दिल्ली: 50 साल से रह रहे हजारों लोगों के घरों पर चलेगा बुलडोजर… डर ऐसा कि काम पर नहीं जा रहे

दिल्ली के रजोकरी इलाके में बुलडोजर ऐक्शन के डर से दो कॉलोनियों के लोगों ने घर से निकलना ही बंद कर दिया है. कई घरों में चूल्हे नहीं जल रहे और बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है. ऐसा तब है जब इनके पास दिल्ली सरकार का प्रमाण पत्र मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली सरकार के ही वन विभाग ने इन्हे घर खाली करने का नोटिस दे दिया है. अब बुलडोजर ऐक्शन का खतरा है, लिहाजा मजदूरी और छोटे-मोटे कार रोजगार के जरिए परिवार चलाने वाले लोगों ने काम पर जाना ही छोड़ दिया है. लोगों को सर्टिफिकेट, टोकन और पहचान पत्र मिला है, जो दिल्ली की अलग-अलग सरकारों ने दिया है. मुख्यमंत्री केजरीवाल की फोटो के साथ ये प्रमाण पत्र दिया गया है, लेकिन केजरीवाल सरकार के वन विभाग ने अब कह दिया है कि उन्होंने सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है और इन्हें अपने मकान छोड़ कर यहां से जाना होगा.

5 दशक से ज्यादा से यहां रह रहे लोगों का कहना है कि दिल्ली सरकार की तरफ से ही यहां तमाम सुविधाएं पहुंची और सरकार चाहे बीजेपी, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी की रही, उन्हें तमाम सुविधाएं दी गई, लेकिन अब अचानक खाली करने के नोटिस से वो डर में हैं. बुजुर्ग महिलाओं का कहना है कि उनकी ज़िन्दगी यहां बीत गई है. अब वो मर जाएंगी, लेकिन अपना घर नहीं छोड़ेंगी.

क्या है पूरी कहानी?

रामदेव के डेरा में 80 मकानों को और चमेली का डेरा में 125 मकानों को नोटिस दिया गया है. साठ के दशक से सन् 1993 तक यह माइनिंग क्षेत्र था, यहां पकड़ों से बड़े पत्थर काटे जाते थे और क्रेशर मशीन से उसे तोड़ने का काम होता था. बड़ी संख्या में अलग-अलग राज्यों से मजदूर यहां बसाए गए और काम पर रखे गए. इतने सालों में आज तक इनके पास कोई नोटिस नहीं आया. बल्कि समय समय पर सरकारों ने इन्हें इनके जमीन पर पक्का अधिकार देने की बात कही थी साथ ही टोकन, पट्टा और सर्टिफिकेट तक दिये गए.

चमेली का डेरा से टुनटुन कुमार कॉलोनी के बसने से आज तक की कहानी बताते हुए कहते हैं कि उन्हें आशियाना छिनने के साथ साथ इस बात का भी दुख है कि गरीब लोगों को अवैध कब्जा करने वाला करार दिया जा रहा है, जबकि ये ज़मीन उन्हें दी गई थी.

क्रशर जोन में बसी इन कॉलोनियों में पक्की गलियां, चार-चार सरकारी बोरेवेल, वाटर पाइपलाइन, सीसीटीवी कैमरा, सामुदाइक भवन, वायर फेंसिंग , बिजली कनेक्शन और शौचालय जैसी तमाम मूल भूत सुविधाएं पुराने समय से ही मौजूद हैं. आज तमाम मकान पक्के बन चुके हैं, लेकिन पांच दशक बाद विभाग की नजर पंद्रह एकड़ में बसे इस रिहायशी इलाके पर पड़ी है, जिसे सभी सरकारों ने पक्का करने का आश्वासन मात्र नहीं दिया था, बल्कि अपनी तरफ से सर्टिफिकेट और खसरा नंबर के टोकन तक बांट दिये. फिलहाल, यहाँ के लोगों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और 23 अगस्त तक यहां कोई डेमोलिशन नहीं होने का आश्वासन मिला है. ऐसे में इनकी पूरी उम्मीद अब न्यायालय के फैसले पर ही टिकी हुई है.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.