अपराधी से ये मिले या अपराधी इनसे भला तो बटलरों का होना तय

अपराधियों में बटलर का तिलस्म खजाना नजर आता है

 

राष्ट्र चंडिका सिवनी। अखबार समाज का दर्पण होता है और यह दर्पण अच्छाई बुराई का अहसास कराता है लेकिन सरकारी नुमाईंदों ने इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्र खड़ा कर दिया है हम लगातार पुलिस विभाग की बुराईयों को सामने रखने का प्रयास करते है हमारी इस महकमें से कोई बुराई नही है लेकिन जिला मुख्यालय की कोतवाली में पदस्थ सुरेश सोनी बंटा को लेकर पीडि़त पक्ष ने अपनी पीड़ा को हम तक पहुंचाने का प्रयास किया और हमने अपने पत्र में स्थान देकर सरकारी नुमाईंदों के तीसरे नेत्र को खोलने का प्रयास किया है।

आज हम प्रकाशित समाचार में जो बात रख रहे है उसमें कितनी सच्चाई है यह तो हमारा पाठक अच्छी तरह जानता है बंटा सोनी ने पुलिस विभाग को तिलस्मी खजाना मान लिया है और जिस क्षेत्र में भी वे जाते है तो उन्हें मुल्जिम भी उस खजाने के जैसे दिखता है क्योंकि उनके पास उस मुजरिम से किस तरह व्यवहार करते हुए चढ़ौत्री लेनी है उसके लिए कौन सा मंत्र पढऩा है सब जानते है।

आपराधिक गतिविधियों में जुआ-सट्टा जो युवा पीढ़ी के लिए बड़ी बीमारी है इस तरह अवैध वाहनों में जानवरों के परिवहन के अतिरिक्त अनेक अवैध मादक पदार्थ सहित अन्य मामलों में अगर तह में जाने पर इसमें जुड़े तार अनेकों जिले में लंबे समय से जमे पुलिसकर्मियों की ओर इशारा करते है अपराधों से जुड़े ये तार इसलिए भी माने जाते है क्योंकि इन पुलिसकर्मियों का कोतवाली से बरसों पुराना नाता रहता है कोतवाली में रहते हुए यह अपराधियों को साध लेते है या फिर अपराधी इन्हें साध लेते है कहावत यह है कि चाकू सेब पर गिरे या सेब चाकू पर गिरे कटना तो सेब को ही ठीक उसी तरह अपराधी इनसे मिले या ये अपराधी से मिले लाभ तो इनको ही होता है।

एक शायर ने कहा है कैसे-कैसे मंजर सामने आने लगे है गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे है अब तो इस तालाब का पानी बदल दो कमल भी अब मुरझाने लगे है जिसने भी यह बात कही ऐसा लगता है कि उसकी नजर बंटा सोनी पर जरूर पड़ी क्योंकि इनकी काली कारतूत के कारण अब यहा पर अच्छे कर्मचारियों पर उंगली उठाई जा रही है यहां तक की वर्दी पर भी दाग लग रहे है क्या विभाग के मुखिया सिर्फ सबूत लाने की बात कहकर इतिश्री कर देंगे। क्या उन्हें विभाग के अच्छे कर्मचारियों के भविष्य की चिंता नही है ऐसे तमाम प्रश्र विभाग के लिए यक्ष प्रश्र बनकर रह गये है।

दर्पण में जो दिखता है वह सच दिखता है इसमें झूठ की कोई गुंजाईश नही होती और समाज अखबार को दर्पण मानता है नगर में बढऩे वाले अपराधों में वर्षो से जमे पुलिसकर्मी शामिल होते है जो नौकरी तो पुलिस की करते है मगर जनचर्चा में यह भी है कि चाकरी यह उन लोगों की करते है जिसे समाज क्रमिनल मानते है कुछ माह बाद ही लोग तंत्र का महा उत्सव मतदान होना है और ऐसे में समाज की सुरक्षा का कवच पहने सुरेश सोनी बंटा जैसे लोग क्या वास्तव में समाज को दिशा दे पायेंगे यह चिंता का विषय है।

दुख तो तब होता है कि हमारे विधायक सांसद से लेकर नगर के प्राथमिक नागरिक जैसे लोग भी ऐसे लोगों पर कार्यवाही करने के लिए नही कहते है आज सुरेश बंटा जैसे लोगों के कारण प्रजातंत्र की इबारत तार-तार हो

रही है।

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