कभी गठबंधन सरकार में बड़े मध्यस्थ होते थे कमल नाथ, इस बार हाशिए पर

भोपाल। देश में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) की गठबंधन सरकार की जब भी बात आई तो दिग्गज नेता कमल नाथ की भूमिका बड़े मध्यस्थ की रहती थी। गांधी परिवार का करीबी होने के कारण कांग्रेस कमल नाथ को आगे करती और गठबंधन के दल भी उन पर भरोसा करते। इस बार कांग्रेस की अगुवाई वाला आइएनडीआइ गठबंधन बहुमत से 40 सीटों की दूरी पर है।

कांग्रेस के कई नेता इस बार बहुमत पाने वाले राजग (एनडीए) के अन्य दलों को अपने पाले में लाकर सरकार बनाने की आस लगाए हुए हैं लेकिन इस परिदृश्य में कमल नाथ कहीं नहीं हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला, बेहद प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में उनके बेटे नकुल नाथ चुनाव हार गए। दूसरा, लोकसभा चुनाव के पहले कमल नाथ के भाजपा में जाने की अटकलें थीं।

कम हुआ गांधी परिवार का भरोसा

माना जा रहा है कि इस कारण गांधी परिवार का उन पर भरोसा कम हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर कमल नाथ की सक्रियता न के बराबर हो गई है। कभी कमल नाथ को इंदिरा गांधी को तीसरा बेटा कहा जाता था। राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी होने के साथ अच्छी छवि के कारण उन्होंने सरकार और संगठन में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया।

केंद्र में कांग्रेस कमजोर हुई तो पार्टी ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले कमल नाथ को मध्य प्रदेश भेज दिया। कांग्रेस की जीत के बाद वह मुख्यमंत्री भी बने। हालांकि सरकार 15 महीने ही चल पाई। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से गांधी परिवार ने कमल नाथ से दूरी बनानी शुरू कर दी।

इस बीच लोकसभा चुनाव के पहले कमल नाथ और उनके बेटे नकुल नाथ के भाजपा में जाने की अटकलों ने भी गांधी परिवार से उनकी दूरी बढ़ा दी। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद से कांग्रेस में गुटबाजी थमी नहीं। सबसे ताकतवर माने जाने वाले कमल नाथ पार्टी में अकेले पड़ गए हैं।

 

छिंदवाड़ा की जनता ने विदाई दे दी है, मैं स्वीकार करता हूं

 

बुधवार को उन्होंने भावुक होकर कह भी दिया कि छिंदवाड़ा की जनता ने विदाई दी है और यह विदाई मैं स्वीकार करता हूं। राहुल गांधी से संबंध सहज नहीं दरअसल, मार्च, 2023 में राज्यसभा चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी और कमल नाथ के बीच की खटास भी जगजाहिर हो गई। जो विधानसभा चुनाव हारने के बाद और बढ़ गई।

राहुल गांधी की नाराजगी के बाद कमल नाथ को हटाकर जीतू पटवारी को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। वैसे भी, विधानसभा चुनाव हारने के बाद कमल नाथ का मन मध्य प्रदेश में नहीं लग रहा था। कांग्रेस में भी अलग-थलग पड़े कांग्रेस में भी इन दिनों कमल नाथ अलग-थलग पड़ गए हैं। जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो रहा था, तब कमल नाथ का नाम भी अध्यक्ष की दौड़ में आगे बढ़ाया गया था।

तब कमल नाथ ने यह सोचकर अपने कदम पीछे खींच लिए थे कि वह मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सरकार बना लेंगे तो पार्टी में ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे लेकिन परिणाम कुछ और हुआ। कांग्रेस हार गई। अब लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है।

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