क्या हमारी सिवनी लोकसभा सीट वापिस मिलेगी: संजय तिवारी

लोकसभा समाप्त होने से विकास की दौड़ में पिछला सिवनी
राष्ट्र चंडिका, सिवनी,देश की लोकसभा सीटो को लेकर परिसीमन की प्रक्रिया 2026 से शुरू होगी इस खबर से जिले वासियों के सिवनी लोकसभा खोने का दर्द और घाव फिर ताजा हो गए है , 2002 में गठित परिसीमन आयोग ने 2001 की जनसंख्या के आधार बनाकर  सिवनी लोकसभा सीट समाप्त कर देने की अनुशंसा किया था जिसके परिणामस्वरूप बड़े ही सुनियोजित ढंग से सिवनी लोकसभा सीट हमसे छीन ली गयी थी और इस तरह से   सिवनी लोकसभा सीट के लिए 2004 में जिले के मतदाताओं ने अंतिम बार अपने वोट का उपयोग किया था। उसके बाद देश के सर्वोच्च सदन में जिले वासियों  का जनप्रतिनिधत्व खोकर हम विकास की दौड़ में लगातार पिछड़ते चले गए  सिवनी लोकसभा सीट के बालाघाट और मंडला में बंटने के बाद हमे जो  नुकसान हुआ है उसकी समीक्षा का समय अब आ गया है. इस दौरान हम न केवल विकास की दौड़ में पिछड़े बल्कि हमने अपनी घंसौर विधानसभा सीट में गवां दी। क्या 2026 के  संभावित लोकसभा परिसीमन में हमे हमारी लोकसभा सीट वापिस मिलेगी इस पर सभी दलों को  जागरूक नागरिकों  और नई पीढ़ी को गंभीरता से विचार करना होगा.  उक्त बात जिले के विकास के मुद्दे   की लड़ाई लडऩे वाले , जनमंच के संस्थापक सदस्य लोकप्रिय शिक्षक  संजय तिवारी ने कही है।
 लोकसभा सीट के  परिसीमन का मुख्य आधार जनसंख्या होता है जिसके आधार पर लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की भौगोलिक सीमा तय होती है । सामान्यत: 10 से 12 लाख तक की जनसंख्या वाला क्षेत्र एक लोकसभा सीट में सम्मिलित किया जाता है। प्रचलन के अनुसार हर दस साल बाद जनसंख्या की गणना देशव्यापी स्तर पर सम्पन्न करके राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए जाते है जिससे सरकार को बहुत से नीतिगत जनहित के मुद्दों के मामले में निर्णय लेने के अलावा लोकसभा सीट के परिसीमन को निर्धारित करने का पैमाना मिलता है.  1972 के परिसीमन आयोग के गठन के बाद  2002 में गठित परिसीमन आयोग की अनुशंसा पर सिवनी लोकसभा समाप्त कर दी गयी थी। इस परिसीमन आयोग के तात्कालिक सदस्य पूर्व  मंत्री एवं कांग्रेस के नेता हरवंश सिंह और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते थे।
परंपरानुसार निर्धारित कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय जनगणना का काम  2021 मे किया जाना था लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस प्रक्रिया को टाल दिया गया था जिसे अब 2025 से प्रारम्भ किया  जाएगा और ऐसा माना जा रहा है कि 2029 के आम चुनावो में 78 लोकसभा सीट के बढऩे की संभावना है। जानकारों का मानना है कि म.प्र. में 5 लोकसभा सीट बढऩे की संभावना है जबकि उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा 14 सीट बढऩे की संभावना है।
 दक्षिण भारत के राज्य जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीट की वृद्धि का विरोध कर रहें है। दक्षिण भारत के राज्यो की  मांग है कि लोकसभा सीट का परिसीमन समानुपातिक आधार पर होना चाहिए।  दक्षिण भारत के राज्यो को आशंका है कि  जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के बाद दक्षिण भारत मे कम हुई जनसंख्या वृद्धि का खामियाजा उन्हें लोकसभा सीट खोकर भुगतना पड़ेगा याने दक्षिण भारत की लोकसभा सीट उत्तर भारत के मुकाबले और कम हो जाएंगी जिससे दक्षिण भारत के राज्यो की केंद्र सरकार के निर्माण में महत्व भी कम होगा।
