भोपाल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) एक बार फिर भाजपा के निशाने पर हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्विजय सिंह कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए कारगर माने जाते रहे हैं। अब तो कांग्रेस (MP Congress) में वही एकमात्र ऐसे नेता बन गए हैं जिनके खिलाफ शिवराज सरकार की तल्खी हमेशा बनी रहती है और भाजपा भी मुखर रहती है।
चुनाव नगरीय निकाय से लेकर विधानसभा या लोकसभा का क्यों न हो, दिग्विजय के कथित खराब कार्यकाल को भाजपा याद न दिलाए, ऐसा हो नहीं सकता है। यही वजह है कि भाजपा प्रदेश कार्यसमिति में भी शुक्रवार को दिग्विजय सिंह छाए रहे।
पार्टी नेताओं ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वर्ष 2003 से दिग्विजय सिंह सत्ता से बाहर हैं लेकिन उस सरकार के दौरान प्रदेश की बदहाली से आम जनता को अवगत कराना है। उस समय प्रदेश की सड़कें जर्जर थीं, बिजली उत्पादन न होने से रात-दिन कटौती होती थी।
यही वजह है कि वर्ष 2018 में कमल नाथ (Kamal Nath) कांग्रेस सरकार बनने के बाद भी भाजपा को सिर्फ दिग्विजय ही जिताऊ चेहरा नजर आते हैं। इसकी कई वजहें सामने आती हैं, जो कमल नाथ के मुकाबले दिग्विजय सिंह को विरोध के लिए अधिक फायदेमंद साबित करती हैं।
दिग्विजय के पूरे प्रदेश में समर्थक हैं। उनका विरोध करने पर पूरे प्रदेश से प्रतिक्रिया होती है, जिससे स्थानीय स्तर कार्यकर्ता सक्रिय हो जाते हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्तर के नेता के विरोध का मौका मिल जाता है।
असफल मुख्यमंत्री के रूप में छवि गढ़ने में पाई सफलता
मिस्टर बंटाधार जैसे संबोधन देकर भाजपा ने दिग्विजय की छवि असफल मुख्यमंत्री के रूप में गढ़ने में सफलता हासिल की है। भाजपा ने चुनावी अभियानों के साथ ही सियासत के हर छोटे-बड़े घटनाक्रम में दिग्विजय सिंह को कांग्रेस की विफल सरकार का चेहरा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाजपा प्रदेश में 15 महीने तक रही कमल नाथ सरकार के बाद भी दिग्विजय सिंह की सरकार की याद दिलाती है। दिग्विजय सिंह के बयानों के आधार पर भाजपा कई बार चुनावों का धार्मिक ध्रुवीकरण करने में सफल रही है।
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