मथुरा: वृंदावन से दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज अपने विचारों के लिए जाने जाते हैं। वह सुबह दो बजे परिक्रमा के लिए निकल जाते हैं। इसके बाद सुबह साढ़े चार बजे से भजन सत्संग शुरू करते हैं। उनके विचारों को सुनने के लोगों की भारी भीड़ जमा होती है, लेकिन अब प्रेमानंद महाराज रात में भक्तों को दर्शन नहीं देंगे। यह निर्णय उन्होंने लगातार स्वास्थ्य में हो रही गिरावट और बढ़ती भीड़ के कारण लिया है। संत प्रेमानंद महाराज अब केवल एकांकी मुलाकात करेंगे। उनके आश्रम प्रबंधन द्वारा जारी किए गए संदेश में कहा गया है कि यह निर्णय अनिश्चित काल के लिए लिया गया है।
संत प्रेमानंद महाराज छटीकरा स्थित एक आवासीय अपार्टमेंट में स्थित फ्लैट से रात ढाई बजे परिक्रमा मार्ग स्थित श्रीहित केलि कुंज के लिए पदयात्रा करते नहीं जाएंगे। यह जानकारी श्रीहित राधा केलि कुंज परिकर के हवाले से वृंदावन रस महिमा के नाम से फेसबुक एकाउंट पर दी गई है। रात 9 बजे डाली गई इस पोस्ट की पुुष्टि नहीं हो सकी है। पोस्ट के अनुसार संत द्वारा रात्रि में पदयात्रा न किए जाने के पीछे उनका स्वास्थ्य और बढ़ती भीड़ कारण बताया जा रहा है। दरअसल, संत प्रेमानंद विगत कई साल से नियमित रूप से अपने अपार्टमेंट में स्थित आवास से परिक्रमा मार्ग स्थित श्रीहित राधा केलि कुंज आश्रम जाते हैं और यहां पूजन, भजन और सत्संग के साथ-साथ भक्त उनसे मिलते हैं।
कौन हैं संत प्रेमानंद माहाराज?
संत प्रेमानंद माहाराज का जन्म कानपुर के एक गांव सरसों में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। महाराज का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। इनके पिता और दादा दोनों की सन्यासी थे। इनकी मां धर्म परायण थी। इनके माता-पिता साधु-संतों की सेवा करते थे और आदर सत्कार भी करते थे। कुछ समय में ही महाराज ने आधात्यम का रास्ता चुन लिया और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी का जप करना शुरू कर दिया। इसी के साथ उन्होने अपना घर त्याग दिया। ऐसा माना जाता है कि भोलेनाथ ने स्वंय प्रेमानंद जी को दर्शन दिए और उसके बाद वो वृंदावन आए।
ऐसा माना जाता है कि प्रेमानंद महाराज ने वृंदावन आने के बाद महाराज श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएं देखते थे और रात को रासलीला देखते थे। इसके बाद उनके जीवन में परिवर्तन आया। उन्होंने सन्यास त्याग कर भक्ति के मार्ग को चुन लिया। महाराज ने राधा बल्लभ संप्रदाय में जाकर शरणागत मंत्र ले लिया। कुछ दिनों बाद महाराज अपने वर्तमान के सतगुरु जी को मिले। महाराज ने अपने गुरु की 10 साल तक सेवा की और बड़े से बड़े पापी को भी सत्य की राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.