जनवरी में होगी बांधवगढ़ में गिद्धों की गणना

उमरिया। बांधवगढ़ में गिद्धों की गणना अगले महीने यानी जनवरी में हाेगी। हालांकि अभी गणना के लिए तारीख तय नहीं की गई है लेकिन अगलग सप्ताह तक तारीख भी तय हो जाएगी। गिद्धों की गणना हर दो साल में होती है। इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक पूरे मध्यप्रदेश मे गिद्धों की गणना जनवरी और मई माह में एक ही दिन, एक ही समय मे एक साथ की जाएगी। गणना में वन कर्मियों के अलावा पर्यावरण प्रेमी, एनजीओ को भी शामिल किया जाएगा। गिद्धों की दो बार गणना इसलिए कि जाती है कि पहले की गई गणना मे गिद्धों की संख्या का दूसरी बार की गई गणना से मिलान किया जाता है, जिससे गिद्धों की संख्या की सही व सटीक जानकारी मिल सके ।

लगातार कम हुई संख्या

वर्षो से बांधवगढ़ नेशनल पार्क की शान रहे गिद्धों के लिये बीमार मवेशियों तथा जानवरों के इलाज मे दी जाने वाली दवा मुसीबत का सबब बन गई है। शहरी क्षेत्रों से नदारत हुई यह प्रजाति अभी तक इंसानी बस्तिायों से दूर केवल जंगलों मे ही सुरक्षित थी, परंतु वहां भी यह समस्या धीरे-धीरे गंभीर हो चली है। जानकारों का मानना है कि यदि इस संबंध मे कोई गंभीर पहल नहीं हुई तो वह दिन दूर नहीं जब उद्यान इन दुर्लभ पक्षियों से पूरी तरह खाली हो जायेगा।बताया जाता है कि पालतू मवेशियों के उपयोग मे आने वाली दवायें उनके मरने के बाद ज्यादा खतरनाक हो जाती है। जानवरों की मृत्यु के बाद, जब गिद्ध इनको अपना आहार बनाते हैं तो मृत जानवरों के शरीर मे मौजूद दवाओं के हानिकारक ड्रग्स उनकी मौत का कारण बन जाते हैं।

कुछ हजारों में सिमटे गिद्ध

एक जमाना था जब उमरिया सहित पूरे जिले के आसमान मे गिद्धों के समूंह उड़ते हुए आसानी से दिखाई देते थे। केवल उमरिया या मध्यप्रदेश ही पूरे देश मे यही हाल है। पक्षी विशेषज्ञों का दावा है कि कुछ वर्ष पहले तक देश मे गिद्धों की संख्या लगभग चार करोड़ थी, पर इनकी तादाद अब घटकर लगभग महज 60 हजार ही रह गई है। इसलिए सरकार वन विभाग के माध्यम से हर दो साल मे गिद्धों की गणना करवाती आ रही है। रिटायर्ड वन अधिकारी केके झा का कहना है कि बिना जनभागीदारी के न तो गिद्धों का सरंक्षण किया जा सकता है, न ही उनकी सटीक गणना की जा सकती है।

दवाओं का दुष्प्रभाव

लगातार घटती संख्या के कारण गिद्ध प्रजाति के विलुप्त होने का जो खतरा मंडरा रहा है, उसकी मुख्य वजह बीमार मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक डाईक्लोफिनेक दवा है। वन्य जीव विशेषज्ञों ने बांधवभूमि से चर्चा के दौरान बताया कि सरकार ने 17 साल पहले इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगाकर इसकी जगह मेलोक्सिकेम मेडिसिन को अपनाने की सिफारिश की थी। मगर प्रतिबंध के बावजूद आज भी डाईक्लोफिनेक दवा गैर-कानूनी तरीके से बाजार मे बेची जा रही है और मवेशियों के लिए किसान इसका उपयोग धड़ल्ले से करते आ रहे हैं। जब मवेशी मर जाते हैं, तब उनके शरीर मे मौजूद दवा गिद्धों की मौत की वजह बन जाती है।

भारत में 9 तरह के गिद्ध

देश मे 9 प्रकार के गिद्ध पाये जाते हैं। एक गिद्ध का वजन 3.50 किलो से लेकर लगभग 8 किलो तक होता है। जो नौ प्रजातियां हैं, उनमे श्याम गिद्ध, अरगुल गिद्ध, यूरेशियन पांडुर गिद्ध, सफेद पीठ गिद्ध, दीर्घचुंच गिद्ध, बेलनाचुंच गिद्ध, पांडुर गिद्ध, गोपर गिद्ध और राज गिद्ध शामिल हैं।

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