बरेली। कचरा बीनने वाले 9 वर्षीय दीपू की पितृपक्ष में काफी मांग है। दीपू कौओं की भाषा बोल सकता है। वह कांव-कांव करता हैं और कौओं को झुंड़ जमा हो जाता है। इस पर भले ही आप यकीन न करें, लेकिन आस्था से जुड़े पितृपक्ष कर्म को मानने वालों का यही विश्वास है।
आलम यह है कि दीपू को लोग यमराज का संदेशवाहक माना जाने लगा है। दीपू हू-ब-हू कौओं की आवाज निकला सकता है। आस-पास के लोग उसे ‘क्रो ब्वॉय’ के नाम से भी पुकारते हैं।
पितृपक्ष में कौओं की महत्ता
पितृपक्ष, हिंदू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण कर्म है। इस कर्म में कौओं का बहुत महत्व है। माना जाता है यदि कौए आकर पितरों को दिए गए भोजन को ग्रहण कर लें तो भोजन उन तक पहुंच जाता है।
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हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दीपू, पितृ पक्ष में गांव का एक व्यस्त लड़का है। कई लोग उसे मैदान में कौओं को आमंत्रित करने के लिए बुलाते हैं। दीपू यह काम निःशुल्क करता है। वह कौओं को अपनी आवाज से रामगंगा नदी के किनारे बुलाता है।
कौओं से ऐसे हुई दोस्ती
कौओं से दीपू की दोस्ती की शुरुआत लगभग तीन साल पहले हुई थी। जब उसके पिता का टीबी की बीमारी के कारण 2015 में स्वर्गवास हो गया था। अब तीन लोगों के परिवार में वह एकमात्र लड़का है। इसलिए उसने कम उम्र से ही कचरे से रिसाईकिल वस्तुएं उठाने का शुरू कर दिया था।
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दीपू कहता है, ‘एक दिन जब में कचरे के ढेर से उपयोगी वस्तुएं बटौर रहा था, तब मैंने देखा बहुत सारे कौए एक झुंड बनाकर वहां बैठे हैं। मैंने इस बात को गंभीरता से देखा और उनकी आवाजों को सुना, और ऐसा में उसी जगह पर रोज करने लगा। मैं उनकी आवाज निकालता तो वो (कोए) मेरी आवाज का उत्तर देते। इस तरह महीने भर में मेरी दोस्ती उनसे हो गई। और अब, जब भी मैं उन्हें इस मैदान में उसी आवाज में बुलाता हूं। तो, वो जरूर आते हैं।’
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