राष्ट्र चंडिका, सिवनी। बसों में क्षमता से अधिक भर रहे सवारी आए दिन हो रही सडक़ दुर्घटनाएं, आरटीओ विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई जिले में दौड़ रही जर्जर बसें सिवनी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली बसों में सफर करने वाले यात्री जान जोखिम में डालकर यात्रा करने को मजबूर हैं।
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली बसों में सफर करने वाले यात्री जान जोखिम में डालकर यात्रा करने को मजबूर हैं। ज्यादा कमाई के चकर में बस संचालक नियमों को ताक पर रखकर सडक़ पर फरटि से खटारा बसें दौड़ा रहे है। वही खटारा बसों में क्षमता से अधिक यात्रियों को बस में बैठाकर फरटि भर रहे हैं, लेकिन परिवहन विभाग को इससे कोई सरोकार नहीं है।
विभागीय उदासीनता के चलते बस संचालक बेखौफ होकर मनमाने ढंग से बसों का संचालन कर रहे हैं, बावजूद इसके विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती। बसों में यात्रा करने वालों लोगों की सुरक्षा के लिए मोटर व्हीकल एक्ट बनाया गया है। मगर इन नियमों को लगातार अनदेखी हो रही है। बसों में भेड़ बकरियों की तरह यात्रियों को भरकर वाहनों में लाया ले जाया जाता है।
जिले से गुजरने वाली बसों के संचालकों को नियमों से कोई सरोकार नहीं है। बस संचालकों द्वारा नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है, बावजूद इसके परिवहन विभाग व यातायात पुलिस द्वारा बस संचालकों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। प्राइवेट बस स्टैंड से निकलने वाली बसें जगह जगह
बस रोक कर बेखौफ यात्रियों को अपने वाहन में बैठा लेते हैं बरघाट रोड हो या मंडला रोड या फिर नागपुर रोड सभी यात्री बस में यह आसानी से देखा जा सकता है इन बसों में यात्रियों के बैठने के लिए सीटें निर्धारित हैं, लेकिन बस संचालक अधिक कमाई के चक्कर में यात्रियों की सुरक्षा को भी नजरअंदाज कर देते हैं। बस में निर्धारित सीट पर यात्रियों को बैठाने के बाद भी इससे अधिक संख्या में यात्रियों को भेड़ बकरियों की तरह भरा जाता है।
अधिकांश यात्री बस में खड़े होकर यात्रा करते हैं, इसके बावजूद यदि बस के भीतर यात्रियों के खड़े होने की भी जगह नहीं बचती तब उन्हें बस के बोनट दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में हालात यह है कि यात्री बसों और टैक्सी में लटक कर यात्रा करते हैं। बस चलने के बाद ब्रेकर व उबड़-खाबड़ सडक़ पर बस का संतुलन बिगडज़ाता है और कई बार दुर्घटना भी हो जाती है। ऐसे में महिलाओं व बच्चों के लिए भीषण गर्मी में यात्रा करना सजा से कम नहीं है। गंतव्य तक पहुंचने की मजबूरी के चलते लोगों को जैसे तैसे बस में यात्रा करना पड़ता है।