सनातन के विरोध में चल रहे कुचक्र के विरोध में मै हमेशा मुखर रहूंगा-रामभद्राचार्य

राष्ट्र चंडिका न्यूज़,सिवनी- सिवनी के पालीटेक्रिक ग्राउंड में चल रही भक्तियम  श्रीराम कथा के सातवें दिन कथावाचक तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरू रामनंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य  महाराज ने भगावान श्रीराम के त्याग स्वारूप का सुंदर वर्णन करते हुये कथा स्थल पर उपस्थित विशाल जनसमुदाया को संबोधित करते हुये बताया कि भारत देव भूमि है सनातन की भूमि है जहाँ भगवान श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुये राजपाठ छोड़कर वनवासी हो गये । भगवान श्रीराम के वनवास कथा को सुदर वर्णन करते हुये रामचरित्र मानस के सुंदर पक्षों का मार्मिक चित्रण किया उन्होंने बताया कि राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम के वन गमन के सांकेतिक रूप से करने के लिये अपने विश्वनीय मंत्री सुमंत  को साथ भेजा और कहा कि श्रीराम को वन घुमाकर बापिस ले आना परंतु भगवान श्रीराम ने धर्म और परंपरा का की बाते बताकर समझाया और उनके साथ बड़ी संख्या में गये आयोध्यावासियों को छोड़कर श्रीराम माता सीात और भ्राता लक्ष्मण के साथ वन की ओर प्रस्थान कर गये । कथा को आगे बढाते हुये स्वामी राम भद्राचार्य  ने भगवान राम एवं केवट से संबंधित सुंदर संवाद का चित्रण करते हुये बताया कि  प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा। भगवान केवट के समीप आए। गंगाजी का किनारा भक्ति का घाट है और केवट भगवान का परम भक्त है, किंतु वह अपनी भक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहता था। अत: वह भगवान से अटपटी वाणी का प्रयोग करता है और केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण धुलवाने के लिए मुझे आदेश दे दीजिए, तो मैं आपको पार कर दूंगा क्योंकि आपके चरणों की धूलि जिस जड़ वस्तु को लगती है वह मनुष्य रूप लेता है और यह नाव मेरी रोजी रोटी है इसलिये मैं आपके चरणों को धो-धोकर धुलि साफ करूंगा तभी नाव में बैठा पाऊंगा । केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा। उसने भगवान से उनके चरणों का प्रक्षालन मांगा। केवट की नाव से गंगा पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। सीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर-मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया, किंतु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिया। जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसे भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया।जगद्गुरू रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि भाई का जो दायित्व भरत ने निभाया और जो त्याग भरत ने किया वह आज तक के संसार में सबसे श्रेष्ठ है। अयोध्या जैसा राज्य मिलने पर भी उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया और अपने बड़े भाई भगवान श्रीराम को मनाने व राज्य वापस लौटाने के लिए स्वयं वन में चले गए, जबकि वे चाहते तो स्वयं राजा बन सकते थे।महाराज ने कहा कि आज के समय में छोटी छोटी बातों पर भाई भाई से लड़ रहा है। परिवार विखंडित हो रहे हैं। भाइयों के परिवार एक जगह नहीं रह सकते। संपत्ति के विवाद हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे संस्कार नहीं थे और ना ही संस्कृति।

उन्होंने भरत चरित्र सुनाते हुए कहा कि कैकयी ने अपने वचनों के बदले भरत के लिए पूरी अयोध्या का राज्य मांग लिया था और पिता की आज्ञा पाकर भगवान श्रीराम भी भरत के लिए राज्य का त्याग कर वनवास चले गए, लेकिन जब भरत को यह बात पता चली तो उन्होंने अपनी माता कैकयी का ही त्याग कर दिया और भगवान राम को मनाने वन को चले गए। जहां उन्होंने श्रीराम को मनाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन पिता के वचन से बंधे राम ने भी उन्हें धर्म की नीति समझाकर वापस भेज दिया। इसके बाद भी भरत ने राज्य को स्वीकार नहीं किया और श्रीराम की चरण पादुकाएं लाकर उन्हें राज्य सिंहासन पर रखकर अपने बड़े भाई का इंतजार किया।  महाराज जी ने कहा कि इतना ही नहीं पूरे 14 वर्ष तक स्वयं भरत ने भी वनवासी की तरह जीवन यापन किया। वे अयोध्या के पास ही कुटिया बनाकर वहां रहने लगे। वनवासी वेश धारण कर लिया और जमीन पर ही सोते। उन्होंने कहा कि भला ऐसा प्रेम और कहां देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि हम सभी को भरत और भगवान श्रीराम के जीवन से आपसी रिश्तों के प्रेम का महत्व समझना चाहिए। महाराज जी ने कहा कि भरत जैसा कोई राम भक्त नहीं जो भक्ति में रत रहता है वह भरत । स्वामी रामभद्राचार्य  ने बिहार के शिक्षा मंत्री और स्टालिन के बयान पर कटाक्ष करते हुये कहा कि सनातन के विरोध में चल रहे कुचक्र के विरोध में मै हमेशा मुखर रहूंगा जिसे कोई सनातन की श्रेष्ठ पर शंका हो वह मुझसे कही भी चर्चा कर सकता है । श्रीराम कथा के सातवे दिन मूसलाधार बारिश के बीच अपार जनसमुदाय उपस्थित रहा । स्वामी रामभद्राचार्य  ने कहा कि राम कथा का मैं निजि उपयोग में एक भी रूपया नहीं लेता उन्होंने सिवनी विधायक दिनेश राय मुनमुन के भाव की प्रशंसा की और सनातन की श्रेष्ठता पर श्रोताओं से गर्व करने को कहा और कहा कि भगवान श्रीराम के प्रति भरत जी को जो पे्रम था वह प्रेम सभी अपने ह्रदय में प्रगट करे श्रीराम और भरत जी का जो प्रेम था वह अद्वितीय था ।

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