आदिवासी नेताओ को नजर अंदाज करना सिवनी और केवलारी विधानसभा में कांग्रेस को पड़ सकता है महंगा

सिवनी और केवलारी में कांग्रेस जीती तो खुराना की हो जाएगी चमक खत्म
राष्ट्र चंडिका न्यूज़,सिवनी। सिवनी जिले में जब तक ठाकुर हरवंश सिंह जीवित येथे तब तक राजकुमार खुराना हमेशा से लूप लाइन में ही रहे लेकिन जैसे ही राजकुमार खुराना को मौका मिला वैसे ही उन्होंने अपनी राजनीति चमकाना शुरू कर दिया। इन दिनों राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि राजकुमार खुराना की राजनीति की चमक तब तक ही है जब तक सिवनी एवं केवलारी विधानसभा से कांग्रेस हार रही है जिस दिन सिवनी एवं केवलारी में कांग्रेस का विधायक बन गया उस दिन से राजकुमार खुराना की राजनीतिक चमक कमजोर पड़ जाएगी।
शायद ही जिला कांग्रेस के अध्यक्ष राजकुमार खुराना किसी आदिवासी को संगठन में प्रभारी महामंत्री जैसा पद दे क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि जिस दिन किसी आदिवासी नेता को प्रभारी महामंत्री जैसा पद दे दिया गया उस दिन से सिवनी एव केवलारी में राजनीतिक समीकरण बदलना शुरू हो जाएंगे। बताया जाता है कि यदि कांग्रेस आदिवासियों को मजबूत करने की दिशा पद पर किसी आदिवासी जिला पंचायत सदस्य की ताजपोशी कर सकती थी ने अपने करीबी ब्रजेश उर्फ लालू बघेल को
भले ही जिला कांग्रेस के अध्यक्ष राजकुमार खुराना अपनी राजनीति बचाने सिवनी एवं केवलारी विधानसभा को दांव पर लगा देते हैं लेकिन प्रदेश कांग्रेस •अध्यक्ष कमलनाथ को निष्पक्षता के साथ समीक्षा अवश्य करना चाहिए। यदि पिछले 20 सालों के आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि आदिवासियों नज़र अंदाज़ करना सिवनी विधानसभा को कितना महंगा पड़ा है। राजकुमार खुराना ही स्वयं ही 2003 का विधानसभा चुनाव लड़े थे तब गोंडवाना गणतंत्र पार्टी उनके लिए सिरदर्द थी। 2003 के विधानसभा चुनाव में एक लाख 15 हजार 622 मतदाताओं ने अपने मतो का उपयोग किया था जिसमें से भाजपा के नरेश दिवाकर को 46.11 प्रतिशत यानि कि 53 हजार 313 वोट
2008 के विधानसभा में भी गोंडवाना बनी थी चुनौती-
आदिवासी वोट के बिखराव के कारण कमजोर होते रही है कांग्रेस-मिले थे जबकि कांग्रेस के राजकुमार खुराना को सिर्फ 32.83 प्रतिशत यानि कि 37 हजार 958 वोट मिले थे जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अनिल भलावी को 11 हजार 865 व विपतलाल सरयाम को 3116 वोट मिले थे। इस तरह 2003 का विधानसभा चुनाव राजकुमार खुराना 15 हजार 354 वोटो से हार गये थे जिसमें आदिवासी वोट का जमकर बिखराव हुआ था।
राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक आदिवासी रहा है। सिवनी एव केवलारी में में सोचती तो जिला पंचायत के उपाध्यक्ष विधानसभा में वोट हासिल किया था जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के गयाप्रसाद कुमरे के 6 हजार 66 वोट हासिल किया था। इस तरह कांग्रेस 22 भी आदिवासी निर्णायक वोट बैंक है ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस आदिवासी नेताओ को तवज्जो देते हुए संगठन में महत्वपूर्ण लेकिन ऐसा ना करते हुए राजकुमार खुराना 99 हजार से कम से कम प्रभारी महामंत्री की जिम्मेदारी तो दे ही देती लेकिन यदि ऐसा हुआ तो सिवनी से कांग्रेस जीत जायेगी जिसके बाद जिला जिम्मेदारी देती है तो केवलारी एवं सिवनी में आदिवासी नेता आदिवासी वोट बैंक जिला पंचायत का उपाध्यक्ष बनवा दिया।
2008 के विधानसभा चुनाव में 1 लाख 35 हजार 809 वोट में से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी श्रीमती नीता पटेरिया को 32.84 प्रतिशत यानि कि 41 हजार 928 वोट मिले थे जबकि निर्दलीय दिनेश राय मुनमुन को 23.06 प्रतिशत यानि 29 हजार 444 वोट, कांग्रेस के प्रसन्न मालू को सिर्फ 13.50 प्रतिशत यानि कि 17 हजार 232 वोट मिले थे वहीं गोडवाना टी केट गणतंत्र पार्टी के इस्माईल खान को 10.69 प्रतिशत यानि कि 13 हजार 649 वोट मिले थे। इस तरह कांबळेस भारतीय जनता पार्टी से 24 हजार 696 वोटो से हारी थी और कांग्रेस तीसरे पायदान में थी। इस चुनाव में भी आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट जमकर बिखरा था जिसे सहजकर रखने में कांग्रेसी पूरी तरह नाकाम थी।
2013 में राजकुमार खुराना को फिर मिली थी हार -2013 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राजकुमार खुराना को कमलनाथ ने टिकिट दिया था लेकिन 10 सालो मे राजकुमार खुराना ने मतदाताओं के बीच अपनी कोई पकड़ नहीं बनाया जिसके चलते 2013 के विधानसभा चुनाव में राजकुमार खुराना भी तीसरे पायदान में थे जो निर्दलीय दिनेश राय मुनमुन से 23 हजार 274 वोटो से पीछे थे। 2013 के विधानसभा चुनाव में 1 लाख 77 हजार 531 मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया था जिसमें से निर्दलीय दिनेश राय मुनमुन को 36.84 प्रतिशत वोट यानि कि 65 हजार 402 वोट मिले थे। भाजपा के नरेश दिवाकर को 25.07 प्रतिशत यानि कि 44 हजार 486 वोट मिले थे। राजकुमार खुराना को 23.73 प्रतिशत यानि कि 42 हजार 128 वोट मिले थे वही गोडवाना गणतंत्र पार्टी के रामेश्वर तुमराम को 7 हजार 909 वोट मिले थे। इस चुनाव में भी आदिवासी वोट बिखराव की स्थिति में था।
को काफी हद तक साध सकते हैं लेकिन- 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दिनेश राय मुनमुन ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 1 लाख 99 हजार 998 वोटों में से 99 हजार 576 वोट हासिल किया था वहीं कांग्रेस के मोहन चंदेल ने भी पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 77 हजार 568 हजार 8 वोटा से हार गई थी। इस चुनाव में कांग्रेस आदिवासी वोट बैंक को सहेजकर नहीं रख सकी। यदि पिछले 10 सालो के रिकार्ड कांग्रेस अध्यक्ष राजकुमार खुराना की राजनीति हासिये में आ जायेगी। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस ने जिला पंचायत उपाध्यक्ष, जिला कांग्रेस अध्यक्ष और जिला प्रभारी महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद से आदिवासी नेताओ को दूर ही रखा है।
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