 2026 में लोकसभा परिसीमन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी भले ही लोकसभा सीट बढ़ाने का संकेत दे चुके है परंतु राजनैतिक तौर पर बीजेपी के भीतर इस परिसीमन को लेकर गंभीर चर्चा शुरू हो चुकी है विशेष तौर से 2024 के लोकसभा चुनावो के रिजल्ट के बाद बीजेपी नए सिरे से परिसीमन को समझने की कोशिश कर रही हैं।
जानकारों की माने तो प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार जनसांख्यकी और समानुपातिक आधार पर परिसीमन करके लोकसभा की वर्तमान 543 सीट से ज्यादा सीट करने का भी सोच रही है। नए संसद भवन में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था बनाई गई है , समानुपातिक आधार पर यदि परिसीमन होता है तो यह संख्या बढ़ भी सकती है जो अव्यवहारिक सा लगता है. देश मे 85 लोकसभा सीट ऐसी भी है जहां  20 से 85 प्रतिशत तक अल्पसंख्यक  है इन लोकसभा सीट का परिसीमन भी जनसांख्यकी संतुलन को बनाते हुए पुन: किया जाएगा।
 यहां यह बात भी गौरतलब है कि 1971 के मुकाबले 2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश की आबादी दो गुने से ज्यादा  याने 125 करोड़ हो चुकी है ऐसे में अभी तक पुरानी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीट का नही बढऩे का  आशय यह भी है कि देश की संसद में जनसंख्या के अनुपात में  जनप्रतिनिधत्व कम है जो कि संविधान की भावना के अनुरूप नही है।
 एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी उठता है कि सिवनी लोकसभा का नए परिसीमन के बाद कैसा स्वरूप होगा, क्या सिवनी लोकसभा अपने पुराने रूप में वापिस आएगी जिसमे घंसौर सुरक्षित विधानसभा शामिल थी, क्या बरघाट सुरक्षित सीट सामान्य हो जाएगी, क्या क़ुरई खवासा का क्षेत्र सिवनी विधानसभा में शामिल होगा और क्या बंडोल बखारी वाला क्षेत्र केवलारी विधानसभा में पुन: शामिल होगा। फिलहाल ये सभी प्रश्न हवा में तैरने लगे  हैं। यदि सिवनी लोकसभा सीट पुन: अस्तित्व में आती है तो गोटेगांव पाटन फिर से सिवनी लोकसभा क्षेत्र में शामिल होंगे ये भी चर्चा का विषय है।
जाहिर तौर उक्त सभी बातों की चर्चा अभी से शुरू होनी चाहिए क्योकि हम सिवनी जिले वासियों ने न केवल अपना लोकसभा क्षेत्र खोया है बल्कि केंद्रीय योजना बजट और सुविधाओं के मामलों में भी वंचित कर दिए गए है। एक लोकसभा क्षेत्र के लिए बजट योजना और विकास ज्यादा होता है। देश की सर्वोच्च सदन में सिवनी जिले का प्रतिनिधित्व समाप्त होने के बाद सिवनी जिला मंडला और बालाघाट लोकसभा में बंट गया जिसके कारण ये जिला  वैसा विकास नही कर पाया जैसा विकास होना था।
 परिसीमन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
1951 , 1961 और 1971 की जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीट की संख्या क्रमश:  422, 494 और 543 थी जब जनसंख्या  क्रमनुसार 36.1 करोड़, 43.9 करोड़ और 54.8 करोड़ थी,
सिवनी लोकसभा का इतिहास
साल में 1962 में अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित लोकसभा सीट  में अस्तित्व में आने के बाद फिर बाद के दो आम चुनावो में कागजों में ही रही थी. 1962 में सिवनी लोकसभा सीट से  कांग्रेस के सांसद नारायणराव मनीराम वाड़ीवा सांसद रहे.1977 में सिवनी लोकसभा सीट सामान्य सीट के रूप में दोबारा अस्तित्व में आई और जनता पार्टी के निर्मल चंद जैन सांसद बने.इसके बाद बहुत जल्द आम चुनाव हुए और 1980 में गार्गी शंकर मिश्रा सांसद बने  1989 में प्रह्लाद पटेल और 1991 में विमला वर्मा  के बीच हार जीत के बाद 1999 में भाजपा के रामनरेश त्रिपाठी सांसद बने 2009 में सिवनी लोकसभा सीट समाप्त हो गयी थी. देखा जाए तो 1999 से सिवनी आजतक सिवनी का लोकसभा में जनप्रतिनिधित्व भारतीय जनता पार्टी के पास है।
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