इंदौर। बीते कुछ वर्षों में अपना शहर इंदौर चिकित्सा की दुनिया में भी तेजी से उभरा है। यही कारण है कि देश-दुनिया का ध्यान शहर की ओर खिंचा चला आया है। इसका प्रमाण है शुक्रवार से ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में शुरू हुई देश-विदेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों की महत्वपूर्ण कांफ्रेंस एंडोकान-2023। इसमें दुनियाभर से 700 से अधिक विशेषज्ञ आए हैं और तीन दिन तक उपचार की दुनिया में हो रहे बदलाव, शोध, नई तकनीक आदि पर महामंथन कर रहे हैं।
रूस के नोबेल पुरस्कार विजेता विज्ञानी मैक्निकोव ने करीब सवा सौ साल पहले अपने गहन शोध व अध्ययन से बताया था कि दही व खमीरयुक्त भोजन करने वालों की उम्र आम आदमी के मुकाबले ज्यादा होती है। इसकी वजह यह है कि दही में जो ‘हैल्दी बैक्टीरिया’ होते हैं, वो मनुष्य के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। यह बात एशियन इंस्टिट्यूट आफ गेस्ट्रोएंटोलाजी के डा. मनु टंडन ने नईदुनिया से विशेष चर्चा में कही। वे शुक्रवार को इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में आयोजित द सोसाइटी आफ गेस्ट्रो इंटेस्टाइनल एंडोस्कोपी आफ इंडिया की नेशनल कांफ्रेंस के वक्ता रहे। इस कांफ्रेंस को एंडोकान-2023 नाम दिया गया है।
ज्यादा एंटीबायोटिक के सेवन से बचें
डा. मनु टंडन ने बताया कि हमारी आंतों में कुछ ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं बल्कि स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। किंतु जब हम ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करते हैं, तो ये सहायक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। इस वजह से लोगों को ज्यादा एंटीबायोटिक के सेवन से बचना चाहिए। वर्तमान में मरीज पेट में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाने के लिए प्रो-बायोटिक गोलियां खाते हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं है। इसके बजाय दही खाना चाहिए, जो कि शानदार प्रो-बायोटिक है। दही में भी कुल्हड़ के दही से बेहतर कुछ नहीं। स्वास्थ्य विज्ञान भी कहता है कि मनुष्य की अधिकांश बीमारियों का कारण पेट होता है। मस्तिष्क संबंधित बीमारी भी पेट की परेशानी के कारण होती है।
कांफ्रेंस में दिखाई लाइव सर्जरी
तीन दिवसीय कांफ्रेस में भारत के विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जापान सहित दुनियाभर से 700 से अधिक चिकित्सक शामिल हुए हैं। इन विशेषज्ञ चिकित्सकों को इंदौर के चोइथराम अस्पताल में डा. अजय जैन, डा. विपुल अग्रवाल व डा. सौरभ गुप्ता सहित अन्य चिकित्सकों द्वारा की गई सर्जरी को लाइव दिखाया गया।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एंडोस्कोपी में भी उपयोग
एंडोस्कोपी सोसायटी आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. संदीप लखटकिया ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का उपयोग एंडोस्कोपी व पल्मोनोस्कोपी में भी हो रहा है। एंडोस्कोपी के दौरान यदि चिकित्सक शरीर के अंदरूनी अंगों के अंदर किसी चीज पर ध्यान नहीं दे पाते, तो एआइ के माध्यम से मशीन उन्हें अलर्ट कर बता देती है। यदि आंतों में कैंसर की शुरुआती गठान, जिसकी साइज केवल एक से दो मिलीमीटर हो, उसे भी यह मशीन बता देती है। कई बार मशीन एआइ तकनीक का उपयोग कर चिकित्सक को पेट के उस हिस्से की पुन: जांच करने का निर्देश देती है, जो पहले से जांचा जा चुका। इससे कैंसर को शुरुआती स्तर में ही पहचानना आसान होता है। एंडो ब्रेन भी एक एआइ तकनीक है, जो यह बताती है कि मरीज की आंत में जो ट्यूमर है, उसमें कैंसर है या नहीं। यदि कैंसर है, तो उसे हाथोहाथ निकाल सकते हैं और यदि नहीं है तो उस गठान को छेड़ने की जरूरत नहीं।
