बिहार में विधानसभा चुनाव अगले साल है, लेकिन एक के बाद एक नए राजनीतिक दल सामने आते जा रहे हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के बाद अब नीतीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह ने भी नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जिसका नाम ‘आप सबकी आवाज’ रखा है. आरसीपी सिंह ने बिहार की 243 सीटों में से 140 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी कर दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आरसीपी सिंह नई पार्टी बनाकर किसके लिए सिरदर्द बनेंगे?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उंगली पकड़कर सियासत में आए आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. हालांकि नीतीश से रिश्ते बिगड़ने के बाद आरसीपी सिंह पिछले साल 2023 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए थे, लेकिन बिहार में सियासी बदलाव के बाद वह अलग-थलग पड़ गए थे. करीब 2 साल सियासी बियाबान में रहने के चलते बीजेपी से उनका मोहभंग हो गया है और अब उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया.
पटेल की जयंती पर पार्टी का ऐलान
आरसीपी सिंह ने अपनी नई पार्टी बनाने के लिए दिवाली के साथ-साथ सरदार पटेल की जयंती का दिन चुना. इससे साफ जाहिर होता है कि आरसीपी सिंह की निगाहें किस वोटबैंक पर हैं. आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा ही नहीं बल्कि सजातीय यानी कुर्मी समुदाय से भी आते हैं.
ऐसे में आरसीपी की नजर कुर्मी वोटबैंक के साथ-साथ खुद को कुर्मी नेता के तौर पर स्थापित करने की है. कुर्मी समाज अपना सियासी मसीहा सरदार बल्लभभाई पटेल को मानता है. इसीलिए आरसीपी ने सरदार पटेल की जयंती पर अपनी पार्टी की बुनियाद रखकर कुर्मी समुदाय को सियासी संदेश देने की भी कोशिश की है.
नीतीश की तरह आरसीपी भी कुर्मी नेता
बिहार में कुर्मी समुदाय को फिलहाल नीतीश कुमार का कोर वोटबैंक माना जाता है. नीतीश ने कुर्मी-कोइरी समीकरण के जरिए बिहार में अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ बनाई और उसी के सहारे 2 दशक से अपना दबदबा बनाए हुए हैं. जेडीयू में एक समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद आरसीपी सिंह को दूसरा सबसे मजबूत नेता माना जाता था. आरएसपी के करीबी लोगों को लगता है कि नीतीश के कमजोर होने के बाद आरसीपी बड़े कुर्मी नेता के रूप में स्थापित हो सकते हैं. इसमें उन्हें जेडीयू के कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिल सकता है, जो नीतीश कुमार के कमजोर पड़ने के कारण खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
आरसीपी सिंह कई दिनों से नीतीश कुमार और बीजेपी के खिलाफ कुछ बोलने से बच रहे थे, लेकिन दो साल तक सियासी बियाबान बिताने के बाद अब बाहर निकलकर नई पार्टी बनाने की तैयारी में हैं. आरसीपी सिंह के समर्थकों द्वारा पटना में लगाई होर्डिंग में ‘टाइगर अभी जिंदा’ का स्लोगन लिखा है. वह गुरुवार को नए सियासी दल के गठन के साथ ही नीतीश को लेकर हमलावर भी दिखे, लेकिन बहुत सख्त तेवर नहीं अपनाया. इस तरह आरसीपी सिंह ने अपनी पार्टी बनाकर जेडीयू ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी अपनी ताकत का ऐहसास करना चाहते हैं.
नई पार्टी के आने से किसे ज्यादा नुकसान
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरसीपी की नई पार्टी और उनके उम्मीदवारों से ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार की पार्टी और बीजेपी को ही होगा. वैसे भी आरसीपी की पकड़ उसी वर्ग में ज्यादा मानी जाती है, जो एनडीए का परंपरागत समर्थक है. आरसीपी ने जेडीयू छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था, लेकिन बीजेपी ने नीतीश के दोबारा से साथ आते ही उन्हें सियासी मझधार में छोड़ दिया. यही वजह है कि अब आरएसपी भी अपनी सियासी ताकत को साबित करने के लिए पार्टी बना रहे हैं.
आरसीपी का नीतीश कुमार से रिश्ते बीजेपी के चलते ही खराब हुए थे. आरसीपी सिंह नीतीश के नहीं चाहते हुए भी मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन गए थे, जिसके चलते ही उन्हें जेडीयू छोड़ना पड़ा था. नीतीश से अलग होने के बाद आरसीपी बीजेपी में भी शामिल हो गए, लेकिन बाद में उसका साथ भी छोड़ना पड़ गया.
आरसीपी सिंह ये साफ कहते हैं कि बीजेपी में उनका जितना उपयोग होना चाहिए, वह नहीं हो सका. ऐसे में आरसीपी सिंह अब कुर्मी वोटों को अपने साथ जोड़ने की मंशा से ही नई पार्टी का गठन किया है, लेकिन कितना सफल होंगे, ये कहना मुश्किल है, लेकिन एक बात जरूर है कि कुर्मी वोटों में ही सेंधमारी करते नजर आएंगे. ऐसा होता है तो जेडीयू के लिए आगे की सियासी राह आसान नहीं होने वाली?
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