लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने कोर वोटबैंक रहे अगड़ों की परवाह किए बिना पिछड़ा और दलित कार्ड खेला था. कांग्रेस का यह सियासी प्रयोग सफल रहा है. राहुल गांधी अभी भी सामाजिक न्याय के मुद्दे पर कायम है और जातिगत जनगणना को लेकर सड़क से संसद तक मोर्चा खोल रखा है. ऐसे में राहुल गांधी के सियासी एजेंडे को उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने आगे बढ़ाने का फैसला किया है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर शुक्रवार से कांग्रेस प्रदेश के ईकाई संगठनों ने तीन दिवसीय अभियान शुरू कर रही है, जिसके जरिए ओबीसी और दलित समुदाय के विश्वास को जीतने का प्लान है.
उत्तर प्रदेश में छह सीटों पर मिली जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. एक दशक के बाद दिल्ली की सियासत में बढ़ी ताकत के चलते कांग्रेस को प्रदेश की राजनीति में उभरने की उम्मीद जगा दी है. इसीलिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में किए गए सियासी प्रयोग पर कायम रहने का फैसला किया है. दलित-ओबीसी और सामाजिक न्याय वाले मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस के अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और फिशरमैन विभाग ने संयुक्त रूप से जातिगत जनगणना के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए 9 अगस्त से 11 सितंबर तक जागरूकता अभियान चलाएगी.
लोकसभा चुनाव में राहुल का प्रयोग सफल रहा
लोकसभा चुनाव में राहुल का ये सियासी प्रयोग सफल रहा. इसीलिए यूपी कांग्रेस कमेटी ने संयुक्त रूप से दलित-ओबीसी और सामाजिक न्याय के प्लान पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के एजेंडे को पार्टी ने गांव-गांव तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जिला, ब्लॉक, नगर और गांव स्तर पर जाकर लोगों को जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर जागरुक करने का काम करेंगे.
यूपी कांग्रेस ने 26 जुलाई को राष्ट्रीय भागीदारी दिवस भी मनाया था और उसमें जातिगत जनगणना करवाने और आरक्षण की सीमा पर लगे 50 फीसदी आरक्षण लिमिट को खत्म करने की मांग उठाई थी. इससे पहले कांग्रेस ने दलितों को साधने के लिए जगजीवन राम की जयंती पर दलित बस्तियों में जाने का अभियान चलाया था. कांग्रेस की मंशा अब इस जातिगत जनगणना के मसले को आगे बढ़ाकर पिछड़ा वर्ग के वोटरों को अपने पाले में लाने की है.
पार्टी लाइन से हटकर चलाई मुहिम
राहुल गांधी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी लाइन से हटकर और अपने कोर वोटबैंक की परवाह किए बगैर सामाजिक न्याय की राजनीति पर चलने का कदम उठाया था. राहुल ने आरक्षण और संविधान बचाओ का नारा बुलंद कर पिछड़े और दलित मतदाताओं की गोलबंदी करना का प्रयास किया और इसमें वो सफल भी रहे. असर ये हुआ पिछले चुनाव में 52 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस 99 सीटों पर पहुंच गई और यूपी में एक सीट से बढ़कर 6 सांसद हो गए हैं. इसके अलावा पांच सीटों पर उसे मामूली वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा है. इस तरह पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ा और प्रदर्शन में सुधार देखने को मिला. इसीलिए ओबीसी और दलित वोटों को साधने के लिए अभियान शुरू किया है.
2027 में कांग्रेस का टारगेट
कांग्रेस का टारगेट 2027 का विधानसभा चुनाव है. लोकसभा चुनावों में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर दलित और पिछड़ा वर्ग के आए वोटबैंक को जोड़ने रखने का प्लान है. इसीलिए अब वह इसी तबके के वोटरों को सहेजने में ही अपने लिए भविष्य देख रही है. कांग्रेस मान रही है कि अगर उसके पास दलित और पिछड़े वोटर आते हैं, तो यह उत्तर की राजनीति में कांग्रेस की सियासी जड़े मजबूत हो सकती हैं. कांग्रेस के इस राह पर खुलकर चलने पर एक राय नहीं बन रही है. यह कश्मकश की स्थिति कांग्रेस के संगठन में ही नहीं बल्कि पार्टी सांसद और विधायकों के बीच भी दिख रही है.
कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई
सामाजिक न्याय के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई है. कांग्रेस के ओबीसी और दलित नेता जातिगत जनगणना और आरक्षण के मुद्दे पर खुलकर राजनीतिक करने की बात करने की पैरवी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ पार्टी के अगड़े नेता इसके पक्ष में नहीं है. इसी अंतर्विरोध के चलते कांग्रेस के सीतापुर से सांसद राकेश राठौर ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखकर अपनी शिकयत दर्ज कराई है. उन्होंने पत्र में कहा है कि दलित और ओबीसी नेताओं के साथ गलत व्यवहार किया है. उनके साथ ही संजय दीक्षित पर जातिवाद और उन्हें अपमानित करने का काम किया है.
ओबीसी समुदाय से आने वाले राकेश राठौर ने पत्र में लिखा है कि वंचित वर्गों के लोग राजनीति में इसलिए आते हैं क्योंकि वह अपने समुदाय के लिए सम्मान चाहते हैं. राठौर ने कहा कि अगर किसी निर्वाचित सांसद के साथ ऐसा होता है तो आप कल्पना कीजिए कि पार्टी में दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के कार्यकर्ता कैसे व्यवहार का सामना कर रहे होंगे. इस तरह कांग्रेस एक तरफ जातिगत जनगणना के मुद्दे को धार देकर ओबीसी को साधना चाहती है तो दूसरी तरफ पार्टी के ओबीसी सांसद अपने ऊपर होने वाले भेदभाव को उठाकर पार्टी को दोराहे पर खड़ा कर दिया है. ऐसे में ओबीसी और दलित समाज का विश्वास कांग्रेस कैसे जीत पाएगी.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.