भोपाल। दीपदान का सबसे विशेष महीना कार्तिक चल रहा है। इसमें अभी तीन ऐसी विशेष तिथियां आ रही हैं, जिनमें किए गए दीपदान का फल यज्ञ और तीर्थ यात्राओं के करने जैसा मिलता है। यह तिथियां हैं, 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी , 26 को बैकुंठ चतरंगी और 27 नवंबर को कार्तिक पूर्मिणा। इस पूर्णिमा को देव दिवाली का भी दर्जा प्राप्त है। मान्यता है पर कि इस देवी – देवता पृथ्वी पर दीपावली मनाने आते हैं।
इन तीनों तिथियों में लोग मंदिरों व घरों में दीप जलाते भी हैं और तालाबों एक व सरोवर आदि में प्रवाहित भी करते हैं। शुभ बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर शीतलदास की बगिया, खटलापुरा व काली मंदिर आदि घाटों पर दीपदान वालों की बड़ी संख्या रहती है।
पंडित विनोद गौतम ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। पुराणों में उल्लेख है कि इन तीन तिथियों दीपदान करने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। दीपक को जलाकर देव स्थान अथवा न तालाब के घाट व उसे प्रवाहित करने का तो दीपदान कहा जाता है।
यह प्रभु के समक्ष निवेदन और कृतज्ञता व्यक्त करने का सर्जनात्मक तरीका है। सर्वाधिक शुभ, मिट्टी और आटे से बने दीपक ही हैं, इसके बाद धातु दीप के द्वारा दीपदान किया जा सकता है।
कार्तिक मास भोर होते ही गूंज रहे भगवान के भजन
कार्तिक माह में भक्त भगवान विष्णु और तुलसी की आराधना में लीन है। महिलाएं पूरे माह व्रत रखती हैं। सूर्योदय के पूर्व स्नान कर घाट-मंदिरों में पूजन-अर्चन करती हैं। शहर के मंदिरों में महिलाएं प्रात:काल से व्रत पूजन कर रही हैं। यहां भजनों की गूंज सुनाई देती है।
पंडित जगदी शर्मा ने बताया कि कार्तिक माह भगवान श्रीहरि विष्णु को अति प्रिय है। इस माह में व्रत, तप और पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस माह में तुलसी पूजन का भी विशेष महत्व है।
व्रती महिलाएं तुलसी पूजन, रोपण और सेवन करने का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के साथ होगा व्रत का समापन- कार्तिक व्रत धारी महिलाएं कार्तिक पूर्णिमा को व्रत का समापन करेंगी।
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