उत्तर प्रदेश का प्रयागराज सिर्फ संगम और एजुकेशन के हब के लिए ही नहीं जाना जाता है, इस शहर के जायके ने भी लोगों का दिल जीता है. इतना बेहतरीन स्वाद कि इसका नाम आते ही मुंह में पानी आ जाए. यहां के नेतराम की स्वादिष्ट और चटपटी कचौड़ी खाने के बाद अगर आपको मुंह मीठा करने का मन करे तो शहर के देहाती रसगुल्ले का स्वाद आपके मन में मिठास घोलने के लिए काफी है. इसे खाकर आप भी कह उठेंगे वाह! मजा आ गया.
प्रयागराज में मिष्ठान के शौकीन लोगों के लिए शहर का लोकनाथ और बैरहना इलाका उनके पसंदीदा जगहों में से एक है. लोकनाथ अगर यहां की रबड़ी लस्सी के लिए ट्रेड मार्क बन गया है तो बैरहना मुहल्ला देहाती रसगुल्ले का… 39 साल पुरानी रसगुल्ले की इस दुकान में शाम को इसका स्वाद लेने के लिए कई बार लंबी-लंबी लाइनें लगानी पड़ती हैं. इसके लजीज स्वाद से आप रूबरू हों इससे पहले इसके नाम के पीछे की वजह जानते हैं, आखिर इसे देहाती नाम कैसे मिला?
Dehati Rasgulla Name Story: कैसे पड़ा रसगुल्ले का देहाती नाम?
प्रयागराज के बैरहना मोहल्ले में 39 साल पहले दूध का धंधा करने वाले राम स्वरूप यादव ने छोटी सी मिठाई की दुकान खोली. इस दुकान पर बनाए गए रसगुल्ले का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया. कम मिठास , शुद्धता और सॉफ्टनेस की वजह से लोग इसके जायके के मुरीद होते चले गए. अब रसगुल्ले को लेकर लोगों की बढ़ती पसंद को लेकर, रामस्वरू ने अब सारी मिठाइयां बंद कर दीं. उन्होंने अपना फोकस रसगुल्ले पर ही रखा.
देखते ही देखते कुछ समय में रामस्वरूप की दुकान पर रसगुल्ले की डिमांड बढ़ती चली गई. अब बिक्री तो हो रही थी, लेकिन रामस्वरूप के रसगुल्ले को एक पहचान की जरूरत थी. राम स्वरूप यादव के बेटे अजय यादव का कहना हैं कि उनके पापा को उनके दोस्त प्यार से ‘देहाती’ बुलाते थे, क्योंकि वह देहात से आते हैं. ऐसे में अपनी रिहायशी पहचान को उन्होंने रसगुल्ले को दे दिया और उनके स्वादिष्ट रसगुल्ले का नाम देहाती रख दिया गया. अब तो प्रयागराज में देहाती रसगुल्ला एक ब्रांड बन गया है.
Prayagraj Famous Street Food: इसमें इतना स्वाद आखिर क्यों है?
जुबान को लजीज स्वाद का कायल बना देना आसान बात नहीं होती है और वो भी रसगुल्लों की दौड़ में जहां कई फ्लेवर स्वाद का ऑप्शंस मौजूद होता है. ऐसे में प्रयागराज में देहाती रसगुल्ला ने लोगों के स्वाद में अपनी स्वाद कैसे छोड़ दी है? इसके बारे में देहाती रसगुल्ला के दुकानदार विजय यादव ने बताया है.
उन्होंने इसमें इस्तेमाल किए गए खास इन्ग्रीडीयंट्स के बारे में बताया है. वैसे तो रसगुल्ला अमूमन 3 चीजों के कॉम्बिनेशन से बनता है. पहला खोवा, दूसरा चीनी और तीसरा मैदा. इन तीनों का मिलाने का अनुपात और मिलाने का अंदाज इसके स्वाद को अलग बना देता है. अजय के मुताबिक, वह बनाने की सामग्री से समझौता नहीं करते हैं. वो रसगुल्ले में खुद से बनाए गए या भरोसेमंद लोगों से लिए हुए खोवा का इस्तेमाल करते हैं. अगर वो कहीं और से खोवा ले रहे हैं तो टेस्ट करके उसके स्वाद की जांच करवाते हैं.
Allahabad dehati rasgulla: कैसे आती है इस रसगुल्ले में सॉफ्टनेस?
अब बात आती है रसगुल्ले की सॉफ्टनेस की तो यही उनकी यूएसपी है. आमतौरपर मिठाई भंडार वाले एक किलो खोवा में 500 से 600 ग्राम मैदा मिलाते हैं, जिसके बाद उनका मुनाफा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा करने से उनका रसगुल्ला देहाती रसगुल्ले जैसा नहीं बन पाता है, क्योंकि मैदा मिलाने से रसगुल्ला सख्त हो जाता है. साथ ही स्वाद पर भी असर पड़ता है. हम अपने यहां 1 किलो खोवा में सिर्फ 150 ग्राम मैदा ही मिलाते हैं. इससे रसगुल्ला इतना सॉफ्ट बनता है कि मुंह में डालते ही घुल जाए.
Prayagraj Dehati Rasgulla Price: कीमत भी पॉकेट फ्रेंडली, 75 लाख का टर्नओवर
दुकानदार अमित बताते है कि एक दौर था कि जब हमने इसकी शुरुआत 1 रुपए से की थी. समय बीता और जब महंगाई बढ़ी तो दूध के रेट बढ़े इस कारण रसगुल्ले के रेट भी बढ़ाने पड़े. अब एक देहाती रसगुल्ला की कीमत 20 रुपए हैं. यह आम रसगुल्लों की तुलना में डबल साइज का रहता है. यहां हर रोज करीब 3 से 4 हजार रसगुल्ला बिक जाता है. देहाती रसगुल्ले का सालाना टर्नओवर करीब 75 लाख रुपए का है.
विदेशी पर्यटकों को भी है बहुत पसंद
इस देहाती डिश के दीवाने दूसरे शहरों के पर्यटक ही नहीं, बल्कि विदेशी टूरिस्ट भी हैं. रसगुल्ले की ये खास दुकान वैसे तो शहर के पॉश इलाके से हटकर संगम क्षेत्र के नजदीक बनाई गई है, लेकिन विदेशों से आने वाले ट्यूरिस्ट भी यहां तक खिंचे चले आते हैं. कुंभ मेला या माघ मेला में आने वाला तीर्थ यात्री इसका जायका लिए बिना शायद ही जाता हो. वैसे थाईलैंड, कनाडा, ब्रिटेन ,नेपाल और पोलैंड के पर्यटक यहां अक्सर आते हैं. इस बार तो महाकुंभ में इसके स्टॉल कुंभ क्षेत्र में भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों का जायका बढ़ाएंगे.
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