Ganga Dussehra 2024: 16 या 17 जून, कब है गंगा दशहरा? यहां दूर करें कंफ्यूजन, जानें स्नान-दानशुभमुहूर्त

 ज्येष्ठ माह में आने वाले सभी त्योहारों का विशेष महत्व माना गया है. इस माह में वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, अपरा एकादशी जैसे कई बड़े पर्व आते हैं इन्हीं में से एक है गंगा दशहरा. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर गंगा दशहरा मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन को बेहद ही शुभ और पुण्यकारी माना जाता है. गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी की विधि-विधान से पूजा की जाती है. साथ ही दान जैसे पुण्य कार्य करते हुए गंगा में स्नान किया जाता है.

धार्मिक मान्यता है कि गंगा दशहरा पर अन्न, भोजन और जल आदि चीजों का दान करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मां गंगा भूलोक यानी पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं, इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. आइए जानते हैं गंगा दशहरा की सही डेट, स्नान-दान का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.

गंगा दशहरा 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Ganga Dussehra 2024 Date and Shubh Muhurat)

वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 16 जून को देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी. दशमी तिथि का समापन 17 जून को सुबह 4 बजकर 43 मिनट पर होगा.

  • ऐसे में गंगा दशहरा का पर्व 16 जून को मनाया जाएगा. इस दिन स्नान के लिए ब्रह्म मुहूर्त बेहद शुभ होता है.
  • गंगा दशहरा के दिन यानी 16 जून को सुबह 7 बजकर 8 मिनट से सुबह 10:37 तक स्नान-दान आदि का शुभ मुहूर्त है.

गंगा दशहरा पूजा विधि (Ganga Dussehra Puja Vidhi)

  • गंगा दशहरा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और दिन की शुरुआत देवी-देवताओं के ध्यान से करें.
  • इसके बाद किसी पवित्र नदी में स्नान करें. अगर ऐसा संभव न हो तो घर में नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल का मिलाकर स्नान करें
  • इसके बाद तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें गंगाजल, अक्षत और फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें.
  • इस दिन पूजा के साथ ही दीपदान करें. फिर गंगा आरती कर मंत्रों का जप करें.
  • गंगा दशहरा के दिन अपनी श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों को अन्न, धन और वस्त्र का दान करें.

मां गंगा मंत्र

गंगां वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतं । त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु मां ।।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।

ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।।

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