बॉर्डर पर घुसपैठ से लगेगा लगाम! भारतीय सेना NavIC GPS की मदद से हो रही मजबूत, दुश्मन ठिकानों का लगाएता पता

भारतीय सेना लगातार खुद को अपडेट करने की मुहिम में जुटी रहती है. देश का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम “नाविक” अब भारतीय सेना का सबसे बड़ा हथियार बनने वाला है. साल 1999 में कारगिल युद्ध के वक्त पहली बार इसकी जरूरत महसूस हुई थी. यदि हम आज के दौर में देखें तो सेना दुश्मन और आतंकवादियों खिलाफ NavIC GPS सिस्टम को अपने ऑपरेशन के दौरान एक अहम टूल की तरह इस्तेमाल कर सकती है.

अब तक किसी की लोकेशन का पता लगाने के लिए गूगल मैप्स का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अब इसकी जगह भारतीय NavIC GPS आ गया है. इसका इस्तेमाल भारतीय सेना आतंकियों का सफाया करने के लिए भी कर सकती है.

क्या है NavIC GPS?

NavIC GPS को Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर तैयार किया है. NavIC पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भारतीय मछुआरों को समर्पित करते हुए इस स्वदेशी जीपीएस तकनीक का नाम नाविक (NavIC) रखा था.

Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS) को आधिकारिक तौर पर NavIC कहा जाता है जो Indian NAVigation के लिए शॉर्ट फॉर्म है. इस सिस्टम में 7 उपग्रह और एक व्यापक जमीनी नेटवर्क को शामिल किया है.यह सिस्टम सभी सातों दिन और 24 घंटे काम करता है. NavIC भारतीय सुरक्षाबलों को बॉर्डर और इसके आस-पास करीब 1,500 किलोमीटर के दायरे में सटीक जानकारी देगा.

सेना को क्यों पड़ी जरूरत?

पिछले कुछ समय में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ की घटनाएं लगातार हो रही हैं. आतंकी भारतीय सेना खिलाफ चाइनीज कम्युनिकेशन और नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं और इस वजह से भारतीय सेना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.

आतंकियों का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना अब NavIC GPS सिस्टम का इस्तेमाल कर रही है. इससे न केवल सेना आतंकियों की लोकेशन का पता लगा सकती है. साथ ही साथ अपनी लोकेशन को सुरक्षित भी रख सकती है. इस वजह से आतंकियों को न केवल हमारे जवानों की स्थिति या लोकेशन पता करने में मुश्किल होगी, साथ ही सेना के द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों के ठिकानों का भी पता नहीं लग पाएगा.

इससे पहले साल 1999 में जंग के दौरान जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल में पोजीशन ली थी, तो भारतीय सेना ने सरकार से जिस पहली चीज की मांग की थी, वो थी इस क्षेत्र के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) डेटा. तब युद्ध के दौरान भारत के पास अपना कोई नेविगेशन सिस्टम नहीं था. ऐसे में भारत को अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए स्वदेशी उपग्रह नेविगेशन प्रणाली की जरूरत महसूस हुई थी.

कैसे काम करता है NavIC GPS?

इसरो के अनुसार IRNSS को स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, वाहन ट्रैकिंग, बेड़े प्रबंधन और मोबाइल फोन के साथ मिलाकर बनाया गया है. ये सभी यूजर्स को Standard Positioning Service (SPS) और Restricted Service (RS) प्रदान करेगा, जो केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए ही एन्क्रिप्टेड सर्विस है. साल 2019 में इसको सभी कमर्शियल वाहनों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था. NavIC 7 सैटेलाइट्स का एक ग्रुप है. जो पूरे देश को कवर करने में सक्षम है.

सेना सबसे पहले NavIC GPS सिस्टम का इस्तेमाल कर रही है. सीक्रेट ऑपरेशंस की वजह से सेना में जीपीएस की जगह NavIC का प्रयोग बढ़ रहा है. गोवा शिपयार्ड में भी NavIC का ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

NavIC GPS के फायदे

नाविक को लेकर दावा किया जा रहा है कि ये ज्यादा सटीक होगा. सात सैटेलाइट इसे सपोर्ट करेंगी, जिस कारण इसे अमेरिका स्थित जीपीएस, रूस के ग्लोनास और यूरोप में विकसित गैलीलियो के बराबर माना जा रहा है. इसकी क्वालिटी भी काफी अच्छी माना जा रही है. नाविक की पोजिशन एक्यूरेसी करीब 20 मीटर है. नाविक के सेटेलाइट, पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं और भारतीय उपमहाद्वीप तथा इसकी सीमाओं से 1,500 किलोमीटर आगे तक कवर करते हैं.

साथ ही नाविक के सेटेलाइट में परमाणु घड़ियां लगी हुई हैं. इसके सेटेलाइट्स में रुबिडियम परमाणु घड़ियां भी लगी होती हैं, जिन्हें अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद ने स्वदेशी रूप से तैयार किया है.यह भारत की सेटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है, जिसका इस्तेमाल भारतीय सेना अपने सीक्रेट ऑपेशन के लिए कर रही हैं.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.