इंदौर। नए साल को हर कोई यादगार बनाना चाहता है और उसे अपने तरीके से सेलिब्रेट भी करना चाहता है। कोई परिवार के साथ हिल स्टेशन पर घूमने जाता है तो कोई होटलों व गार्डनों में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होकर नए साल का इन्जाय करना चाहता है। अधिकांश लोग ऐसे हैं जो सुबह भगवान के दर्शन के साथ नए साल की शुरुआत करना चाहते हैं। आइये जानते हैं इंदौर में कौन-कौन से प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां आप नए साल के पहले दिन दर्शन करने जा सकते हैं।
खजराना गणेश मंदिर
इंदौर के खजराना में भगवान गणेश का मंदिर है। यह खजराना गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने के लिए यहां उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। इस मंदिर का निर्माण होलकर वंश की महारानी अहिल्या बाई ने 1735 में करवाया था। बुधवार को भगवान गणेश का दिन माना जाता है। इस मंदिर में बुधवार को श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा रहती है। वैसे तो इस मंदिर में सभी आयु के लोग दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन इसमें युवाओं का प्रतिशत ज्यादा रहता है।
बड़ा गणपति मंदिर
यह मंदिर राजवाड़ा और एयरपोर्ट के बीच में स्थित है। इसे बड़ा गणपति मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां बैठी हुई मुद्रा में 25 फीट ऊंची भगवान की मूर्ति है। इस मंदिर का निर्माण 1901 में हुआ था। यहां भगवान के श्रृंगार में करीब 15 दिन लगते हैं। इस मूर्ति को सवा मन घी और सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। मूर्ति निर्माण में सभी तीर्थ नदियों के जल का उपयोग किया गया था। यह मूर्ति चार फीट ऊंचे चबूतरे पर विराजित है।
रणजीत हनुमान मंदिर
महूनाका से फूटी कोठी के बीच रणजीत हनुमान मंदिर है। रणजीत हनुमान 130 से भी ज्यादा वर्षों से भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। रणजीत हनुमान मंदिर की विशेषता है कि यहां हनुमान ढाल और तलवार लिए विराजमान हैं। कहा जाता है कि यह अपनी तरह की विश्व की एकमात्र मूर्ति है। इसके अतिरिक्त उनके चरणों में अहिरावण है। ऐसा तो मंदिर के स्थापना और मूर्ति को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। मूर्ति को देखकर लगता है जैसे कि भगवान किसी युद्ध में जाने की तैयारी में है।
पितरेश्वर हनुमान मंदिर
इंदौर शहर की सीमा पर गांधीनगर के पास पितृ पर्वत पर हनुमानजी की 108 टन वजनी मूर्ति आस्था का केंद्र है। 72 फीट ऊंची मूर्ति दूर से ही नजर आती है। इस मूर्ति का निर्माण ग्वालियर के 125 कारीगरों ने सात साल में किया था। ऐसी मान्यता है कि पितरेश्वर हनुमान के पूजन से पितृदोष से मुक्ति मिलती है। यहां लाइट एंड साउंड शो का आयोजन भी विशेष दिनों में होता है। इसके लिए जर्मन से दो करोड़ की लेजर लाइट मंगवाई गई थी।
उल्टे हनुमान मंदिर
इंदौर के सांवेर में उल्टे हनुमान के नाम से प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण करीब 250 साल पहले महाराजामल्हारराव होलकर ने करवाया था। बताते हैं कि रामायण में उल्लेख है कि रावण के कहने पर अहिरावण राम-लक्ष्मण को छलपूर्वक लेकर पाताल लोक ले गया था। तब हनुमानजी सांवेर के रावेर से उल्टे होलकर पृथ्वी लोक से पाताल लोक गए थे। तब से उसका नाम उल्टे हनुमान पड़ा था।
अन्नपूर्णा माता मंदिर
दशहरा मैदान रोड स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर भक्तों के बीच आस्था का केंद्र है। यहां माता की तीन फीट की संगमरमर की मूर्ति विराजमान है। अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण 1959 में किया गया था। मंदिर की ख्याति यहां 1975 में बनाए गए हाथी गेट की वजह से देशभर में हुई। द्रविड़ स्थापत्य शैली में बने मंदिर के पीछे अब 22 करोड़ रुपये की लागत से नवीन मंदिर बनाया गया है। 81 फीट ऊंचे नए मंदिर में 51 स्तंभ हैं। अंदर-बाहर सभी जगह 1250 नवीन मूर्तियां हैं।
बिजासन माता मंदिर
यह मंदिर इंदौर एयरपोर्ट के पास स्थित है। बिजासन माता मंदिर का इतिहास एक हजार साल पुराना है। यहां देवी के नौ स्वरूप विद्यमान हैं। किसी जमाने में आसपास काले हिरणों का जंगल होने और तंत्र-मंत्र, सिद्धि के लिए इस मंदिर की खास पहचान रही है। पूर्व में माता चबूतरे पर विराजित थीं। मंदिर का निर्माण इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने 1760 में कराया था। बताया जाता है कि आल्हा-उदल ने भी मांडू के राजा को हराने के लिए यहां माता से मन्नत मांगी थी।
गोपाल मंदिर राजवाड़ा
यह मंदिर राजवाड़ा के पास स्थित है। 190 वर्ष पहले इस मंदिर का निर्माण राजा यशवंतराव होलकर (प्रथम) की पत्नी कृष्णा बाई होलकर ने करवाया था। वर्ष 1832 में इस मंदिर के निर्माण पर 80 हजार रुपये खर्च हुए थे। जब यह मंदिर बनकर तैयार हो गया था, इसके बाद इसकी मजबूती परखने के लिए हथियों से इसका परीक्षण करवाया गया था। इसके बाद ही इस मंदिर में भगवान कृष्ण और राधा की मूर्ति स्थापित की गई थी। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है।
देवगुराड़िया शिव मंदिर
इंदौर के देवगुराड़िया में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां का शिवलिंग गुटकेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के द्वार की कारीगरी 11-12वीं शताब्दी की है। 1784 में महेश्वर से इंदौर आगमन के दौरान देवी अहिल्या बाई यहां दर्शन-पूजन के लिए आई थीं। इस बात का उल्लेख होलकरकालीन दस्तावेज में मिलता है। श्रावण मास में अधिक बारिश होने पर गोमुख से निकले जल से शिवलिंग का अभिषेक होता है।
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