कोलकाता में डॉक्टर युवती से रेप और मर्डर केस पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चौतरफा घिर गई हैं. एक तरफ जहां विपक्षी बीजेपी और सीपीएम प्रशासन की लापरवाही को मुद्दा बनाकर बंगाल सरकार से इस्तीफा मांग रही हैं. वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी के नेता और सहयोगी कांग्रेस भी ममता सरकार पर हमलावर है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब किसी मुद्दे पर बंगाल सरकार की इतनी फजीहत हो रही है. पहले भी संदेशखाली केस, आसनसोल हिंसा जैसे बड़े मुद्दों पर ममता बनर्जी बैकफुट पर रह चुकी हैं.
दिलचस्प बात है कि इन फजीहतों के बावजूद ममता बनर्जी के सियासी कद पर कोई फर्क नहीं आया. उनकी पार्टी इन इलाकों में लगातार जीत दर्ज करती रही. ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार ममता कोलकाता रेप केस के आरोपों से राजनीतिक नुकसान को रोक पाएंगी?
… और मजबूत होकर निकलीं ममता
1. 2018 में बर्दमान-आसनसोल में राम नवमी के मौके पर हिंसक घटनाएं हुई. इस हिंसा की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी. 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता की पार्टी को दुर्गापुर और आसनसोल में नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन 2021 में ममता ने यहां डैमेज कंट्रोल कर लिया. दोनों जगहों की 14 में से 11 सीटों पर ममता की पार्टी को जीत मिली.
2. 2020 में अंफान तूफान के दौरान ममता सरकार की खूब आलोचना हुई. इस तूफान में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. बीजेपी ने लापरवाही का मुद्दा बनाया, लेकिन ममता ने अपनी सक्रियता से इस मुद्दे को कुंद कर दिया. अंफान का असर जिन इलाकों (दक्षिण 24 परगना और मेदिनीपुर) में सबसे ज्यादा हुई थी, उन इलाकों में ममता की पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की.
3. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले संदेशखाली के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस बैकफुट पर आई थी. आरोप था कि तृणमूल के नेता शक्ति का इस्तेमाल कर इन इलाकों में महिलाओं का यौन शोषण करते हैं. ममता ने इस मुद्दे को बीजेपी प्रायोजित बताया. 2024 के लोकसभा चुनाव में संदेशखाली की सीट बारासात में तृणमूल के उम्मीदवार ने 3.3 लाख वोटों से जीत दर्ज की.
इस बार डैमेज कंट्रोल की क्या है रणनीति?
1. बांग्लादेश और बंगाली अस्मिता का सहारा
ममता बनर्जी कोलकाता रेप केस को इमोशनल ट्रैक पर ले जाने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने कहा कि मुझे गाली दो, लेकिन बंगाल को नहीं. स्वतंत्रता दिवस के मौके बंगाल के लोगों को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा घटना जब सामने आई, तब हमने एक टीम बनाई, जो 164 लोगों से इस मामले में पूछताछ कर चुकी है. पूरे एक महीने की सीसीटीवी फुटेज खंगाला गया. पुलिस ने 12 घंटे के भीतर हत्यारे को अरेस्ट कर लिया.
ममता ने आगे कहा कि बताइए, हम ने जांच में कौन सी कमी रखी? उन्होंने आगे कहा कि मैं सीपीएम की तरह सरकार नहीं चलाती. किसी निर्दोष को जेल में नहीं डाल सकती.
बांग्लादेश के मुद्दे का जिक्र करते हुए ममता ने कहा कि कुछ लोग इस मुद्दे के सहारे सत्ता छिनने की कोशिश में लगे हैं. उन्हें लग रहा है कि इस मुद्दे के जरिए सरकार को अस्थिर कर देंगे, लेकिन ऐसे लोग बंगाल में कामयाब नहीं हो पाएंगे, क्योंकि मैं लोगों के लिए राजनीति करती हूं.
