मिडिल क्लास फैमिली से आया एक स्कूल टीचर का बेटा विजय शेखर शर्मा, आज देश की सबसे बड़ी फिनटेक पेटीएम का फाउंडर है. कभी भारत को कैशलेस इकोनॉमी बनाने की कहानी का मुख्य हीरो या कहें स्टार्टअप की दुनिया का चमकता सितारा, आज शेयर मार्केट से लेकर गली-मोहल्ले में छोटे-मोटे काम करने वाले दुकानदारों तक और रेहड़ी-पटरी वालों को मझधार में लाकर खड़ा करने वाला इंसान बन गया है. आखिर ऐसा कब-कब क्या-क्या हुआ कि RBI को पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर बैन लगाना पड़ा. आखिर क्या है ये पूरी टाइम लाइन…
कहानी की शुरुआत होती है साल 2010 से, देश में डिजिटल पेमेंट नया ही था. पेटीएम जिसका फुल फॉर्म ‘पेमेंट थ्रू मोबाइल’ है, उसने काम करना शुरू किया. शुरुआत में ऑनलाइन मोबाइल रिचार्ज की सुविधा मिली और 2011 में पेटीएम वॉलेट सर्विस शुरू हुई. फिर देश में स्मार्टफोन सस्ते होने शुरू हुए और डिजिटल पेमेंट की ग्रोथ होने लगी. पेटीएम की कहानी को नए पंख लगे 2016 की नोटबंदी के बाद, जब उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ऐलान को देश के इतिहास का सबसे ‘बोल्ड’ फाइनेंशियल निर्णय बताया. देश के तमाम अखबारों में फुल पेज एड छपे और पेटीएम रातों रात देश में डिजिटल पेमेंट का विकल्प बन गया.
फिर दिसंबर 2016 के अंत या कहें कि 2017 की शुरुआत तक सरकार ने देश में UPI पेमेंट सिस्टम को BHIM नाम से लॉन्च कर दिया. पेटीएम की जिस वॉलेट सर्विस ने उसे चमकता सितारा बनाया, उसके फीके पड़ने की शुरुआत यहीं से शुरू हुई, लेकिन कहानी अभी डूबते नहीं चढ़ते सूरज की थी.
‘चढ़ते सूरज’ के डूबने की कहानी
साल 2017 में पेटीएम ने वेल्थ मैनजमेंट बिजनेस में उतरने का प्लान बनाया साथ ही एक डिजिटल बैंक बनाने की भी उसकी योजना थी. इसी साल मई में पेटीएम पेमेंट्स बैंक की शुरुआत हुई और जून 2017 में ‘पेटीएम मनी’ भी लॉन्च हुआ. खैर बात सिर्फ पेटीएम पेमेंट्स बैंक की करते हैं. इसने 2017 में कामकाज शुरू किया लेकिन 2018 तक ही इस पर खतरे के बादल मंडराने शुरू हो गए. यही इस सूरज के डूबने की टाइमलाइन
- 2018 में पेटीएम की पेरेंट कंपनी वन97 कम्युनिकेशंस में वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे ने निवेश किया. कंपनी को 30 करोड़ डॉलर का बड़ा निवेश मिला.
- 2018 की शुरुआत में पेटीएम का बिजनेस बढ़ रहा था. पेटीएम पेमेंट्स बैंक के माध्यम से अपनी सर्विस का विस्तार कर रही थी. लेकिन उसमें चीन के अलीबाबा ग्रुप के निवेश को लेकर शुरू से ही चिंता बनी हुई थीं. ये वही समय था जब भारत और चीन के बीच तनाव खिंच रहा था.
- June 2018 में पेटीएम को पहली बार बैंकिंग रेग्युलेटर आरबीआई की धमक का सामना करना पड़ा. तब पेटीएम पेमेंट्स बैंक के 20 जून से नए अकाउंट खोलने पर रोक लगा दी गई थी.
- December 2018 में जाकर पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर से ये पाबंदी हटी, लेकिन ये राहत ज्यादा दिन नहीं रही.
- March 2019 में आरबीआई के तहत काम करने वाले बैंकिंग लोकपाल ने पेटीएम पेमेंट्स बैंक को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया. ये आरबीआई के KYC नियमों के उल्लंघन से जुड़ा मामला था. पेटीएम पेमेंट्स बैंक अपने एक खास अकाउंट के ट्रांजेक्शंस पर सही से नजर नहीं रख रहा था. लेकिन मामला उतना नहीं बिगड़ा.
- साल 2020 में देश ने कोविड का सामना किया. डिजिटल पेमेंट को एक बार फिर पुश मिला और पेटीएम को इसका फायदा हुआ. हालांकि इस दौरान देश में गलवान घाटी की घटना हुई. चीन के साथ भारत का तनाव बढ़ा. इस वजह से पेटीएम में चीन का निवेश एक बड़ी बहस का मुद्दा बन गया.
- July 2021 में पेटीएम को लेकर आरबीआई की तल्खी एक बार फिर देखने को मिली. पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड ने आरबीआई को ‘भारत बिल पेमेंट ऑपरेटिंग यूनिट’ के बारे में गलत जानकारी दी, जिस पर उसे ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया गया. इसके तार अगस्त 2017 के ही एक नोटिस से जुड़े थे, जिसके जवाब में ही पेटीएम ने आरबीआई को गलत जानकारी दी थी.
