदालत के एक आदेश में यह माना गया कि राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर विधायी एवं कार्यकारी नियंत्रण है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि मुख्य चुनाव और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और देश के प्रधान न्यायाधीश की समिति की सलाह पर की जाएगी।

हालाँकि, इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर केंद्र ने एक नया कानून तैयार किया और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम में संशोधन भी कर दिया। अब प्रधान न्यायाधीश चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन के लिए समिति का हिस्सा नहीं होंगे, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के दो मार्च के फैसले में परिकल्पना की गई थी। नए जीएनसीटीडी अधिनियम के माध्यम से केंद्र ने दिल्ली सरकार से सेवाओं पर नियंत्रण भी छीन लिया।

शीर्ष अदालत अब संशोधित जीएनसीटीडी अधिनियम के खिलाफ दिल्ली सरकार की नई याचिका पर फिर से विचार कर रही है। कॉलेजियम की सिफारिश पर संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट तथा केंद्र के बीच जारी रस्साकशी के बावजूद, शीर्ष अदालत ने वर्ष के अधिकांश समय 34 जजों की पूरी संख्या के साथ काम किया और शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पदों के लिए सभी 14 शीर्ष सिफारिशों को तत्परता से मंजूरी दी गई।

अपने विवाहों को कानूनी मान्यता दिलाने और गोद लेने, स्कूलों में माता-पिता के रूप में नामांकन, बैंक खाते खोलने और उत्तराधिकार जैसे अधिकारों के लिए समलैंगिक समुदाय की दशकों पुरानी उम्मीद उस समय धराशायी हो गई, जब पांच जजों की संविधान पीठ ने खंडित फैसला सुनाया और कहा कि मुद्दा संसद के विवेक पर निर्भर है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) प्रमुख के रूप में संजय कुमार मिश्रा को बार-बार सेवा विस्तार देने पर भी केंद्र को शीर्ष अदालत से आलोचना का सामना करना पड़ा और इसे “अवैध” ठहराया। केंद्र ने अनुच्छेद 370 को हटाने पर कानूनी लड़ाई जीत ली और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इसके प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा। हालाँकि, शीर्ष अदालत ने वर्तमान केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का “जल्द से जल्द” राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर, 2024 तक राज्य विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया।

केंद्र सरकार को एक झटका तब लगा, जब 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अधिक मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली उसकी उपचारात्मक याचिका खारिज कर दी गई। अडाणी समूह से जुड़े एक मामले में, शीर्ष अदालत ने स्टॉक मूल्य में हेरफेर के आरोपों पर अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद पर एक जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, केरल और तेलंगाना में विधेयकों को मंजूरी देने तथा विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में राज्य के राज्यपालों तथा विधानसभा अध्यक्षों की विवेकाधीन शक्तियां भी शीर्ष अदालत की पड़ताल के दायरे में आईं। महाराष्ट्र में शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच विवाद पर अदालत ने फैसला सुनाया कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार को बहाल नहीं कर सकती, क्योंकि शिवसेना नेता ने अपनी पार्टी में विद्रोह के मद्देनजर बहुमत परीक्षण के बिना इस्तीफा देने का फैसला किया, जिससे एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बने रहने का रास्ता रास्ता साफ हो गया। बाद में, इसने महाराष्ट्र में प्रतिद्वंद्वी शिवसेना गुटों द्वारा एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिकाओं पर विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के लिए निर्णय लेने की समयसीमा 31 दिसंबर से बढ़ाकर 10 जनवरी, 2024 तक कर दी।

शीर्ष अदालत ने पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपालों द्वारा राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति देने में देरी किए जाने पर सख्त रुख अपनाया। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रैलियों और धार्मिक कार्यक्रमों में नफरत फैलाने वाले भाषणों पर ध्यान देते हुए कहा कि वह इनसे निपटने के लिए एक मशीनरी स्थापित करने पर विचार कर रहा है। इस वर्ष महत्वपूर्ण मामलों की मैराथन सुनवाई हुई, जिसमें अदालत के 1998 के फैसले पर पुनर्विचार भी शामिल है, जिसमें कहा गया था कि सांसदों को भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट प्राप्त है।

इसके अलावा 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी शामिल हैं। इन मामलों में फैसले 2024 में आने की उम्मीद है। शीर्ष अदालत अगले साल राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी अपना फैसला सुनाएगी।

दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण से संबंधित मामलों ने भी शीर्ष अदालत को व्यस्त रखा। इसने कड़ी टिप्पणियाँ कीं और खतरे को रोकने के लिए निर्देश पारित किए। शीर्ष अदालत ने मणिपुर में जातीय हिंसा से प्रभावित लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए भी कदम उठाया और लोगों की सुरक्षा, पुनर्वास तथा मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट की तीन पूर्व महिला जजों की एक समिति गठित करने सहित कई निर्देश पारित किए।

मीडिया की स्वतंत्रता की वकालत करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी नीतियों की आलोचना को “प्रतिष्ठान विरोधी” नहीं कहा जा सकता तथा मलयालम समाचार चैनल ‘मीडियावन’ पर केंद्र के प्रसारण प्रतिबंध को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने जानवरों से संबंधित कई मामलों को भी निपटाया, जिसमें मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीका से स्थानांतरित आठ चीतों की मौत का मामला भी शामिल है।

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