झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके मंत्रियों के लिए यह अग्निपरीक्षा मानी जा रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि झारखंड में एक मंत्रालय ऐसा भी है, जिसके मंत्री चुनाव नहीं जीत पाते हैं? वो भी पिछले 20 सालों से. इस विभाग का नाम है श्रम विभाग.
झारखंड के सियासी गलियारों में इस मंत्रालय को कांटों भरा ताज भी कहा जाता है. ऐसे में इस स्टोरी में झारखंड के श्रम मंत्रियों की डिटेल कहानी जानते हैं..
1. भानुप्रताप चुनाव हारे, पार्टी तक बदलनी पड़ी
भानुप्रताप शाही मधु कोड़ा की सरकार में श्रम विभाग के मंत्री थे. कोड़ा की सरकार गिरी तो कुछ दिनों के लिए शिबू सोरेन सीएम जरूर बने, लेकिन उन्हें भी चुनाव में जाना पड़ा. 2009 के विधानसभा चुनाव में भानुप्रताप शाही अपने परंपरागत भवनाथपुर सीट से मैदान में उतरे.
शाही के खिलाफ कांग्रेस ने अनंतदेव को मैदान में उतारा. अनंतदेव शाही को पटखनी देने में कामयाब रहे. बुरी तरह हार के बाद शाही ने पाला बदल लिया. 2014 और 2019 में वे बीजेपी के सिंबल पर मैदान में उतरे. दोनों बार उन्हें जीत मिल गई. कहा जाता है कि भानु अगर विचारधारा और पार्टी नहीं बदलते तो राजनीतिक नेपथ्य से ही गायब हो जाते.
वजह उनकी कोर पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक का सिमटता जनाधार है. शाही को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता हेमेंद्र प्रताप देहाती लेफ्ट के बड़े नेता थे. देहाती भी झारखंड के मंत्री रहे हैं.
2. चंद्रशेखर खुद भी हारे, बेटा भी पस्त हुआ
अर्जुन मुंडा की सरकार से नाता तोड़ने के बाद हेमंत सोरेन ने 2013 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. सोरेन की इस सरकार में कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे को मंत्री बनाया गया. चंद्रशेखर दुबे की गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती है.
2014 के चुनाव में दुबे ने खुद के बदले बेटे के लिए टिकट की मांग की. पार्टी ने विश्रामपुर सीट से उनके बेटे अजय को टिकट भी दे दिया, लेकिन अजय जीत नहीं पाए. 2019 में चंद्रशेखर खुद मैदान में उतरे, लेकिन चौथे नंबर पर रहे.
2014 और 2019 में चंद्रशेखर की सीट पर बीजेपी को जीत मिली. चंद्रशेखर लोकसभा का चुनाव भी धनबाद से लड़े, लेकिन वहां भी उन्हें जीत नहीं मिल पाई.
3. राज पलिवार टिकट को तरसे, दल-बदल की चर्चा
2014 में हेमंत सोरेन की सत्ता चली गई और बीजेपी की सरकार आई. मुख्यमंत्री बनाए गए रघुबर दास. कैबिनेट में मधुपुर से विधायक चुने गए राज पलिवार को श्रम विभाग का मंत्री बनाया गया. पलिवार पूरे 5 साल तक इस विभाग के मंत्री रहे.
2019 में पलिवार मधुपुर सीट से फिर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन इस बार उन्हें जेएमएम के हाजी हुसैन अंसारी ने पटखनी दे दी. हुसैन अंसारी को हेमंत सरकार में मंत्री बनाया गया. हालांकि, 2020 में उनका निधन हो गया.
2021 के उपचुनाव में राज पलिवार इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया. 2024 के चुनाव में भी राज पलिवार के टिकट पर सस्पेंस बना हुआ है.
कहा जा रहा है कि पलिवार की जगह बीजेपी गंगा नारायण सिंह को उम्मीदवार बना सकती है. सिंह पिछली बार 5 हजार वोटों से चुनाव हारे थे.
4. सत्यानंद भोक्ता के साथ हो गया जाति वाला खेल
2019 में आरजेडी और कांग्रेस के सहयोग से हेमंत सोरेन की सरकार बनी. सरकार में हेमंत सोरेन ने आरजेडी कोटे से सत्यानंद भोक्ता को मंत्री पद की शपथ दिलवाई. भोक्ता को श्रम विभाग सौंपा गया.
चतरा सुरक्षित सीट से मंत्री बने भोक्ता के साथ 2022 में खेल हो गया. 2022 में केंद्र सरकार ने सत्यानंद भोक्ता की मूल भोगता जाति को दलित से आदिवासी में शामिल कर दिया. अब भोक्ता दलितों के लिए सुरक्षित चतरा सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.
चतरा के आसपास सिर्फ विधानसभा की एक सीट मनिका आदिवासियों के लिए आरक्षित है. इस सीट से वर्तमान में कांग्रेस के रामचंद्र सिंह विधायक हैं. कांग्रेस सेटिंग-गेटिंग फॉर्मूले से इस सीट को अपने लिए चाह रही है.
कहा जा रहा है कि सत्यानंद भोक्ता अब इस सीट से अपनी बहू रश्मि प्रकाश को मैदान में उतारेंगे. रश्मि दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. भोक्ता अब आगे की राजनीति संगठन के जरिए करेंगे.
रघुबर और चंपई मुख्यमंत्री भी बने
झारखंड में श्रम मंत्री को लेकर एक फैक्ट और भी है. चंपई और रघुबर दास इस विभाग के मंत्री रहे, जो बाद में झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने. रघुबर दास बाबू लाल मरांडी की सरकार में श्रम मंत्री थे. हालांकि, दास इसके बाद संगठन में चले गए.
2010 में गठित अर्जुन मुंडा की सरकार में चंपई सोरेन भी कुछ दिनों के लिए श्रम विभाग के मंत्री बने. हालांकि, चंपई के पास यह विभाग अतिरिक्त प्रभार में था.
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