तीसरी बार बीजेपी की जीत के जश्न में हरियाणा झूम रहा है. अब तक आए रुझानों और नतीजों के मुताबिक हरियाणा में तीसरी बार कमल खिलता दिख रहा है. हरियाणा में आंतरिक कलह से जूझ रही कांग्रेस के हाथ फिर मायूसी हाथ लगी है. पार्टी में एक बार फिर सिर फुटव्वल जैसी स्थिति बनती दिख रही है. कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने पूछा है कि इस हार की लिए जिम्मेदार कौन है. आइए आपको बतातें है कि कांग्रेस की इतनी बड़ी हार के क्या कारण रहे हैं?
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- कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तनातनी के चलते लोकसभा चुनाव में जाट-दलित वोट जो इकट्ठा हुआ था, वो बिखर गया.
- 14 दिनों तक सैलजा की नाराजगी को बीजेपी भुनाने में कामयाब रही, दलितों में जाट सीएम को लेकर भावनाएं आहत हुईं. वहीं, राहुल 14 दिन बाद सैलजा को अहमियत देते दिखे, तो जाटों में संदेश गया कि जीतने पर राहुल सीएम की कुर्सी दलित महिला को सौंप सकते हैं.
- टिकट बंटवारे में 70 सीटें सीधे हुड्डा खेमे को मिलीं, जिसे लेकर लगातार कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला नाराजगी जताते रहे. ऐसे में दोनों ने खुद को अपने-अपने इलाके में सीमित कर लिया.
- जब किरण चौधरी कांग्रेस में थीं, तब से ही हुड्डा बनाम एसआरके का झगड़ा चलता रहा. एसआरके ग्रुप प्रभारी दीपक बावरिया पर हुड्डा खेमे के पाले में जाने का आरोप लगाते रहे, लेकिन आलाकमान और प्रभारी दीपक बावरिया झगड़ा नहीं सम्भाल पाए. किरण चौधरी बीजेपी में चली गईं, तो हुड्डा बनाम एसआर का झगड़ा चलता ही रहा. सैलजा और सुरजेवाला भी चुनाव लड़ना चाहते थे, हुड्डा खेमे के विरोध चलते उनको टिकट नहीं मिला.
- पार्टी के भीतर आवाज उठने लगी हैं कि पार्टी में फ्रेंचाइजी सिस्टम बंद हो. इसके लिए उदाहरण दिया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के बाद अब हरियाणा में भूपिंदर हुड्डा को इकतरफा ताकत दी गई, जबकि हिमाचल, तेलंगाना और कर्नाटक में किसी एक पर निर्भरता नहीं रखी तो सरकार बनी.
- हुड्डा ने सभी 25 विधायकों को रिपीट कराया, तो सैलजा ने अपने 4 सिटिंग को विधायकों को टिकट दिलाया. कुल मिलाकर 29 सिटिंग विधायकों को टिकट दिया गया, जिसमें 16 हार गए. हुड्डा समर्थक दलित प्रदेश अध्यक्ष उदयभान भी चुनाव हार गए.
- कांग्रेस के दलित जाट वोट पर सेंध लगाने के लिए जेजेपी-आजाद समाज पार्टी और इनेलो बसपा के दो-दो गठबंधन थे. उसके बावजूद राहुल के कहने पर हरियाणा के नेताओं ने आप से समझौता नहीं किया. उल्टे चित्रा सर्वारा सरीखे हुड्डा समर्थक निर्दलीयों को बैठा पाने में भी हुड्डा खेमा नाकाम रहा.
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