आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत मिल गई है. वह तिहाड़ जेल में बंद हैं. कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें रिहा कर दिया जाएगा. संजय सिंह को ये राहत सुप्रीम कोर्ट से मिली है. कोर्ट ने कहा कि जमानत की शर्तें ट्रायल कोर्ट तय करे. अदालत ने कहा कि संजय सिंह अपनी राजनीतिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं. ट्रायल पूरा होने तक वह जमानत पर रहेंगे. प्रवर्तन निदेशालय ने कहा उन्हें जमानत देने पर कोई आपत्ति नहीं है. संजय सिंह को पिछले साल 4 अक्टूबर को कथित शराब घोटाले मामले में गिरफ्तार किया गया था.
संजय सिंह को जमानत मिलना आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी राहत है, क्योंकि आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसी मामले में ईडी की हिरासत में हैं. वह 15 अप्रैल तक ईडी की कस्टडी में हैं. इसके अलावा मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी जेल में हैं.
संजय सिंह ने दायर की थी जमानत याचिका
संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी. कोर्ट ने ईडी से आज यानी मंगलवार दोपहर 2 बजे तक यह बताने को कहा था कि क्या आप नेता और सांसद संजय सिंह को 6 महीने की कैद के बाद भी उनकी और हिरासत की जरूरत है. संजय सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील रखी. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने छह महीने से जेल में बंद संजय सिंह को रिहा करने का आदेश दिया.
प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि अगर संजय सिंह को मामले में जमानत दी जाती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है. संजय सिंह ने दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन मामले में जमानत देने से इनकार करने संबंधी दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से कहा कि संजय सिंह के पास से कोई धन बरामद नहीं हुआ है और दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने को लेकर उन पर लगे आरोप की जांच मामले की सुनवाई के दौरान की जा सकती है.
संजय सिंह ने उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर जमानत का अनुरोध किया था कि वह तीन महीने से अधिक समय से हिरासत में हैं और इस अपराध में उनकी कोई भूमिका नहीं है. उच्च न्यायालय ने सात फरवरी को संजय सिंह की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन निचली अदालत को सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया था. इसके बाद, संजय सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था.
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