जहां एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का दावा करती है तो वहीं दूसरी तरफ राज्य के बुरहानपुर का जिला अस्पताल मूलभूत सुविधाओं की भी पूर्ति नहीं कर पा रहा है. डॅाक्टर से लेकर एंबुलेंस तक की कमी के कारण लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर होते जा रहे हैं. बुरहानपुर जिला अस्पताल में एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं, जिसके कारण मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
कई बार तो इलाज के लिए इंदौर के प्राइवेट अस्पाताल में जाना पड़ता या फिर महाराष्ट्र के जलगांव जाकर मरीजों को अपना इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कई बार मरीज को लाने और ले जाने के दौरान ही रास्ते में उनकी मौत हो जाती है. जिला अस्पताल का आलाम ऐसा है कि ऑपरेशन के दौरान बेहोश करने वाले डॉक्टर तक अस्पताल में नहीं हैं.
टीबी मरीजों के लिए अलग से वार्ड नहीं
अस्पताल में टीबी जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए भी कोई अलग से वार्ड नहीं है. एक ही बिल्डिंग में सभी तरह की बीमारियों का इलाज होता है. बुखार, जुखाम जैसी आम बीमारी से लेकर टीबी जैसी संक्रामक बीमारी का इलाज एक ही बिल्डिंग में चल रहा है, जिसके चलते आम बीमरी के लिए आने वाले लोगों की जान हमेशा खतरे में बनी रहती है.
हर महीने 50 से 60 टीबी मरीजों का इलाज
हर महीने करीब 50 से 60 टीबी संक्रमण मरीज बुरहानपुर जिला अस्पताल में आते हैं, लेकिन फिर भी टीबी मरीजों के लिए अस्पताल में कोई भी अलग से वार्ड नहीं है. लोगों का कहना है कि बुरहानपुर जिला अस्पताल की हालात बेहद बदहाल है. समाजसेवी अकिल आजाद बताते हैं कि इतने बड़े अस्पताल में एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है और न ही सभी चिकित्सीय उपकरण उपलब्ध हैं.
अकिल आजाद ने कहा कि कई बार मौसमी बीमारी के कारण मरीजों का इलाज फर्श पर लिटाकर किए जाते हुए देखा जा सकता है. अस्पताल की शिकायत कई जिला प्रशासन को लिखित में दी जा चुकी है, लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
CMO राजेश सिसोदिया ने दी सफाई
वहीं CMO राजेश सिसोदिया ने बताया कि कई बार हमने और जिले के कलेक्टर ने भी शासन को पत्र के माध्यम से समस्या की जानकारी से अवगत कराया है, क्योंकि अभी-अभी लोकसभा के चुनाव की आचार संहिता समाप्त हुई है. निश्चित तौर पर जल्द ही जिला अस्पताल में चाहे वह स्पेशलिस्ट डॉक्टर की बात हो या फिर अन्य सुविधाओं की बात हो, सभी चीजें मुहैया करवाने की कोशिश की जाएगी.
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