जांजगीर-चांपा । अविभाजित जांजगीर-चांपा जिले में 8 हजार परिवार हाथकरघा से बुनकरी का काम करते हैं। वे कोसा कपड़े के अलावा सूती कपड़े की बुनाई भी करते हैं। इस काम में घर की महिलाए भी हाथ बटाती हैं। कुछ परिवार खेती के साथ-साथ इस काम कोकरते हैं।जिले केचांपा , सिवनी, कोसमंदा, कमरीद, बलौदा, सक्ती जिले के चंद्रपुर व आसपास के गांवों में बहुत से परिवार हाथकरघा के ताने बाने से अपने जीवन के सपने बुन रहे हैं। बुनकरों ने मिलकर 80 हाथकरघा समितियों का पंजीयन कराया है।
इन समितियों को हाथकरघा खरीदी, शेड बनाने के लिए हाथकरघा संघ से अनुदान भी मिलता है। समय-समय पर बुनकरों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा बुनकरों के प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति भी मिलती है। अपेक्स हैंडलूम सोसायटी के माध्यम से बुनकरों को कच्चा माल धागा उपलब्ध कराया जाता है और इनके द्वारा तैयार कपड़े को लेकर इन्हें उसका पारिश्रमिक दिया जाता है। इस तरह बुनकरों का काम साल भर चलता है। हालांकि अब हैंडलूम की जगह पावर लूम भी लेने लगा हैमगर अब भी जांजगीर-चांपा व सक्ती जिले में लगभग 8 हजार हाथकरघा से कपड़ों की बुनाई होती है। जिले का कोसे की साड़ी व कपड़े की मांग महानगरों में भी है। इसी तरह सूती कपड़ों की बुनाई भी यहां होती है।
सिवनी, चांपा, बलौदा व अन्य क्षेत्रों में हाथकरघा की खटपट की आवाज आसानी से सुनने को मिलती है। छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन संघ के पूर्व अध्यक्ष मोतीलाल देवांगन ने बताया कि जांजगीर -चांपा व सक्ती जिले में लगभग 8 हजार हाथकरघा अब भी संचालित हैऔर इससे बुनकर परिवार को रोजगार मिलता है। शासकीय विभागों को आपूर्ति के लिए राज्य हाथकरघा संघ द्वारा बुनकरों के माध्यम से अनेक प्रकार के वस्त्रों का उत्पादन कराया जाता है और भंडार क्रय नियम के अनुसार इसकी खरीदी होती है।
प्रदेश का एक मात्र इंस्टीट्यूट चांपा में
ग्रामोद्योग विभाग द्वारा राज्य का एक मात्र हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान का संचालन भी चांपा में किया जाता है। इसमें बुनकर परिवार के बच्चों को 10 प्रतिशत आरक्षण भी दिया जाता है। इस संस्थान में तीन वर्षीय डिप्लोमा हैंडलूम टेक्नालाजी व टेक्टाइल में प्रदान किया जाता है। यह रोजगार मूलक पाठ्यक्रम है।
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