कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी में मनाया गया स्वच्छता अभियान आमजनों को गाजरघास उन्मूलन एवं जागरूकता की दी जानकारी
राष्ट्र चंडिका न्यूज, सिवनी। कृषि विज्ञान केंद्र, सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शेखर सिंह बघेल के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों एवं कर्मचरियों द्वारा गाजर घास के प्रबंधन हेतु गाजरघास के पौधों को फूल आने से पहले जड़ सहित उखाडकर नष्ट किया गया, साथ ही सलाह दी गई की गाजर घास को हमेशा हाथ में दस्ताने आदि पहनकर उखाड़ना चाहिये। इससे खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 4 प्रतिशत तक की कमी आकी गई है। इस पौधे में पाये जाने वाले एक विषाक्त पदार्थ पार्थेनिन के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। इस खरपतवार के लगातार संपर्क में आने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार और दमा आदि की बीमारियां हो सकती हैं। पशुओं के लिए भी यह हानिकारक है, इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते है एवं दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट एवं दुर्गंध आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे खाने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए गाजरघास को फूल आने से पहले उखाड कर नष्ट कर देना चाहिये ताकि इसके बीज न बन पाएं और प्रसार रूक जाये। खरपतवार को उखाडते समय दस्ताने पहनने चाहिए। गाजर घास के जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन बीटल कीट को वर्षा ऋतु के दौरान इन पौधों पर छोड देना चाहिये ताकि ये गाजरघास पौधों को खाकर नष्ट कर सकें एवं गाजर घास पर 20 प्रतिशत साधारण नमक का घोल बनाकर छिड़काव भी कर सकते हैं। शाकनाशी रसायनों में ग्लाईफोसेट, 2, 4डी, मेट्रीब्युजिन, एट्राजीन, सिमेजिन, एलाक्लोर और डाइयूरान आदि का भी उपयोग कर सकते हैं।
कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के समस्त वैज्ञानिक डॉ. एन. के. सिंह, डॉ. के. के. देशमुख, डॉ. राजेंद्र सिंह ठाकुर, डॉ. जी. के. राणा, इंजि. कुमार सोनी एवं कर्मचारी श्रीमति आभा श्रीवास्तव, डॉ. करूणा मेश्राम पगारे, डॉ. चंचला शिव, शुभम झारिया, शिवशंकर मिश्रा, देवीप्रसाद तिवारी, हिमांशु कुमरे, हिमेश गढेवाल, जयंश्कर गौतम की उपस्थिति रही।