ऐसा रहा है भारत में आधुनिक सर्जरी का इतिहास
डा. मनु टंडन ने बताया कि भारत में 1975 के बाद एंडोस्कोपी तकनीक सबसे पहले दिल्ली के एम्स अस्पताल में आई थी। पहले इसका उपयोग केवल पेट की बीमारियों में परीक्षण के लिए किया जाता था और इसके माध्यम से बायप्सी के लिए आंत में से एक टुकड़ा खींचकर निकाल सकते थे। 90 के दशक में एडोस्कोपिक माइक्रो सर्जरी भी शुरू हुई। इसमें बिना चीरा लगाए मरीज का उपचार किया जाता है। पहले एंडोस्कोपी में बायप्सी से छोटा टुकड़ा निकाला जाता था, लेकिन अब बड़ी आंत में से कैंसर बनने वाले मांस के टुकड़े को भी निकाल सकते हैं। 1990 से 2000 के बीच में वीडियो तकनीक एंडोस्कोप से जुड़ी, जिससे अब हम स्क्रीन पर मरीज के शरीर के अंदर की जा रही प्रक्रिया को देख सकते हैं।
उपचार में तकनीक कर रही कमाल
एंडोकान कान्फ्रेंस के अध्यक्ष डा. सुनील जैन ने बताया कि एंडोस्कोपिक अल्ट्रा साउंड तकनीक आने से हम आंत के बाहर भी झांककर देख सकते हैं। एंडो सोनो तकनीक की मदद से कैंसर को शुरुआती स्तर में ही पकड़ा जा सकता है। अब एंडोस्कोप में रेडियोफ्रिक्वेंसी के जुड़ने से आंत के अंदर कैंसर के टिश्यू को जलाकर खत्म भी किया जा सकता है। थर्ड स्पेस एंडोस्कोपी के तहत आंतों की दीवार के बीच से भी ट्यूमर को निकाला जा सकता है। एंडोस्कोपी पहले सिर्फ जांच का जरिया हुआ करती थी, लेकिन अब एंडोस्कोपी के माध्यम से पेट के कैंसर को भी ठीक किया जा रहा है।
भारत, इटली में एक जैसी तकनीक
इटली के डा. एंटोनियो फचिरूस ने कांफ्रेंस में बताया कि एंडोस्कोपी पर उनका शोध बताता है कि शरीर के अंदरूनी अंगों में पनप रही बीमारियों को सही से समझने के लिए एंडोस्कोपी जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग अत्यंत जरूरी है। आज के दौर में इसके लिए कई तकनीकी उपकरण तैयार किए जा चुके हैं। इनके उपयोग से जटिल बीमारियों का पता लगाना और ट्रीटमेंट करना आसान हो गया है। हालांकि भारत और इटली में लगभग एक जैसी टेक्नोलाजी का इस्तेमाल हो रहा है। बीमारियां सभी जगह एक जैसी हैं और इन पर भारत में भी शोध हो रहा है। ऐसी कांफ्रेंस से विभिन्न देशों की नई तकनीक के बारे में जानने का मौका मिलता है।
यूरोप में है बजट की समस्या
बेल्जियम के डा. पियर डिप्रेज ने बताया कि मैं भारत आकर हर बार काफी प्रभावित होता हूं। यहां के अस्पताल, डाक्टर्स सब कुछ काफी अच्छा है। मैंने यहां पर एंडोस्कोपी के जरिए उपचार का लाइव डेमो भी दिया है। यूरोपीय देशों में अमेरिका जितना बजट नहीं है, ऐसे में हमें महंगे उपकरणों को प्राप्त करना मुश्किल होता है और काफी सतर्क होकर इलाज करना पड़ता है।
नेपाल से भारत आते हैं मरीज
नेपाल के डा. मुकुंद प्रसाद आचार्य ने कहा कि भारत से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। यहां की एडवांस तकनीकों का इस्तेमाल अब धीरे-धीरे नेपाल में भी शुरू हो गया है। हालांकि, नेपाल से इलाज करवाने के लिए करीब 20 प्रतिशत मरीज भारत आते हैं। वहां के डाक्टर्स भी यहां की कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए आते हैं। दरअसल, वर्तमान दौर में लोगों में पेट से जुड़ी समस्याएं बढ़ गई हैं।
पेट की बेहतरी के लिए इन बातों का रखें ध्यान
- गुटखा, सिगरेट, शराब कतई न लें।
- लिवर सिरोसिस से बचने के लिए मोटापे पर नियंत्रण रखें।
- शुगर, बीपी व मोटापे से बचें, क्योंकि इससे लिवर की बीमारियां बढ़ती हैं।
- नियमित व्यायाम करें।
- शुगर पर हर हाल में नियंत्रण रखें।
- संक्रमण वाली बीमारियों से बचें।
- जीवनशैली को सुधारें, क्योंकि इसी के कारण बढ़ रही हैं बीमारियां।
- संतुलित आहार का सेवन करें, भोजन में अति न करें।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.