ग्वालियर। निजी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशु बर्थ एसफिक्सिया के शिकार बन सकते हैं। यह खुलासा जिला अस्पताल के विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) के आंकड़ों से हुआ है। एसएनसीयू में भर्ती शिशुओं में सर्वाधिक संख्या निजी अस्पताल से आने वालों की है, जिन्हें विभिन्न प्रकार की बीमारियों के चलते भर्ती किया गया। इन भर्ती शिशुओं में वे मरीज अधिक है जो बर्थ एसफिक्सिया के शिकार बने हैं। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि यह बीमारी शिशु को दिमागी रुप से नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ जानलेवा हो सकती है। यदि शिशु जीवत भी रहता है तो उसका दिमाग अन्य सामान्य शिशुओं की अपेक्षा कम डवलप होने का खतरा होता है, या दूसरे शब्दों में डाक्टरों का कहना है कि वह दिमागी रुप से कमजोर रह जाता हैं।
क्या है बर्थ एसफिक्सिया
यह बच्चे को जन्म के तुरंत बाद होता है, जब आक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। आक्सीजन न लेने के कारण बच्चे के शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है, शरीर में एसिड का स्तर बढ़ जाता है। यह जानलेवा हो सकता है या फिर यह दिमागी रुप से कमजोर रह सकते हैं। इसलिए तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है।
दिमागी रुप से कमजोर होने का कारण
जिला अस्पताल बाल एवं शिशुरोग विशेषज्ञ नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि निजी अस्पतालों से आने वाले बच्चे काफी गंभीर हालत में होते है। जो बच्चे नहीं रोते उन्हें एसएनसीयू के लिए रैफर तो निजी अस्पताल कर देते पर उन्हें कृत्रिम सांस देकर नहीं भेजते। बच्चे को जन्म के बाद यदि देर तक उनके दिमाग तक आप ठीक से आक्सीजन सांस के द्वारा नहीं लेता तो उतना ही उस के दिमाग पर बुरा असर पड़ता और जोखिम बढ़ जाता है।
अपने नौनिहाल को बीमारी से ऐसे बचाएं
अस्पताल में प्रसव के दौरान एक्सपर्ट बाल एवं शिशुरोग विशेषज्ञ की उपलब्धता जरुरी होती है। जन्म के समय बच्चा नहीं रोता है तो बच्चों का डाक्टर उस बच्चे को रुलाने का काम करता है। बच्चे के रोने पर ही मान लिया जाता कि उसके सांस लेने में कोई परेशानी नहीं है। बच्चे के न रोने पर बाल एवं शिशुरोग विशेषज्ञ शिशु को स्टिम्युलेट कराते है। शिशु के नाक, मुंह साफ करते हैं, अंबू बैग से कृत्रिम सांस देते हैं, ह्दय की गति कम हो तो चेस्ट कंप्रेशन करते है, लाइफ सेविंग सपोर्ट देते है, सांस नली में ट्यूब तक डालने का काम करते है, जिससे बच्चे के शरीर व दिमाग तक पर्याप्त आक्सीजन पहुंच सके।
यह है बीमारी का कारण
बाल एवं शिशुरोग विशेषज्ञ डा. रवि अंबे बताते हैं एनीमिया पीड़ित मां से जन्मे शिशु, प्रसव से पूर्व ब्लीडिंग अधिक होना, जन्म के समय बच्चा आड़ा होना, उल्टा पैदा होता है। ऐसे बच्चों में बर्थ एसफिक्सिया होने की आशंका अधिक होती है।
यह गंभीर मामला है। मैं इस मामले में जांच कराता हूं कि आखिर शहर के ऐसे कौन से अस्पताल है जहां से सर्वाधिक बच्चे एसएनसीयू भेजे जा रहे है और जो इस बीमारी से ग्रस्त है। निजी अस्पताल में डिलेवरी कराई जा रही हैं तो वहां पर क्या व्यवस्थाएं हैं।
डा. आरके राजौरिया, सीएमएचओ
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