भोपाल। साकेत नगर की रहने वाली 76 वर्षीय महिला ने भरण-पोषण के लिए अपने इकलौते बेटे के खिलाफ याचिका लगाई थी। बुजुर्ग महिला ने शिकायत की थी कि उसे हाइपरटेंशन, स्पांडिलाइटिस, आर्थराइटिस जैसी गंभीर बीमारियां हैं। पति के पीएफ से हर माह एक हजार रुपये प्रतिमाह मिलता है, जिससे गुजारा करना मुश्किल होता है। वहीं बेटा ने तर्क रखा कि मां की दवाइयों का खर्च उठाता हूं, लेकिन हर माह भरण-पोषण नहीं दे पाता हूं, क्योंकि प्रायवेट नौकरी करता हूं और 40 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है। इस मामले में शनिवार को नेशनल लोक अदालत में आयोजित कुटुंब न्यायालय में मां-बेटे के बीच समझौता कराया गया।
न्यायाधीश के समझाने पर माना
न्यायाधीश ने बेटे को समझाया कि मां उनकी जिम्मेदारी है, उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। इसके बाद बेटे ने अपनी मां की देखभाल करने का शपथ पत्र भर कर दिया। साथ ही हर माह मां को 12 हजार रुपये भरण पोषण भी देगा। कुटुंब न्यायालय की चारो बेंच में कई दंपतियों के बीच भी आपसी सहमति कायम करते हुए विवादों का निराकरण किया गया।
पत्नी ने केस वापस लिया
एक व्यवसायी दंपती के बीच शादी के पांच बाद ही तलाक तक मामला पहुंच गया था। मामले में पत्नी की शिकायत थी कि उसे ससुराल वाले शादी के बाद से ही प्रताड़ित करते हैं। पति भी हमेशा डांटते रहते हैं। इस कारण वह दो साल से अपने मायके भी थी। करीब छह माह से उसकी काउंसलिंग चल रही थी। शनिवार को पत्नी ने पति के खिलाफ लगाए सभी केस वापस ले लिए और दोनों ने न्यायाधीश को धन्यवाद दिया कि काउंसलिंग के कारण उनका रिश्ता बच गया।
बच्चे की खातिर हुए एक
शादी के चार साल बाद एक दंपती के बीच अलगाव और भरण-पोषण का मामला पहुंचा। दोनों की शादी 2019 में हुई थी। शादी के बाद से लड़की को ससुराल वाले परेशान करते थे। जब पत्नी गर्भवती थी तो उसे मायके पहुंचा दिया। एक बेटा हुआ। फिर भी उसे ससुराल वाले लेने नहीं आए। पत्नी ने भरण-पोषण का केस लगा दिया। डेढ़ साल के बेटे की खातिर दोनों के बीच समझौता हुआ। एक दूसरे मामले में दंपती के बीच समझौता हुआ। एक दंपती की शादी को आठ साल हो गए थे। घरेलू विवाद के कारण दोनों एक साल से अलग रह रहे थे। काउंसलिंग के बाद दोनों अपने बच्चों के खातिर समझौता कर एक साथ घर गए।
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