बॉलीवुड भी हरदोई की इस चाट का दीवाना, अंग्रेजों ने भी खाया था ‘दिल्ला का खस्ता’, स्वाद आज भी बरकरार

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्वादिष्ट व्यंजन पसंद करने वाले लोगों की कमी नहीं है. लखनऊ और शाहजहांपुर के बीच बसे हरदोई के लोगों का स्वाद को लेकर अपना एक अलग मिजाज है. ऐसे में आजादी के पहले से या फिर कहे अंग्रेजी हुकूमत से लोगों के बीच एक बुजुर्ग के खस्ते के स्वाद की दीवानगी लोगों के सर चढ़कर बोलती है. खस्ते की दुकान पर शटर खोलने से पहले ही भीड़ लगने लगती है. सूरज उगने से पहले स्वाद को ढूंढते हुए लोग खस्ते के लिए दुकान पर इकट्ठा होने लगते हैं.

हरदोई रेलवे स्टेशन से करीब 200 मीटर की दूरी पर बीच बाजार स्थित दिल्ला का खस्ता भंडार है. यह दुकान पहले खस्ताहाल लकड़ी के ठेले पर हुआ करती थी दुकान को चलाने वाले ओनर छोटे का कहना है कि यह बाप-दादा का आशीर्वाद है. उन्होंने इस खस्ता की क्वालिटी और उसके मसाले में कोई परिवर्तन नहीं किया है इसलिए इसकी मांग सुबह से ही होने लगती है. डेली पैसेंजर और बाजार के दुकानदार दुकान खोलकर पहले नाश्ता इसी से करते हैं. बहुत से कस्टमर 20 साल से लेकर 80 साल तक के हो गए हैं. बाबा के जमाने से लेकर अभी तक उनकी दुकान पर खुलने से पहले भीड़ देखी जाती है. जहां एक ओर चाइनीस फास्ट फूड की मांग बढ़ी है लेकिन उसका असर हमारी दुकानदारी पर नहीं पड़ा है.

क्या बोले दुकानदार?

हरदोई के रहने वाले और इस समय माया नगरी मुंबई में कई फिल्मों में अपनी एक्टिंग का दम दिखा चुके राहुल चौहान ने कहा कि हरदोई अपने जायके के लिए देश ही नहीं विदेश तक में जाना जाता है. इस खस्ते के चर्च मुंबई में भी हैं, हरदोई में स्टेशन पर सूट हुई ‘इश्क ज्यादा’ की स्टार कास्ट ने भी इसका स्वाद लिया था. इसके अलावा कई बार कई सिने स्टारों ने इसका स्वाद लिया है. सुबह सवेरे मिलने वाले इस खस्ता के स्वाद का अपना अलग महत्व है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसमें नुकसान करने वाली कोई भी चीज नहीं पड़ती है. देसी मसाले का भुना हुआ स्वाद जुबान पर पड़ते ही दिन को खूबसूरत बना देता है. हरदोई आने पर वह इसका स्वाद लेना नहीं भूलते हैं. हरदोई में मेडिकल स्टोर चलाने वाले गुड्डू का कहना है कि वह बचपन से लेकर अभी तक इस जायके के मुरीद हैं.

राजनेता भी चख चुके हैं स्वाद

हरदोई आठ विधानसभा दो लोकसभा वाला बड़ा क्षेत्र है. पांच जिलों की सीमाएं हरदोई को प्रदेश और देश की राजनीति में बड़ा ओहदा देती है. ऐसे में लेखक अजीत अवस्थी कहते हैं कि 90 के दौर में जिले की नेतागिरी स्टेशन से ही शुरू होती थी. मेरे ख्याल से गाहे बगाहे दिल्ला के खस्ता का स्वाद जिले के ज्यादातर पॉलिटिशियन ने लिया है. इसमें राजनीति में ऊंचा ओहदा रखने वाले नरेश अग्रवाल, ऊषा वर्मा, नितिन अग्रवाल, सुखसागर मिश्र मधुर जैसे तमाम नेता शामिल हैं. यहां खस्ता खाते हुए लोग एक दूसरे से रूबरू भी हो जाया करते थे.

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