- October 2021 में पेटीएम के आईपीओ से ठीक पहले नियमों के उल्लंघन को लेकर पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर 1 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगा.
- साल 2021 में फिर अक्टूबर में ही पेटीएम का आईपीओ आया. आईपीओ से पहले पेटीएम में अलीबाबा ग्रुप की हिस्सेदारी 34.7 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी. आईपीओ के नियमों का पालन करने के लिए तब अलीबाबा ग्रुप की फर्म एंटफिन ने पेटीएम में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दी.
- नवंबर 2021 में नोटबंदी की चौथी बरसी के दिन पेटीएम गाजे-बाते के साथ शेयर बाजार में लिस्ट हो गई. लेकिन पहले ही दिन पेटीएम की परतें खुलने लगी. कंपनी के आईपीओ का प्राइस 2150 रुपए था, जबकि शेयर की लिस्टिंग 27 प्रतिशत टूटर 1560 रुपए पर हुई.
- आईपीओ के बाद पेटीएम में सॉफ्ट बैंक और अलीबाबा ग्रुप की सीधी हिस्सेदारी लगभग खत्म होने पर आ गई. फिर थोड़ा इधर, थोड़ा उधर करने के बाद वन97 कम्युनिकेशंस में अब अलीबाबा ग्रुप की सब्सिडियरी एंटफिन नीदरलैंड की पेटीएम में हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम बची है.
- March 2022 में पेटीएम और आरबीआई के बीच नियमों के पालन को लेकर एक बार फिर तनाव बन गया. आरबीआई ने पेटीएम से एक स्वतंत्र ऑडिटर से अपने आईटी सिस्टम की ऑडिटिंग कराने के लिए कहा था, ताकि सिस्टम को आरबीआई की गाइडलाइंस के हिसाब से रखा जा सके. लेकिन इस पर बात बनी नहीं, तब आरबीआई ने उसके खिलाफ कड़ा एक्शन लिया.
- October 2022 में आरबीआई ने पेटीएम पेमेंट्स बैंक को नए कस्टमर्स बनाने से रोक दिया. उस पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगा दी गई.
- November 2022 में पेटीएम को आरबीआई से बड़ा झटका तब लगा, जब उसके पेमेंट एग्रीगेटर बनने की एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई. कंपनी को दोबारा एफडीआई नियमों के मुताबिक अप्रूवल लेकर अप्लाई करने के लिए कहा गया. लेकिन नए कस्टमर्स नहीं जोड़ने का ऑर्डर लागू रहा.
- October 2023 में पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर आरबीआई ने 5.93 करोड़ रुपए का जुर्माना फिर लगाया. ये जुर्माना कई रेग्युलेटरी नियमों का पालन नहीं करने को लेकर लगाया.
- January 2024 में आरबाआई ने पेटीएम पेमेंट्स बैंक की लगभग सभी सर्विस को बंद कर दिया. वहीं ग्राहकों को अपने पैसे की सुरक्षा के लिए 29 फरवरी तक का समय दिया है.
पेटीएम पेमेंट्स बैंक का मालिक कौन है?
पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड (पीपीबीएल) वन97 कम्युनिकेशंस लिमिटेड (ओसीएल) की सहयोगी इकाई है. वन97 कम्युनिकेशंस के पास पीपीबीएल का 49 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि बैंक में विजय शेखर शर्मा की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
पेटीएम में मनी-लॉन्ड्रिंग का संदेह
पेटीएम पेमेंट्स बैंक को लेकर आरबीआई की चिंता सिर्फ नियमों की अनदेखी तक सीमित नहीं है. बल्कि ये पीपीबीएल के तहत आने वाले ‘Paytm Wallet’के ट्रांजेक्शंस को लेकर भी है. पेटीएम वॉलेट्स के करीब 3.3 करोड़ ग्राहकों ने दिसंबर 2023 तक के आंकड़ों के हिसाब से 8,000 करोड़ रुपए के मूल्य से ज्यादा के 24.72 करोड़ ट्रांजेक्शन किए हैं. ये सामान और सेवाओं की खरीद बिक्री के लिए हुए हैं. वहीं 2.07 करोड़ ट्रांजेक्शन पैसे ट्रांसफर करने के लिए किए गए, इनका कुल मूल्य 5,900 करोड़ रुपए से ज्यादा है.
पीटीआई की एक खबर के मुताबिक इसमें मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी चिंताए हैं. पेटीएम वॉलेट और कंपनी की बैंकिंग इकाई के बीच सैकड़ों करोड़ रुपये के संदिग्ध लेनदेन के कारण भारतीय रिजर्व बैंक को विजय शेखर शर्मा की गतिविधियों पर पर शिकंजा कसना पड़ा है. पीपीबीएल में एक ही पैन कार्ड पर हजारों खाते खोलने, केवाईसी के बिना लाखों खातों में ट्रांजेक्शंस देखे गए हैं. ये करोड़ों रुपए के लेनदेन है. यही वजह है कि ED भी इस मामले पर पूरी नजर रख रहा है.
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