तिरुपति बालाजी प्रसाद मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस बीच शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी की है. उसने कहा है कि प्रसाद तब होता है जब भगवान को चढ़ा दिया जाता है. उससे पहले तैयार मिठाई होती है. ऐसे में भगवान-भक्त का हवाला न दें, भगवान को विवाद से दूर रखें. दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने प्रसाद में जानवरों की चर्बी के मिलावट के आरोपों को लेकर जांच की मांग की है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच कर रही है.
प्रसाद मामले में सुब्रमण्यम स्वामी समेत दूसरे याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट की निगरानी में जांच कराए जाने की मांग की है.स्वामी के वकील ने कहा कि अगर भगवान के प्रसाद पर सवालिया निशान है तो इसकी जांच होनी चाहिए. क्या मैं कभी निष्पक्ष जांच की उम्मीद कर सकता हूं. किसी को तो इस कथन के परिणाम का उत्तर देना ही चाहिए. टीटीडी अधिकारी का कहना है कि ‘उस घी’ का 100 फीसदी उपयोग नहीं किया गया था. क्या सैंपलिंग की गई? क्या यह सैंपल अस्वीकृत नमूनों से लिया गया था?
उन्होंने कहा कि कौन सा आपूर्तिकर्ता चिंतित था, क्या झूठी सकारात्मकता की गुंजाइश है? एक याचिकाकर्ता की तरफ से वकील ने कहा कि मंदिर की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी की गई थी. क्या किसी राजनीतिक हस्तक्षेप की अनुमति दी जानी चाहिए? मैं उस आधार को लेकर चिंतित हूं जिसके आधार पर एक सार्वजनिक बयान को एक स्पष्ट तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. बिना किसी सबूत के ये बयान देना कि प्रसाद में मिलावट है, परेशान करने वाला है.
यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक- आंध्र प्रदेश सरकार
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक है और स्वामी ने याचिका में सीधे तौर पर राज्य सरकार को निशाना बनाने के लिए याचिका दायर की है. एक अन्य याचिकाकर्ता पत्रकार सुरेश चव्हाण के वकील ने कहा कि मैं एक भक्त हूं, मेरी भावना आहत हुई है. मैं भावना की सुरक्षा की मांग कर रहा हूं. मैं एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की मांग करता हूं. आंध्र प्रदेश सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये वास्तविक याचिकाएं नहीं हैं.
जस्टिस गवई ने पूछा कि क्या निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आपके पास कोई सामग्री थी? आंध्रप्रदेश सरकार ने कहा कि हमारे पास लैब रिपोर्ट है. जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि रिपोर्ट बिल्कुल स्पष्ट नहीं है. अगर आपने पहले ही जांच के आदेश दे दिए थे, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? जुलाई में रिपोर्ट आई और सितंबर में बयान आया. जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि यह रिपोर्ट प्रथम दृष्टया यह इंगित करती है कि तैयारी में प्रयुक्त सामग्री नहीं है.
प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा
जस्टिस बीआर गवई ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा कि आपने SIT का आदेश दिया है, नतीजे आने तक प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? आप हमेशा ऐसे ही सामने आते रहे हैं, यह दूसरी बार है. जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं, तो आपसे अपेक्षा की जाती है कि ऐसा ना हो. हम उम्मीद करते हैं कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाए. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि जब तक आप निश्चित नहीं थे, आप इसे लेकर जनता के पास कैसे गए? जांच का उद्देश्य क्या था?
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सीएम कब प्रेस में गए और अन्य आपूर्तिकर्ता के सैंपल का क्या हुआ? वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में घी निजी विक्रेताओं से खरीदा जाने लगा. गुणवत्ता को लेकर शिकायतें आईं. हमने निविदाकर्ता को कारण बताओ नोटिस दिया. जस्टिस गवई ने कहा कि जो घी सही नहीं पाया गया, क्या उसका इस्तेमाल प्रसाद के लिए किया गया? आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा कि हम जांच कर रहे हैं.
‘धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत’
जस्टिस गवई ने आंध्र प्रदेश सरकार से कहा कि आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत है. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि इस बात का सबूत कहां है कि यह वही घी था जिसका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया था? कितने ठेकेदार आपूर्ति कर रहे थे, क्या स्वीकृत घी मिश्रित हैं, कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसका उपयोग किया गया है. इसका परीक्षण किया गया है और रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में डाल दी गई है, जांच लंबित है.
आंध्र प्रदेश सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक बार जब यह पाया गया कि उत्पाद उपयुक्त नहीं है, तो दूसरा परीक्षण भी किया जाता है. फिर लैब में परीक्षण किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप प्रेस में क्यों गए, जब आशंकाएं बरकरार थीं. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले की जांच की जरूरत है.
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