इंदौर में दोपहर की नींद कमाल की आती है, यह सुख मुंबई में नहीं, बोली अभिनेत्री गुल्की जोशी

इंदौर। इंदौर से मेरा बहुत पुराना नाता है क्योंकि मैं यहीं पर पली-बढ़ी हूं। इस शहर को मैं कभी भूल नहीं सकती हूं। यहां का खानपान हमेशा जुबान पर ही रहता है। हमें गर्व होता है कि हमारा इंदौर भारत का सबसे स्वच्छ शहर है। बात की जाए अगर मुंबई और इंदौर की तुलना की, तो इंदौर में पोहे-जलेबी खाकर दोपहर में जो कमाल की नींद आती है, वह मुंबई में नहीं आती है। इस नजरिए से मुंबई में वह सुख नहीं है, जो इंदौर में है।

यह बात अभिनेत्री व टीवी धारावाहिक फिर सुबह होगी, नादान परिंदे, परमावतार कृष्णा और मैडम सर में मुख्य भूमिका निभा चुकीं गुल्की जोशी ने सोमवार को इंदौर में कही। वे हैल्लो पापा नाटक से जुड़ी एक प्रेस वार्ता के लिए शहर आईं। उन्होंने अपने नाम के बारे में बताया कि मेरा मूल नाम तो ख्याति है, लेकिन घर में हमेशा से मुझे गुल्की बुलाया जाता रहा। एक बार एक आडिशन के दौरान गलती से मेरा नाम गुल्की चला गया, तो फिर यही नाम प्रचलन में आ गया। वैसे मुझे मेरा यह नाम ज्यादा अच्छा लगता है।

केवल इंस्टा पर फोटो डालने से कुछ नहीं होता

गुल्की ने बताया कि मेरी शुरुआत थिएटर से हुई है। लाइव आडियंस के जो रिएक्शन होते हैं, वह कैमरे में कभी नहीं मिल पाते। मेरा मानना है कि थिएटर को बढ़ावा देना चाहिए। जो युवा साथी अभिनेता या अभिनेत्री बनना चाहते हैं, उनसे कहूंगी कि पहले तो पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। केवल खूबसूरत दिखने और इंटरनेट मीडिया जैसे वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर फोटो डालने से कुछ नहीं होता, प्रतिभा और मेहनत बहुत जरूरी है।

मैडम सर सीरियल में एसएचओ के रोल पर पुलिस के नजरिए के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मेरा नजरिया पुलिस के लिए हमेशा से अच्छा रहा है। अब पुलिस का रोल करने के बाद छोटी-छोटी चीजें समझ में आई हैं। हमारी पुलिस बहुत काम करती है और हमें सुरक्षित रखती है। थिएटर को आज के लोग ओटीटी व टेलीविजन तक पहुंचने का एक जरिया ना समझें। थिएटर उस मुकाम तक पहुंचने के लिए सिर्फ सीढ़ी नहीं है बल्कि यह अपनेआप में अभिनय की सबसे शानदार पाठशाला है।

बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता जगाएगा नाटक

हैल्लो पापा नाटक के लेखक राकेश जोशी ने बताया कि बुजुर्गों को हम देखते हैं, तो लगता है कि इनकी दिमागी हालत ठीक नहीं है। कई बार इन्हें गलत शब्द भी कह देते हैं। इन्हीं सभी चीजों को देखकर इस नाटक को लिखा है। खास बात है कि इस नाटक में अधिकांश अभिनय करने वाले भी 60-65 वर्ष की उम्र के हैं। हम चाह रहे थे कि सबसे पहले इस नाटक का मंचन इंदौर में हो, इसके बाद हम इसे अलग-अलग शहरों में करेंगे।

नाटक देखेंगे तो समझ आएगा कि बुजुर्गों से हमें कैसे पेश आना चाहिए। यह नाटक बुजुर्गों के लिए, बुजुर्गों द्वारा, बुजुर्गियत पर आधारित एक तीखा और मजेदार व्यंग्य है। इसमें अपने घर, परिवार से सताए, उपेक्षित, हाशिए पर छोड़ दिए गए बुजुर्ग एक वृद्धाश्रम में अटक गए हैं। दुनिया को सबक सिखाने के लिए ये सामूहिक आत्महत्या की योजना बनाते हैं, लेकिन तभी ऐसा मोड़ आता है कि यह सभी अपने-अपने अतीत में उलझ जाते हैं।

15-16 को यूनिवर्सिटी आडिटोरियम में होगा नाटक

बता दें कि यह नाटक 15-16 दिसंबर को खंडवा रोड स्थित यूनिवर्सिटी आडिटोरियम में होगा। शाम पांच और शाम सात बजे से इसके दो शो होंगे। इसकी निर्माता गुल्की जोशी हैं, वहीं मुख्य कास्ट में दिलीप लोकरे, रजनीश दवे, अनिल चाफेकर, प्रांजल श्रोत्रिय, ओम जोशी, नेहा झारे, चेतन शाह, विक्की यादव, प्रसन्न शर्मा, मीनल शर्मा आदि हैं।

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