ममता बनर्जी ने कांग्रेस और सीपीएम को भी इस मुद्दे पर घेरा है. ममता ने कहा कि एक केस को लेकर जिस तरह से बंगाल को बदनाम किया जा रहा है, जनता उसे देख रही है. ममता ने आगे कहा कि बंगाल अस्मिता से खेलने वाले लोग नहीं जानते हैं कि उनके साथ क्या खेल होगा?
2. कोलकाता पुलिस को ममता ने किया एक्टिव
ममता ने फेक न्यूज से बचने और इस मामले में चल रहे अटकलों को रोकने के लिए कोलकाता पुलिस को एक्टिव कर दिया है. कोलकाता पुलिस लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय है और फेक न्यूज फैलाने वालों को लपेटे में ले रही है
बुधवार को कोलकाता पुलिस के कमिश्नर भी मीडिया में आए और अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि कोलकाता पुलिस के खिलाफ कैंपेन चलाया जा रहा है. हम पर मीडिया के जरिए निर्दोषों को गिरफ्तार करने का दबाव बनाया जा रहा है. ऐसा हम नहीं कर सकते हैं.
कोलकाता पुलिस कमिश्नर विनित गोयल ने पुलिस की जांच की तारीफ करते हुए कहा कि पुलिस ने कभी नहीं कहा कि आरोपी केवल एक ही व्यक्ति है, बल्कि हम वैज्ञानिक साक्ष्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं और इसमें समय लगता है.
3. CBI की कार्रवाई को मुद्दा बनाने की तैयारी
कोलकाता हाईकोर्ट ने रेप केस के इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया है. ममता अब सीबीआई की कार्रवाई पर नजर रख रही है. उन्होंने कहा कि रविवार तक सीबीआई केस के सभी दोषियों को फांसी पर चढ़वाए.
ममता ने आगे कहा कि मैं अभी इस पर इसलिए कुछ नहीं बोल रही हूं, क्योंकि जांच जारी है. उन्होंने कहा कि रविवार तक सीबीआई अगर इस मसले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती है, तो फिर मैं देखूंगी.
कहा जा रहा है कि पुलिस से इतर सीबीआई अगर इस मामले में कुछ ठोस नहीं निकाल पाती है तो ममता इसे बड़ा मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रही है.
मुद्दे उठते हैं पर ममता पर फर्क नहीं, क्यों?
बंगाल में राजनीतिक हिंसा, महिलाओं से यौन उत्पीड़न और दंगों जैसे बड़े मुद्दे सियासी सुर्खियों में रहते हैं. इन सब मामलों में ममता बनर्जी बैकफुट पर भी रहती हैं. इसके बावजूद उनके सियासी कद पर कोई असर नहीं पड़ता है. बंगाल में ममता की पार्टी हर चुनाव में आगे रहती है. आखिर क्यों?
दरअसल, बंगाल में ममता के कद का विपक्ष के पास कोई नेता ही नहीं है. हाल ही लोकसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी ने जब समीक्षा की तो सबसे बड़ा मसला यहीं उठा था. ममता महिला होने के साथ-साथ मजबूत और मुखर नेता हैं.
तृणमूल सुप्रीमो जमीनी राजनीति से आई हैं और उन्हें लोगों और मुद्दों की परख हैं. उनके मुकाबले विपक्ष में जो नेता हैं, वो या तो सिर्फ एक क्षेत्र के नेता हैं या एक वर्ग के.
बीजेपी ने ममता के मुकाबले शुभेंदु अधिकारी को खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन शुभेंदु मेदिनीपुर से बाहर असरदार साबित नहीं हो पाए. कांग्रेस में पहले अधीर रंजन चौधरी थे, लेकिन दिल्ली की पॉलिटिक्स की वजह से वे भी ममता के खिलाफ मोर्चाबंदी नहीं कर पाए.
सीपीएम के पास ममता को घेरने के लिए न तो नेता हैं और न नीति. यही वजह है कि बंगाल में इतने बड़े-बड़े केस आने के बावजूद ममता आसानी से ऊपर आ जाती हैं.
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