अप्रैल का महीना शुरू हो चुका है और आपने अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग शुरू कर दी होगी. ऐसे में आपने टैक्स सेविंग के भी कई ऑप्शन तलाशने शुरू कर दिए होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपकी एक छोटी सी भूल आपकी सारी प्लानिंग को खराब कर सकती है और आप ज्यादा इनकम टैक्स देने को मजबूर हो सकते हैं.
दरअसल, अप्रैल के महीने में आपको टैक्स रिजीम का चुनाव करना होता है. देश में अब इनकम टैक्स की दो रिजीम है, एक है ओल्ड टैक्स रिजीम और दूसरी न्यू टैक्स रिजीम. दोनों में अलग-अलग हिसाब से टैक्स लगता है, इसलिए आपको सावधानीपूर्वक इनका चुनाव करना होता है, नहीं तो आपकी टैक्स लायबिलिटी बढ़ सकती है. चलिए समझते हैं दोनों के अंतर को…
अगर नहीं करते हैं कोई सेविंग
अगर आप किसी तरह की सेविंग नहीं करते हैं या आपकी अधिकतर सेविंग म्यूचुअल फंड या शेयर मार्केट में करते हैं, जिसमें टैक्स सेविंग नहीं होती है. तब आप न्यू टैक्स रिजीम का चुनाव कर सकते हैं. इस रिजीम में आपकी 7 लाख रुपए तक की इनकम पर ‘0’ टैक्स बनता है.
वहीं सरकार ने पिछले साल के बजट से इसमें स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा देना भी शुरू किया है. ऐसे में आपकी 50,000 रुपए की एक्स्ट्रा बचत हो जाती है और आपको 7.5 लाख रुपए तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होता है.
इस टैक्स रिजीम को सरकार ने डिफॉल्ट बना दिया है. अगर आप इसका चुनाव नहींं भी करते हैं तो ये ऑटोमेटिक आपका टैक्स रिजीम बन जाएगा और फिर आप इससे रिटर्न भी नहीं कर पाएंगे.
अगर कर रखी है कई तरह की सेविंग
अगर आपने एलआईसी, हेल्थ इंश्योरेंस, ईएलएसएस फंड, पीपीएफ, एनपीएस या स्मॉल सेविंग स्कीम्स में निवेश कर रखा है. दूसरा आपने होम लोन भी ले रखा है, तब आप देश में प्रचलित दूसरे टैक्स सिस्टम यानी ओल्ड टैक्स रिजीम का चुनाव कर सकते हैं.
इस सिस्टम के तहत आपको इनकम टैक्स कानून की अलग-अलग धारा जैसे कि 80C, 80D इत्यादि के तहत टैक्स छूट मिलती है. वहीं इस सिस्टम में आपको 2.5 लाख रुपए तक की टैक्सेबल इनकम पर ‘NIL’ टैक्स देना होता है. जबकि 5 लाख रुपए तक की टैक्सबल इनकम पर लगने वाले टैक्स पर आपको रिबेट मिल जाती है. टैक्सेबल इनकम का चुनाव आपकी अलग-अलग सेविंग्स को घटाकर किया जाता है.
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