कौन-सा युग किस माह की किस तिथि को हुआ था प्रारंभ?

हिन्दू धर्म में समय की बहुत ही व्यापक धारणा है। क्षण के हजारवें हिस्से से भी कम से शुरू होने वाली कालगणना ब्रह्मा के 100 वर्ष पर भी समाप्त नहीं होती।
इसमें चार युग बहुत छोटी सी अवधि मानी जाती है। दिन, पक्ष, मास, अयन, युग, मन्वंतर, और कल्प में बंटा काल बहुत ही विस्तृत है। आओ जानते हैं कि चार युग किस तिथि को प्रारंभ हुए थे।
कल्प का काल सबसे बड़़ा : हिन्दू धर्म में धरती के इतिहास की गाथा 5 कल्पों में बताई गई है। ये पांच कल्प है महत्, हिरण्य, ब्रह्म, पद्म और वराह। वर्तमान में चार कल्प बितने के बाद यह वराह कल्प चल रहा है।

सतयुग : इस युग का प्रारंभ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था।

त्रैतायुग : इस युग का प्रारंभ वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था।

द्वापर युग : इस युग का प्रारंभ फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हुआ था।

कलि युग : इस युग का प्रारंभ आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था।

यदि हम युगों की बात करेंगे तो 6 मन्वंतर अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब 7वां मन्वंतर काल चल रहा है। 27वां चतुर्युगी (अर्थात चार युगों के 27 चक्र) बीत चुका है। और, वर्तमान में यह वराह काल 28वें चतुर्युगी का कृतयुग (सतुयग) भी बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है। यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में वराह कल्प के श्‍वेतवराह नाम के कल्प में और वैवस्वत मनु के मन्वंतर में चल रहा है। इसके चार चरण में से प्रथम चरण ही चल रहा है।
कलियुग की आयु : युग के बारे में कहा जाता है कि 1 युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार शुकदेवजी राजा परीक्षित से कहते हैं जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में विचरण कर रहे थे तब कलिकाल का प्रारंभ हुआ था। कलयुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से 1200 वर्ष की अर्थात मनुष्‍य की गणना अनुसार 4 लाख 32 हजार वर्ष की है।- 12.2.31-32

संवत्सर के मान से एक युग 5 वर्ष का : वर्ष को ‘संवत्सर’ कहा गया है। 5 वर्ष का 1 युग होता है। संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर और युगवत्सर ये युगात्मक 5 वर्ष कहे जाते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि 60 वर्षों में 12 युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में 5-5 वत्सर होते हैं।
1250 वर्ष का एक युग : एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक युग का समय 1250 वर्ष का माना गया है। इस मान से चारों युग की एक चक्र 5 हजार वर्षों में पूर्ण हो जाता है।

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