भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का गढ़ भेदते हुए कांग्रेस की एकमात्र लोकसभा सीट छिंदवाड़ा छीन ली। अपनी परंपरागत सीट पर बेटे नकुल नाथ की जीत बरकरार रखने के लिए दिग्गज कांग्रेस नेता कमल नाथ ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हर संभव रणनीति बनाई, सहानुभूति कार्ड भी खेला, पर भाजपा की व्यूह रचना ने कमल नाथ के मंसूबे पूरे नहीं होने दिए।
नतीजतन, कांग्रेस के हाथ से छिंदवाड़ा भी चला गया। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से छिंदवाड़ा को अब तक कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता रहा। यह मिथक बना हुआ था कि कमल नाथ के सक्रिय राजनीति में रहने तक इस लोकसभा सीट को हराया नहीं जा सकता।
भाजपा इस गढ़ को भेदने का काफी समय से प्रयास कर रही थी। इसका ही नतीजा था कि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में नकुल नाथ यहां से जीते तो लेकिन मात्र 37 हजार 536 मतों से ही अपनी प्रतिष्ठा बचा पाए। इस बार के चुनाव में भाजपा ने पिछली बार की रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उसकी मजबूत घेराबंदी को भांपकर ही कमल नाथ ने बेटे नकुल नाथ के लिउ पूरे क्षेत्र में जमकर प्रचार किया।
किसी दूसरी सीट पर प्रचार करने के लिए नहीं गए। जनता को अपने 44 साल के संबंधों का हवाला देकर सहानुभूति का कार्ड खेला। विकास और छिंदवाड़ा की देश-दुनिया में पहचान की बात की पर जनता ने भाजपा को चुना।
सिर्फ उपचुनाव में ही जीत सकी थी भाजपा
देश की आजादी के बाद 1952 से लेकर अब तक हुए छिंदवाड़ा लोकसभा के चुनाव में भाजपा केवल 1997 का उप चुनाव ही यहां से जीती थी। तब यहां भाजपा के कद्दावर नेता सुंदरलाल पटवा ने 37 हजार 680 वोटों से कमल नाथ को पटखनी दी थी।
इसके बाद से भाजपा ने चेहरे बदले और आकांक्षी सीट में शामिल करते हुए केंद्रीय मंत्रियों को इस सीट की जिम्मेदारी दी। यही एक मात्र जिला ऐसा था, जहां कांग्रेस ने सभी सातों विधानसभा सीटें 2018 और 2023 के चुनाव में जीती थीं। महापौर से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक कांग्रेस से ही रहा। यही कमल नाथ की ताकत भी थी।
ऐसे भेदा किला तो खिला कमल
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सुनियोजित तरीके छिंदवाड़ा का किला फतह करने में कामयाबी हासिल की। विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी विवेक बंटी साहू को प्रत्याशी बनाया। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को प्रभारी बनाया। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने दो रात बिताईं और नौ दिन चुनाव अभियान में हिस्सा लिया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रात को रुके और रोड शो किया। कमल नाथ के विश्वस्त नेताओं को तोड़कर भाजपा की सदस्यता दिलाई।
अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह ने विधानसभा की सदस्यता त्याग कर भाजपा की सदस्यता ली। कमल नाथ के खास पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और महापौर विक्रम अहाके समेत बड़ी संख्या में कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ हो गए। इसका असर पड़ा और कांग्रेस का नेटवर्क कमजोर हुआ। दल बदल की संभावनाओं ने भी असमंजस में डाला विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह से कमल नाथ कांग्रेस में अलग-थलग पड़ गए थे और उनकी भाजपा में जाने की अटकलें थीं, उसने भी उन्हें नुकसान पहुंचाया।
उनके समर्थकों से लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हुआ। वहीं, भाजपा ने आक्रामक प्रचार किया। कमल नाथ और नकुल नाथ को घेरा। नकुल नाथ के कमलेश शाह को गद्दार कहने पर इसे आदिवासी अपमान का मुद्दा बनाया। एक ही सीट से नाथ परिवार ने जीते 11 चुनाव- नाथ परिवार ने छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र से 11 चुनाव जीते। कमल नाथ 1980, 1984, 1989, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव जीते।
1996 में हवाला केस में घिरने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और उप चुनाव में उनकी पत्नी अलका नाथ को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया और वह चुनाव जीतीं। आरोप मुक्त होने पर कमल नाथ ने उनसे त्यागपत्र दिलाकर 1997 में उपचुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के सुंदरलाल पटवा ने कमल नाथ को हरा दिया। 2019 में कांग्रेस ने उनके बेटे नकुलनाथ को प्रत्याशी बनाया और वह भी जीते।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.